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#election 2018 : यहां हर बार मतदाता बदल देते हैं विधायक

locationउज्जैनPublished: Sep 07, 2018 10:16:36 pm

Submitted by:

Lalit Saxena

अनुसूचित जनजाति के आरक्षित तराना विधानसभा में मतदाता हर पांच साल में विधायक को बदल देते हैं।

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उज्जैन. अनुसूचित जनजाति के आरक्षित तराना विधानसभा में मतदाता हर पांच साल में विधायक को बदल देते हैं। पिछले 15 वषज़् से यहां भाजपा काबिज, लेकिन हर बार उसके विधायक का चेहरा दूसरा रहा है। इस बार भी भाजपा में जातिगत समीकरण के तहत अंदरुनी उठापठक होकर स्थानीय और बाहरी का मुद्दा छाया हुआ है। वहीं कांग्रेस में गुटबाजी खत्म नहीं हो रही है। दो नगर पंचायत और तीन जिला पंचायत के वाडज़् कांग्रेस के पास होने के बाद भी यहां कांग्रेसी नेताओं में कलह बरकरार है। हालांकि कांग्रेस किसानों की नाराजी को भुनाकर सीट जीतने की आस लगाए बैठी है।

तराना : कांग्रेस में नहीं सवज़्मान्य नेता
तराना विधानसभा से विधायक अनिल फिरोजिया फिर से दावेदार हैं। यहां पिछली बार टिकट कटने से चुनाव नहीं लड़ पाए पूवज़् विधायक ताराचंद गोयल भी टिकट मांग रहे हैं। कांग्रेस से जिला पंचायत अध्यक्ष महेश परमार दावेदारी कर रहे हैं, लेकिन उनकी दावेदारी के विरोध में कांग्रेस से ही आवाज उठ रही है। पूवज़् सांसद प्रेमचंद गुड्डू की भी आलोट के साथ इस विधानसभा पर नजर है।

2013 के वोट
भाजपा
अनिल फिरोजिया : 64792
कांग्रेस
राजेंद्र मालवीय : 48657
ये हैं चार मुद्दे
पयाज़्प्त स्वास्थ्य सुविधा नहीं, अंदरुनी ग्रामीण सड़क नहीं व उद्योग स्थापना नहीं और बेरोजगारी की समस्या।

भाजपा के मजबूत दावेदार
– ताराचंद गोयल: पूवज़् विधायक
– ओम राजोरिया, भाजपा नेता
– हरिनारायण मालवीय, भाजपा नेता

कांग्रेस के मजबूत दावेदार
– राजेंद्र मालवीय- पूवज़् प्रत्याशी
– करण गुजराती- पूवज़् जनपद सदस्य

जातिगत समीकरण : गुजज़्र व बलाई समाज बहुल इस सीट पर जातिगत उम्मीदवार खासे मायने हैं। पिछली बार खटिक समाज से विधायक की जीत हुई थी। इस बार स्थानीय और जाति के प्रत्याशी को उतारने को लेकर चचाज़् है।

चुनौतियां :
कांग्रेस : पाटीज़् में गुटबाजी से पार पाना सबसे बड़ी चुनौती है।
भाजपा : पाटीज़् में पदाधिकारियों का आपसी मतभेद परेशानी बना हुआ है।
विधायक का परफामेज़्ंस : विधानसभा में सड़कों का जाल बिछाया। व्यवहार कुशल भी लेकिन पाटीज़् में स्थानीय की बजाय बाहरी को तवज्जो से कायज़्कताज़् नाराज।

क्षेत्र में विकास के कायज़् तो हुए हैं लेकिन शासकीय योजनाओं का ठीक से फायदा नहीं मिला। बीपीएल के नाम कट गए। किसान भी परेशान हैं।- रूपलाल मालवीय, किसान

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