निर्वाचन आयोग ने इस बार पार्षदों के चुनावी खर्च की भी अधिकतम सीमा तय कर दी है। एक पार्षद प्रत्याशी चुनाव पर अधिकतम ३ लाख ७५ हजार रुपए खर्च कर सकेगा। अभ्यर्थी की ओर से रोज के चुनावी खर्च का ब्यौरा तो रखना ही होगा, हर तीन दिन में रिपोर्ट निर्वाचन कार्यालय को प्रस्तुत भी करना होगी। इधर निर्वाचन र्कायालय की टीम भी अभ्यर्थियों के चुनावी खर्च पर नजर रखेगी। ऐसे में अभ्यर्थी खर्च की हवाई रिपोर्ट प्र्रस्तुत नहीं कर सकते हैं। बड़ी पैचिदगी तय फार्मेट में खर्च की जानकारी देने की होगी, जो सामान्य व्यक्ति के लिए आसान नहीं है। ऐसे में हर किसी को विषय विशेषज्ञ की जरूरत पड़ेगी और इतनी मांग के बीच सभी अभ्यर्थियों को विशेष की सेवा मिल जाए, आसान नहीं होगा।
200 से ज्यादा का रखना होगा हिसाब
विधानसभा,लोकसभा या महापौर चुनाव में खर्च की अधिकतम सीमा का निर्धारण और खर्च का ब्यौरा प्रस्तुत करना पूर्व में भी अनिवार्य था। उक्त चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या कम होती है। अधिकांश मामलों में नामांकन फार्म भरने से लेकर चुनावी खर्च का ब्यौरा रखने व प्रस्तुत करने के लिए राजनीतिक दल की ओर से ही सीए या अन्य विशेषज्ञ नियुक्त कर दिया जाता है। राजनीतिक दलों में कुछ कार्यकर्ता भी ऐसे हैं जो निर्वाचन की प्रक्रिया, जरूरी कागजी औपचारिकता की पूर्ति आदि का ज्ञान रखते हैं, लेकिन इनकी संख्या भी कम ही है। निर्वाचन आयोग ने पहली बार पार्षद चुनाव के लिए भी खर्च की सीमा तय कर ब्यौरा प्रस्तुत करने की अनिवार्यता की है। ऐसे में अधिकांश अभ्यर्थियों को सीए, निर्वाच व्यय अभिकर्ता या विषय विशेषज्ञ की मदद लेना होगी। राजनीतिक दल व निर्दलिय सहित २०० से अधिक लोगों के चुनावी मैदान में उतरने की संभावना है। सभी को चुनावी खर्च का हिसाब रखने की बारिकी समझने वाला विशेषज्ञ तलाशना होगा।
इसलिए आसान नहीं होता है खर्च का हिसाब रखना
- चुनावी प्रचार-प्रसार, खाद्य सामग्री, टेंट सामग्री, मंच आदि के खर्च को लेकर आयोग की तरफ से दर तय है। इसी आधार पर अभ्यर्थी के खर्च का गुणा-भाग करना होता है।
- सोशल मीडिया पर जारी पोस्ट जैसे प्रचार के तरीकों का वैसे तो सीधा कोई खर्च नजर नहीं आता लेकिन इसका खर्च जोड़ा जाता है। कई लोग इसमें चुक कर देते हैं।
- स्टार प्रचारक के खर्च का पार्टी व प्रत्याशीवार आंकलन आसान नहीं होता।
- सामाजिक, धार्मिक आयेाजन में अभ्यर्थियों के शामिल होने को लेकर भी विशेष ध्यान रखना होता है।
- इनके अलावा भी ऐसे कई खर्च होते हैं जो निर्वाचन कार्यालय की नजर में तो रहते हैं लेकिन अभ्यर्थी उन्हें नजर अंदाज कर देता है। इससे अभ्यर्थी के खर्च के आंकलन और निवार्चन विभाग के खर्च के आंकलन में बड़ा अंतर आ जाता है।
तीन प्रारूप में प्रस्तुत करना होगा ब्यौरा
निर्वाचन व्यय के लिए प्रत्येक अभ्यर्थी को शेडा रजिस्टर मेंटेन करना होता है। निर्वाचन खर्च कर लेखा-जोखा रखने के साथ ही इसका ब्यौरा विभाग को निर्वाचन व्यय लेखा पंजी में प्रस्तुत करना होता है। पंजी का प्रोफार्मा आयोग की ओर से ही तय रहता है। एक पंजी में ८० से अधिक पन्ने होते हैं। इसमें तीन प्रारूप क, ख व ग होते हैं। प्रारूप क में प्राफार्मा क में प्रतिदिन के निर्वाचन खर्च की समग्र जानकारी रखी जाती है। प्रारूप ख में प्रतिदिन के नगद खर्च की जानकारी रहती है। प्रारूप ग में प्रतिदिन की बैंक से सीधे किए व्यय की जानकारी होती है। उक्त प्रारूप में खर्च की जानकारी हर तीन में प्रस्तुत करना होती है।
नामांकन में जानकारी भरना मुश्किल
कई दावेदारों को नामांकन पत्र में जानकारी भरने में पसीने छूट रहे हैं। इस बार करीब ११ पन्नों का नामांकन पत्र हैं। जानकारों के अनुसार संपत्ति व अन्य जानकारियों हस्त लिखित देने के लिए कई अभ्यर्थियों को जगह कम पड़ रही है। कुछ आवेदकों को अधिक जानकारी लिखने के लिए अतिरिक्त पन्ना लगाने का भी कहा था लेकिन जब वे आवेदन जमा करने गए तो तय प्रारूप में जानकारी देने कहा, फार्म लौटा दिय गया। जगह कम होने से कई आवेदक हस्त लिखित की जगह टाइपिंग करवा रहे हैं। कुछ लोगों को दो-तीन बार फार्म भरना पड़ा है।
एक्सपर्ट टीप
निर्वाचन व्यय का सही लेखा रखना और निर्धारित समय सीमा में इसे प्रस्तुत करना निर्वाचन प्रक्रिया का प्रमुख हिस्सा है। निर्वाचन खर्च की जानकारी प्रस्तुत करने के लिए प्रारूप तय है और इसी के अनुसार अभ्यर्थी या उनके प्रतिनिधि को ब्यौरा प्रस्तुत करना चाहिए। पार्षद का चुनाव लडऩे वाले अभ्यर्थियों के लिए खर्च की सीमा तय करने के साथ ब्यौरा प्रस्तुत करना अनिवार्य किया गया है। इसलिए सभी अभ्यर्थी खर्च की गणना और व्यय लेखा प्रस्तुत करने का विशेष ध्यान रखे। निर्वाचन व्यय तय सीमा से अधिक होने या गलत जानकारी प्रस्तुत करने के कारण चुनाव में जीत के बाद भी संबंधित का परिणाम शून्य घोषित हो सकता है। इसी तरह नामांकन पत्र दाखिल करने के दौरान भी विशेष सावधानी रखना चाहिए।
- डॉ. अनुभव प्रधान, चार्टड अकाउंटेंट