गायत्री शक्तिपीठ के प्रचार-प्रसार सेवक देवेन्द्र श्रीवास्तव ने बताया शुक्रवार को ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को सुबह आरती ध्यान के बाद 7.30 से 8.30 बजे तक गुरुदेव और माताजी के तात्विक प्रतीकों प्रखर-प्रज्ञा, सजल श्रद्धा का विशेष पूजन हुआ। इसके बाद 9 कुंडीय गायत्री यज्ञ मंत्र दीक्षा और अन्य संस्कार कराए जा रहे हैं।
हिंदू संस्कृति की जन्मदात्री मानी जाती हैं मां गायत्री
मां गायत्री को हिंदू भारतीय संस्कृति की जन्मदात्री माना जाता है। गायत्री से ही चारों वेदों की उत्पति हुई है, इसलिए वेदों का सार भी गायत्री मंत्र को माना जाता है। मान्यता है कि चारों वेदों का ज्ञान लेने के बाद जिस पुण्य की प्राप्ति होती है, अकेले गायत्री मंत्र को समझने मात्र से चारों वेदों का ज्ञान मिलता जाता है।
वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए
वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए हैं। वेदों की उत्पति के कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही माना जाता है, इसलिए इन्हें देवमाता भी कहा जाता है। माना जाता है कि समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं इस कारण ज्ञान-गंगा भी गायत्री को कहा जाता है। इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है।
ऐसे हुआ ब्रह्माजी से गायत्री का विवाह
कहा जाता है कि एक बार भगवान ब्रह्माजी यज्ञ में शामिल होने जा रहे थे। मान्यता है कि यदि धार्मिक कार्यों में पत्नी साथ हो तो उसका फल अवश्य मिलता है, लेकिन उस समय किसी कारणवश ब्रह्माजी के साथ उनकी पत्नी मौजूद नहीं थीं, इस कारण उन्होंने यज्ञ में शामिल होने के लिए वहां मौजूद देवी गायत्री से विवाह कर लिया।
ये है अवतरण की कहानी
देवेंद्र श्रीवास्तव के अनुसार माना जाता है कि सृष्टि के आदि में ब्रह्माजी पर गायत्री मंत्र प्रकट हुआ। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से वेदों के रूप में की। आरंभ में गायत्री सिर्फ देवताओं तक सीमित थी, लेकिन जिस प्रकार भगीरथ कड़े तप से गंगा मैया को स्वर्ग से धरती पर उतार लाए, उसी तरह विश्वामित्र ने भी कठोर साधना कर मां गायत्री की महिमा, मंत्र को जन-जन तक पहुंचाया।
इसलिए मनाई जाती है गायत्री जयंती
गायत्री जयंती की तिथि को लेकर भिन्न-भिन्न मत सामने आते हैं। कुछ स्थानों पर गंगा दशहरा और गायत्री जयंती की तिथि एक समान बताई जाती है तो कुछ इसे गंगा दशहरे से अगले दिन यानि ज्येष्ठ मास की एकादशी को मनाते हैं। वहीं श्रावण पूर्णिमा को भी गायत्री जयंती का उत्सव मनाया जाता है। श्रावण पूर्णिमा के दिन गायत्री जयंती को अधिकतर स्थानों पर स्वीकार किया जाता है, लेकिन अधिकमास में गंगा दशहरा शुक्ल दशमी को मनाया जाता है जबकि गायत्री जयंती अधिकमास में नहीं मनाई जाती।