कार्यक्रम में विशिष्ठ अतिथि के रूप में उपस्थित वैदिक विद्वान डॉ. केदारनाथ शुक्ल ने कहा कि वेद पूर्णता के प्रतीक हैं। समाज कल्याण तथा समरसता वेदों का ध्येय है, क्योंकि वहां द्विपद चतुष्पद के साथ पेड़-पौधों के प्रति भी सम्मान व्यक्त किया गया है, वहीं दिल्ली से आए प्रो. देवेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि वेद सभी विद्याओं को स्रोत है। वेद विश्व कल्याणधायक ग्रंथरत्न है। इसमें मानवमात्र के कल्याण के लिए ही नहीं अपितु चराचरात्मक जगत के कल्याण के लिए संदेश ग्रंथित है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि कंठस्थीकरण से वेदों की परंपरा यथावत प्राप्त हो रही है। यह बोध देता है। अर्थबोध आवश्यक है परंतु उससे पूर्ण मूल की रक्षा आवश्यक है। किसी भी तथ्य की दुव्र्याख्या नहीं होना चाहिए। इसके पूर्व वैदिक विद्वान पं. दिलीप कोरान्ने, अजय दाणी, दिगंबर लाखे, पतंजहल पांडे, जयनारायण शर्मा, सोहन भट्ट, अंकित जोशी, स्वप्निल लाखे, आकाश रावल, पंकज रामदासी, मोहनलाल शर्मा, आशुतोष शास्त्री, ज्योतिस्वरूप तिवारी, धर्मेंद्र शर्मा सहित वैदिक बटुकों ने अपने-अपने वेद से शाखा स्वाध्याय प्रस्तुत किया। अतिथियों का स्वागत अकादमी निदेशक प्रतिभा दवे ने किया। स्वागत भाषण एवं आभार प्रदर्शन संतोष पंड्या ने किया तथा कार्यक्रम का संचालन डॉ. पीयूष त्रिपाठी ने किया। दोपहर के सत्र में न्यायमृर्ति वीरेंद्रदत्त ज्ञानी इंदौर एवं डॉ. मोहन गुप्त ने अथर्ववेद में राष्ट्रीयता एवं सुशासन विषय पर विचार व्यक्त किए।
कल्पवल्ली का समापन दोपहर ३ बजे महर्षि वाणिनी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रमेशचंद्र पंडा की अध्यक्षता में, डॉ. विरूपाक्ष जड्डीपाल सचिव महर्षि सांदीपनि वेदविद्या प्रतिष्ठान के मुख्य आतिथ्य में होगा। इस अवसर पर विभाष उपाध्याय विशिष्ठ अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे। इसके पूर्व प्रात: १०.३० बजे वैदिक साहित्य में सामाजिक समभाव शीर्षक पर शोध संगोष्ठी तथा ९.३० बजे वेदशाखा स्वाध्याय के सत्र आयोजित होंगे।