करीब दो करोड़ की लागत वाले प्रोजेक्ट में सिविल वर्क 40 फीसदी से अधिक हो चुका है। इसी वर्ष नवंबर-दिसंबर तक कार्य पूरा करने का लक्ष्य है। केंद्र के डायरेक्टर मुकेश इंगले बताते हैं, योजनानुसार पूर्ण विकसित होने के बाद यह सर्पों सहित सरीसृप पर आधारित देश का पहला ऐसा केंद्र होगा जहां इनकी एनाटॉमी, फिजियोलॉजी (शरीर के साथ ही मायथोलॉजी (सर्पों को लेकर धार्मिक मान्यता) आदि की प्रभावी तरीके से विस्तृत जानकारी मिलेगी।
डिजिटल इंटरपीटिशन सेंटर के साथ मिलेगी सांपों से संबंधित जानकारी व धार्मिक मान्यता, सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स भी शुरू होगा। दूसरे चरण में स्नेक पार्क बनेगा- दूसरे चरण में स्नेक पार्क विकसित करने का भी प्रस्ताव है। यह चिड़ियाघर के रूप में होगा। इसमें सांपों की विभिन्न प्रजाति के साथ ही अन्य जानवर भी रहेंगे। पार्क पर दो-ढाई करोड़ रुपए से अधिक खर्च होने का आंकलन है।
इसलिए विशेष होगा पार्क
3. ट्रेनिंग सेंटर- सर्प दंश से होने वाली मौत व सांपों की रक्षा के उद्देश्य से वर्क फोर्स तैयार करेंगे। इसमें मेडिकल स्टॉफ, वन विभाग कर्मचारी आदि को जरूरी ट्रेनिंग दी जाएगी। केंद्र की ओर से संबंधित विभागों को पत्र भी भेजे गए हैं।
4. रेपटाइल हाउस- सांपों के साथ ही छिपकली, घड़ियाल, मगरमच्छ, कुछए रहेंगे जिन्हें आगंतुक देख सकेंगे। इनके ही डायरोमा (प्रतिकृति) भी रहेंगे जो हबहु सरीसृप जैसे नजर आएंगे।
1. इंटरपीटिशन सेंटर- विशाल डिजिटल वॉल पर सांपों से जुड़ी जानकारी जैसे उनका नाम, खान-पान, मिलने का क्षेत्र, विशेषता, पहचान, आदत आदि मिलेगी। सांपों से बचाव आदि के तरीके बताएंगे।
2. हार्पेटोलॉजिकल रिसर्च लाइब्रेरी- सरीसृप पर अधारित रिसर्च सेंटर रहेगा। 5 घंटे से 6 महीने की अवधि का सर्टिफिकेट व डिप्लोमा र्कोस पढ़ाया जाएगा। इसे ग्रीन स्कील डेवपलमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत शुरू करने की योजना है।
नागों के लिए खास है उज्जैन
महाकाल की नगरी में नाग भी बहुतायत मिलते हैं। मप्र में करीब 50 प्रजाति के सांप पाए जाते हैं। इनमें से उज्जैन जिले में 27 और शहर में 13 प्रकार के सांप पाए जाते हैं। इन 13 प्रजातियों में तीन प्रजाति के अतिविषैले सांप कोबरा, रेसल वाइपर (दीवड़) व कामन करैत यहां पाए जाते हैं। इनके अलावा डेंगू, धामन, घोड़ापछाड़, अलंकृत, कुकरी, माटी का सांप, सीता की लट जैसे अविषैले सांप भी बहुतायत मिलते हैं।