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ढाई दशक से अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे मिल मजदूर, सरकार की वादा-खिलाफी से आक्रोशित

locationउज्जैनPublished: Oct 19, 2018 01:32:02 pm

Submitted by:

Lalit Saxena

वादा कर बदल गई सरकार, हक के इंतजार में दुनिया से अलविदा सैकड़ों मजदूर, जमीन नहीं बिकने से अटका 67 करोड़ का भुगतान

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राहुल कटारिया@उज्जैन. ढाई दशक से अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे द बिनोद-विमल मिल के मजदूर सरकार की वादाखिलाफी से आक्रोशित है। तीन साल पहले मुख्यमंत्री ने इन्हें भरोसा दिया की जमीन बेचकर मजदूरों की पाई-पाई चुकाएंगे लेकिन बाद में सरकार ने हाइकोर्ट में विचाराधीन प्रकरण में जमीन नीलाम नहीं किए जाने की अपील देकर मामले में नया पैंच फंसा दिया। लंबे संघर्ष में 40 फीसदी मजदूर तो स्वर्ग सिधार गए, बाकी अधिकांश बीमार, लाचार है, जो ठीक है वे इस लड़ाई को लड़ रहे हैं। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधयों ने भी मजदूरों के हित में आवाज नहीं उठाई।

वर्ष 1991 में बिनोद-विमल कपड़ा मिल बंद हुई थीं। इसके बाद मजदूरों की ग्रेच्युटी, रिचरमेंट व वेतन बकाया का प्रकरण चल रहा है। सालों तक कोर्ट की दहलीज में चले मामले में आखिरकार 67 करोड़ बकाया पर मुहर लगी। जिसमें से साल कुछ आंशिक भुगतान साल 2009 में हुआ, लेकिन तब से अब तक शेष राशि का भुगतान अटका है। मजदूर बकाया साल से ही मय ब्याज भुगतान करने की मांग पर अड़े हैं। इधर शासन जमीन बेचने के पक्ष में भी नहीं और मजदूरों का भुगतान नहीं करवा रहीं। इसी पैच में मामला उलझा हुआ है।

अब नया पैंतरा, मजदूरों से हर बार धोखा
बिनोद-विमल मिल की आगर रोड क्षेत्र में 90 बीघा जमीन है। इस पर स्मार्ट सिटी अंतर्गत प्रोजेक्ट प्रस्तावित किए गए हैं।
हाइकोर्ट ने भुगतान प्रकरण में शासन को आदेश दिए हैं कि जमीन नीलाम कर मजदूरों का हक का पैसा चुकाया जाए।
इस पर मप्र शासन ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी, फैसले को चुनौती दे दी।

मजदूरों की आेर से दबाव बनने पर सरकार ने हलफनामा दिया की मजदूरों का भुगतान करेंगे।
ये कहां से होगा और कब तक इस पर कोई स्पष्ट मत नहीं।
अधिकारियोंं ने मजदूर नेताओं से सहमति बनाना चाहिए, लेकिन यूनियनों ने साफ कह दिया भुगतान खातों में आने पर ही कोई सहमति देंगे।

मिल पर एक नजर
मिल – द बिनोद व विमल कपड़ा मिला
मिल भूमि – 90 बीघा
कुल मजदूर – 4353
दुनिया छोड़ गए – 1800
कुल बकाया – 67 करोड़
27 साल का ब्याज – जो हाइकोर्ट तय करेगा

आक्रोश में मजदूर, बोले हमारे साथ धोखे पर धोखे
सरकार में बैठे लोग हमारे साथ हमेशा धोखा करते हैं। सीएम खुद मजदूरों के बीच निगम चुनाव में बोल गए थे कि जमीन बेचकर पाई-पाई चुकाएंगे, लेकिन अब शासन का रुख बदल गया। कांग्रेस भी मजदूरों के हित की बात करती है, लेकिन कभी मजदूरों को प्रतिनिधित्व नहीं देती, ताकि हम आवाज उठा सकें।
– ओमप्रकाशसिंह भदौरिया, अध्यक्ष, मिल मजदूर संघ इंटक

बकाया के इंतजार में सैकड़ों मजदूर दुनिया से अलविदा हो गए, लेकिन फिर भी सरकार को तरस नहीं आया। जो बचे हैं, उनमें से भी कई लाचार व बेसहारा है। रुपया बाद में मिलेगा तो वे क्या सुख भोग पाएंगे। कानूनी लड़ाई अब अंतिम दौर में है, हमें उम्मीद है की सारा बकाया मय ब्याज मिलेगा।
– संतोष सुनहरे, उपाध्यक्ष, मिल मजदूर संघ इंटक

हाइकोर्ट तय कर चुका कि जमीन लीज नहीं की नहीं, दान की है। यानी इसे बेचकर मजदूरों का बकाया भुगतान आसानी से किया जा सकता है, लेकिन सरकार हल निकालने की बजाय हमारे खिलाफ की खड़ी हो रही है। यह मजदूरों से जुड़े हजारों परिजनों के साथ अन्याय है।
– सुरेश चंद्र, मंत्री, मिल मजदूर संघ इंटक

बकाया भुगतान के इंतजार में आधा जीवन बीत गया, ना जाने ईश्वर सरकार में बैठे लोगों को कब सद्बुद्धि देगा। उधार लेकर तो मजदूर अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं, अब तो धैर्य भी जवाब देने लगा।
– रामचंद्र सूर्यवंशी, मिल मजदूर

मजदूरों को उनका हक दिलाने सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। मामला न्यायालय में विचाराधीन होने के साथ इसमें कुछ कानूनी उलझनें हैं। इनके दूर होने पर मजदूरों को उनका हक मिलेगा। इसकी घोषणा सीएम भी कर चुके हैं।
– पारस जैन, ऊर्जा मंत्री

22 को बसों में इंदौर हाइकोर्ट जाएंगे मजदूर
22 अक्टूबर को इंदौर हाइकोर्ट में कंपनी जज के समक्ष भुगतान प्रकरण की सुनवाई है। तारीख पर तारीख से तंग आ चुके मजदूर इस बार कोर्ट के समक्ष हाजिर होकर अंतिम निर्णय पारित करने की गुहार लगाएंगे। मिल मजदूर संघ ने तय किया है कि 22 को श्रम शिविर कोयला फाटक से मजदूर बसों में इंदौर हाइकोर्ट जाएंगे।

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