मॉरिशस, मलेशिया जैसे देशों में हिन्दी की वजह से ही अपने देश जैसा माहौल मिल पाता है। लेकिन हमारे ही देश में हिन्दी के साथ परायों जैसा व्यवहार हो रहा है। तकनीकी पाठ्यक्रमों में अब भी हिन्दी का उपयोग नहीं हो रहा है और ना ही इस ओर कोई कदम उठाए जा रहे हैं। ये बात हिन्दी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में विक्रम विश्व विद्यालय के कुलानुशासक शैलेंद्र शर्मा ने कही।
शुक्रवार को वेद नगर स्थित आनंद भवन में कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें काव्य गोष्ठी हुर्ई। कार्यक्रम में कवि शिव चौरसिया, पिलकेंद्र अरोरा, शशि मोहन, डॉ.विष्णुप्रसाद कचोले, श्याम अटल, डॉ. पुष्पा चौरसिया सहित अन्य सदस्यों ने रचनाएं सुनाई।
हिन्दी दिवस पर बाल सभा
नागेश्वरधाम में हिन्दी दिवस के अवसर पर बाल सभा का आयोजन किया गया। हरेंद्रपाल सिंह चौहान ने बताया कि नई पीढ़ी को हिन्दी से जोडऩे के लिए प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस पर बाल सभा का आयोजन किया जाता है। इसमें स्वरचित कविता, भाषण सहित अन्य प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। शुक्रवार को भी शाम 5 से रात 10 बजे तक बाल सभा आयोजित की गई, जिसमें स्वरचित कविता अविराज सिंह, भाषण विराट आदित्य सिंह, निंबध स्नेहा गौतम, गीत प्रखर शर्मा व कृतज्ञ शर्मा ने प्रस्तुत किया। नाटक कनिष्का, वंशिका एवं श्रेया, मुहावरे ऋतु राठौर, चेतना राठौर, सुलेख अवनि माहेश्वरी एवं काजल राय ने प्रस्तुत किए। कहानी चेतन शर्मा, राहुल एवं हर्षित ने सुनाई।
सोशल मीडिया ने बिगाड़ा हिन्दी का स्वरूप : राजेन्द्र नागर निरन्तर, साहित्यकार, उज्जैन
हिन्दी को लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाने में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता पर इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता है कि वर्तमान हिन्दी के स्वरूप में जो बदलाव आया है वह भी सोशल मीडिया के कारण ही है। एक समय में प्रामाणिक हिन्दी के लिए मिसाल के तौर पर अखबारों को ही रखा जाता था। पाठक वर्ग अखबारों से ही हिन्दी सीखता था। अखबारों, पत्र पत्रिकाओं में प्रूफ रीडर की पोस्ट हुआ करती थी, लेकिन अब तेज खबर देने की प्रतिबद्धता ने मानो सब कुछ खत्म कर दिया है।
फेसबुक और व्हाट्सएेप पर संक्षिप्त लिखने की आदत से एक और संस्कृति हमारे सामने आई है, जिसे हिंग्लिश कहा जाता है। इस भाषा में न तो ढंग से हिन्दी होती है और न ही अंग्रेजी। अखबार हो या चैनल, मिली जुली हिन्दी के साथ-साथ अशुद्धता का भी समावेश होता है। बहुत आश्चर्य होता है जब हिन्दी अखबार शीर्षक इस प्रकार का बनाते हैं जैसे ‘लॉर्ड कृष्णा का हैप्पी बर्थडे आजÓ, ‘आज मनेगा टीचर्स डेÓ , ‘बस ने ठोंका ट्रक कोÓ। टीवी चैनलों पर उद्घोषक हिन्दी बोलने में कई बार बड़ी-बड़ी गलतियां कर जाते हैं। यह सही है कि हिन्दी ने अंग्रेजी व साथ ही साथ अन्य भाषाओं के शब्दों को भी आत्मसात किया है लेकिन इस चक्कर में हिन्दी का मूल चेहरा ही बिगड़ गया है। हमारे बच्चे टेन को हिन्दी में दस कहते हैं, लेकिन सिक्सटी नाइन को हिन्दी में क्या कहते हैं पूछने पर मुंह बाए देखने लगते हैं। मीडिया को अपने दायित्व को बखूबी निभाना चाहिए। व्याकरण की गलतियों के साथ-साथ सही वाक्य विन्यास व शब्द चयन पर भी ध्यान देवें तो निश्चित रूप से दुनिया में प्रामाणिक हिन्दी का स्वरूप ही लोकप्रिय होगा वरना जग हंसाई होने में देर नहीं लगेगी।