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मजदूरों ने सुनाई पीड़ा… किसी को गांव में नहीं ठहरने दिया तो, किसी को संदिग्ध मानकर भीड़ ने घेरा

locationउज्जैनPublished: May 10, 2020 11:48:00 pm

Submitted by:

Mukesh Malavat

एक बार बॉर्डर पर मिला खाना, भूखे मरने की नौबत आ गई थी

If no one was allowed to stay in the village, the crowd surrounded the

एक बार बॉर्डर पर मिला खाना, भूखे मरने की नौबत आ गई थी

नागदा. कोरोना को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया गया। ऐसे शहर सहित अंचल के लिए मजदूरी करने गए लोग वहीं फंस गए थे। हालांकि प्रशासन ने इन्हें लाने के लिए ट्रेनों की व्यवस्था शुरू की है। कुछ मजदूरों को तो बसों के माध्यम से लाया गया, उसके बावजूद भी कई लोगों को पैदल ही सफर तय कर अपने घरों तक पहुंचना पड़ रहा है। ऐसे मुश्किल भरे सफर में उन्हें कई कठनाईयों का सामना भी करना पड़ रहा है। शनिवार को गुजरात से पैदल चलकर नागदा पहुंचे मकला निवासी नागेश्वर का कहना है कि जैसे तैसे बार्डर तक पहुंचे थे। वहां पर एक बार खाना तो मिल गया उसके बाद भूखे मरने की नौबत आ गई थी। ऐसे में कुछ पैसे मजदूरी करके कमाए थे वो पेट की भूख मिटाने के लिए नाकाफी थे, लेकिन लक्ष्य घर पहुुंचना था, ऐसे में रास्ते में फल खरीदकर पेट की भूख तो राहत मिल गई लेकिन घर पहुंचे तो दोनों हाथ खाली थे। भले प्रशासन ने मजदूरों को लाने की व्यवस्था शुरू की है परंतु, इससे मजूदरों को कुछ हद तक ही राहत मिली है।
बता दे कि गुजरात के कई स्थानों पर मजदूरी करने गए लोगों को पहले नजदीकी रेलवे स्टेशन लाया गया और उसके बाद रतलाम छोड़ा गया। व्यवस्था में किसी तरह की कमजोरी नहीं थी। किसी तरह से मजदूरों से पैसे नहीं लिए गए। यह तमाम बातें सामने आई हैं, लेकिन इन सबके बीच में एक बड़ी मजबूरी भी उजागर हुई है। इसमें यह बात सामने आई है कि महज 200 रुपए प्रतिदिन की कमाई के लिए मजदूरों को गुजरात जाकर काम करना पड़ता है। स्थानीय स्तर पर रोजगार नहीं मिलने की मजबूरी उनके सामने पलायन का प्रस्ताव रखती है। वहीं यह बात भी सामने आई है कि नगर सहित अंचल के कई मजदूर गुजरात जाकर किसानों के यहां पर खेतिहर मजदूर के तौर पर काम करते हैं। मकला के नागेश्वर और उनके साथी 11 लोग शनिवार को गुजरात से शहर पहुंचे। उन्होंने बताया कि हम से किसी तरह का कोई पैसा नहीं लिया गया। सबकुछ बेहतर रहा है, लेकिन यहां आकर अभी काम का संकट खड़ा हो सकता है।
गांवों में हमें कहीं भोजन नहीं बनाने दिया तो कहीं संदिग्ध मानकर भीड़ ने घेर लिया
सुमराखेड़ा ञ्च पत्रिका. उज्जैन-मक्सी रोड पर रविवार को सुबह से ही सड़कों पर बड़ी संख्या में लोग पैदल एवं साइकिल पर अपने गांव की ओर जाते दिखाई दिए। पत्रिका प्रतिनिधि ने चर्चा की तो पूर्णसिंह, तनसिंह, छत्तर राठौर, मीराबाई, मोहन मोहिनी सभी झाबुआ निवासी ने बताया हम झाबुआ से फसल काटने के लिए मध्यप्रदेश आए थे। कोरोना वायरस महामारी व लॉकडाउन के कारण हम मध्यप्रदेश में फंस गए। इसके बीच हमारे मालिक व उच्च अधिकारी द्वारा हमें भरोसा दिलासा दिया कि 10 दिन बाद लॉकडाउन खुल जाएगा, लेकिन अभी तक लॉकडाउन खुलने का नाम ही नहीं ले रहा है। मालिक की तरफ से हमें साइकिल खरीद के तो दिलवा दी, लेकिन छोडऩे का इंतजाम नहीं किया। इसके कारण हम सब लोगों ने ठाना कि अब हम साइकिल से शिवपुरी जाएंगे। इन्होंने बताया रात्रि में चलना बहुत कठिन है एवं भोजन की भी व्यवस्था कुछ ही जगह मिली। कहीं पर हमें बनाना पड़ा तो कई से भोजन बनाते-बनाते भागना पड़ा, क्योंकि कुछ ग्रामीणों ने आपत्ति ली कि हमारे ग्राम में तुम नहीं रुकोगे और ना ही यहां पर भोजन बनाओगे और पुलिस सूचना पर तत्काल हमें वहां से गांव छोड़कर रास्ते पर ही रात गुजारनी पड़ी।
संदिग्ध होने की अफवाह पर भीड़ ने घेरा
संदीप कुशवाह ने बताया कि गुजरात से पैदल चलकर अपने जिले यूपी 30 प्रवासी मजदूर जा रहे हैं। उज्जैन-मक्सी रोड विजयगंज मंडी सड़क से 1 किलोमीटर अंदर रुक गए थे तो उनको देख किसी ने अफवाह फैला दी कि गांव के बाहर 30 मजदूर संदिग्ध रुके हुए हैं। देखते-देखते लोग इक_े होते चले गए। भीड़ देखकर छोटे बच्चे व महिला घबराकर रोने लगे। इसके बीच वहां से भीड़ चली गई। 10 किलोमीटर दूर उन्होंने रात गुजारी। उनका कहना था कि शायद हम भगवान भरोसे ही घर पहुंच पाएंगे। भगवान हमें जल्द घर पहुंचा दे। इन मजदूरों का कहना है कि किसी ने भोजन करवाया तो किसी ने रास्ते में हमें डांटा। किसी ने भगाया तो किसी ने रात्रि रोकने का इंतजाम किया।

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