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इनसे जिसने दोस्ती की, उसे मिला फायदा

locationउज्जैनPublished: Aug 08, 2019 10:06:01 pm

Submitted by:

aashish saxena

लवर्स-डे आज : किताबों की जगह अब इंटरनेट बना लोगों का सच्चा मित्र, कई युवा लाइब्रेरी में भी बैठकर इंटरनेट पर पढ़ते हैं किताब
 

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उज्जैन. कहते हैं किसी व्यक्ति के लिए उसका सबसे अच्छा दोस्त किताब होती है। डिजिटल युग में अब एक दोस्त भी जुड़ गया है… इंटरनेट। नई पीढ़ी के कई युवाओं के लिए यह नया दोस्त किताबों से भी आगे निकल गया है। फिर बात कोर्स की पढ़ाई की हो या साहित्य, उपन्यास आदि की। हर कुछ इंटरनेट के जरिए सर्च इंजन पर उपलब्ध है।

शुक्रवार को वल्र्ड बुक लवर्स-डे है। मसलन किताबों से प्रेम करने के महत्व को उल्लेखित करने का दिन। शहर में भी कई लोग हैं, जो किताबों को अपना बेहतर दोस्त मानते हैं लेकिन कई एेसे भी हैं, जो किताबों के साथ पठन-पाठन के लिए इंटरनेट को बेहतर विकल्प के रूप में देख रहे हैं। यही नहीं कई एेसे भी हैं, जो पढऩे के लिए लाइबे्ररी में घंटों बैठते हैं लेकिन वहां भी किताबों से ज्यादा इंटरनेट का उपयोग करते हैं। बदलते दौर में पठन-पाठन के विषय बदले हैं। वहीं तरीका भी बदल गया है। वल्र्ड बुक लवर्स डे पर एक रिपोर्ट-

बदलते दौर की साक्षी है शहर की सबसे पुरानी लाइब्रेरी युवराज

पढऩे का शौक रखने वाले शहरवासियों में शायद ही कोई एेसा हो जो श्री युवराज जनरल लाइब्रेरी से परिचित न हो। छत्रीचौक स्थित युवराज लाइबे्ररी शहर की सबसे पुरानी लाइब्रेरी है। इसकी स्थापना प्रभुलाल गौड़ अशहर ने वर्ष 1993 में की थी। तब से अब तक के पठन-पाठन के बदलते दौर की यह साक्षी है। इसमें नई पुरानी १६ हजार से अधिक पुस्तकों का संग्रह हैं, जिसमें मैग्जीन, उपन्यास, साहित्य आदि शामिल हैं। यहां कुछ किताबें तो 200 वर्ष पुरानी भी हैं। इसके साथ ही वर्ष से लेकर 2004 तक के गजट नोटिफिकेशन भी यहां उपलब्ध हैं। कभी इस लाइब्रेरी में किताब पढऩे के शौकीनों की भीड़ रहती थी लेकिन अब स्थिति बदली है। वर्तमान में लाइबे्ररी के करीब 600 सदस्य हैं लेकिन पुस्तक पढऩे के लिए 30-35 लोग ही नियमित आते हैं। किताब पढऩे वालों की संख्या कम होने के कारण अब लाइब्रेरी में बैठने के लिए विद्यार्थियों को भी सुविधा दी जा रही है। कई विद्यार्थी यहां 5-8 घंटे बैठकर अपने विषय की पढ़ाई या प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी करते हैं।

