बता दें, भस्म आरती में चलायमान दर्शन व्यवस्था सिंहस्थ 216 के समय लागू की गई थी, जो काफी हद तक सफल भी रही थी। बारह ज्योतिर्लिंगों में केवल महाकाल मंदिर ही ऐसा है, जहां प्रतिदिन भस्म आरती होती है। इसमें शामिल होने के लिए हर भक्त लालायित रहता है। मंदिर के नंदी हॉल, कार्तिकेय व गणेश मंडपम् परिसर में बैठने वाले भक्तों की संख्या 2500 से अधिक नहीं रखी जा सकती, इसलिए कई भक्तों को अनुमति नहीं मिल पाती, और वे निराश होकर लौटने को मजबूर हो जाते हैं।
भस्म आरती में भीड़ को देखते हुए लिया था निर्णय
भस्म आरती में लगातार बढ़ रही भीड़ को देखते हुए सीएम ने प्रमुख तौर पर इस बिंदु को शामिल किया था। इस व्यवस्था को लेकर भोपाल में मुख्यमंत्री के साथ हुई अतिमहत्वपूर्ण बैठक में प्रशासक, समिति सदस्य व पुजारीगण शामिल हुए थे। चर्चा हुई थी कि चलायमान दर्शन व्यवस्था पर शीघ्र अमल हो लेकिन अभी तक महाकालेश्वर मंदिर में इस व्यवस्था को अमल में नहीं लाया जा सका।
यह आ रही परेशानी
उपप्रशासक सीपी जोशी के अनुसार मंदिर में भस्म आरती के दौरान चलायमान व्यवस्था के संबंध में बैठक में चर्चा हुई थी, लेकिन यह इसलिए शुरू नहीं हो सकी, क्योंकि चलायमान व्यवस्था के दौरान श्रद्धालु काफी आवाज करते हैं, जिससे बैठने वाले भक्तों को असहजता होती है। वहीं मंदिर के गर्भगृह में होने वाले मंत्रोच्चारण में भी पुजारियों को परेशानी होती है।
इन्होंने कहा
बाबा महाकाल की भस्म आरती में सिंहस्थ की तर्ज पर चलायमान व्यवस्था शीघ्र लागू करने पर विचार चल रहा है। पहले इसे प्रायोगिक तौर पर करके देखते हैं, यदि सबकुछ ठीक रहा तो इसे निरंतर कर देंगे।
– एसएस रावत, प्रशासक महाकाल मंदिर समिति।