पाठक कम तो बंद हुई लाइब्रेरी

90 के दशक में शहर में लाइब्रेरी का खासा चलन था। पुराने शहर के साथ ही नए शहर में भी कई लाइब्रेरी खुली। यहां बड़ों के लिए मैग्जीन, उपन्यास, साहित्य आदि के साथ बच्चों के लिए कॉमिक्स, पॉकेट बुक आदि का कलेक्शन रहता था। बच्चों के स्कूली पढ़ाई में अधिक व्यस्त होने के कारण युवा पीढ़ी अन्य किताबों से दूर हुई वहीं घरों में भी किताबों की जगह कम होती गई। नतीजतन सतीगेट, बंबाखाना, फ्रीगंज, देवासरोड आदि क्षेत्रों में चलने वाली लाइब्रेरी धीरे-धीरे हो गई। अब शहर में निजी 5-7 ही लाइब्रेरी ठीक से संचालित हो रही हैं।

विद्यार्थी अधिक आते हैं

करीब 25 वर्षों से श्री युवराज लाइब्रेरी में सेवा दे रहे ध्रुव कुमार परमार बताते हैं, पहले उपन्यास, साहित्य, मैग्जीन व अन्य विषयों की पुस्तकें पढऩे वाले काफी आते थे लेकिन अब इन पुस्तकों को पढऩे वालों की संख्या कम हुई है। इसलिए लाइब्रेरी में स्टूडेट्ंस के पढऩे के लिए सुविधा शुरू की है। कई स्टूडेंट्स यहां अपने कोर्स या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने आते हैं। हमने भी उनकी सुविधा के लिए बैठने, आदि की व्यवस्था की है। लाइब्रेरी को ई-लाइब्रेरी भी बनाया जा रहा है ताकि बच्चों को इसका लाभ मिले। ००

किताबों से पढऩा ज्यादा पसंद है

दानीगेट निवासी नेहा राठौर बैंकिंग परीक्षा की तैयारी कर रही है। अपने कोर्स की पढ़ाई के साथ ही वह उपन्यास पढऩे की भी शौकीन हैं। नेहा कहती है, कम्प्यूटर या मोबाइल के जरिए इंटरनेट पर पढऩे से ज्यादा अच्छा किताबों से पढऩा लगता है। सोशल मीडिया या इंटरनेट पर आधा-एक घंटे से अधिक समय पर पढ़ाई नहीं की जा सकती लेकिन किताबों से पढऩे पर एकाग्रता अधिक समय तक रहती है। जो जानकारी किताबों में नहीं मिलती तो वे इंटरनेट का उपयोग करती है।

सब कुछ ऑनलाइन ही पढ़ते हैं

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे रविसिंह सिसौदिया पढ़ाई करने के लिए ३० किलोमीटर दूर ग्राम चोसला से उज्जैन की लाइब्रेरी आते हैं ताकि पढऩे का अच्छा माहौल मिल सके। रवि बताते हैं, पहले वह चार-पांच मैग्जीन खरीदते और पढ़ते थे लेकिन जब से इंटरनेट सुविधा सस्ती व आसानी से उपलब्ध हुई है, वे अपनी पढ़ाई ऑनलाइन ही करते हैं। उनका कहना है किताब में लिखी कोई जानकारी यदि अपडेट होती है तो हमें किताबों में भी संशोधन करना पड़ता है लेकिन इंटरनेट पर अपने-आपन ही अपडेट जानकारी पीडीएफ में उपलब्ध हो जाती है।

किताबों के साथ ऑनलाइन पढ़ाई भी

फाजलपुरा निवासी गौरीशंकर साध पहले कोर्स की किताबों के अलावा अन्य विषय की किताबें भी काफी पढ़ते थे लेकिन अब वे इन्हें समय नहीं दे पाते हैं। गौरीशंकर कहते हैं, कॅरियर बनाने के लिए कोर्स की पढ़ाई ही इतनी हो जाती है कि दूसरी किताबें पढऩे का समय नहीं मिलता। उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए किताबों के साथ इंटरनेट को भी दोस्त बना रखा है। कुछ समय वे किताबों के बीच बिताते हैं तो कुछ समय इंटरनेट के जरिए पढ़ाई करते हैं। गौरीशंकर कहते हैं किताबें आज भी व्यक्ति की सबसे अच्छी दोस्त है।

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