इकलौते बेटे को भी भेज दिया सेना में
एक बेटा उसे भी सेना में भेजा, इसी सीख के साथ कि कभी दुश्मन को पीठ मत दिखाना, सबसे पहले मातृभूमि तेरी मां है। उज्जैन के महानंदानगर में फॉरेस्ट विभाग से सेवानिवृत्त पति राधेश्याम जोशी के साथ रह रही मां सरजूदेवी जोशी को आज भी किसी के सहारे की जरूरत नहीं है। अपना काम वे खुद करती हैं। पूरा घर बलराम की तस्वीरों और उसकी वीरता-बलिदान की गाथा को बयां करते प्रशस्ति पत्र, शील्डों से भरा हुआ है। पूछने पर वह कहती हैं, बलराम आप सबमें जिंदा है। गर्व है कि मैं बलराम की मां हूं, ऐसा बेटा भगवान हर घर में पैदा करे।
मेरे लिए इससे बड़ा गर्व और कुछ नहीं
बीएसएफ (बॉर्डर ऑफ सिक्युरिटी फोर्स) में उपनिरीक्षक रहते बलराम जोशी वर्ष 2000 में 11 जुलाई को शहीद हुए थे। 17 साल बीत गए, लेकिन हर साल 11 जुलाई व 30 नवंबर को शहीदपार्क स्थित आदमकद प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने सैकड़ों लोग पहुंचते हैं। मां सरजूदेवी का कहना है कि बेटा देश के काम आया, इससे बड़ा और क्या गर्व होगा मेरे लिए। वह तो मेरी कोख को धन्य कर गया।
बहनें आज भी बांधती हैं राखी
बलराम की तीन बड़ी बहनें हैं। उन्हें अपने भाई की शहादत पर गर्व है। वे हर साल रक्षाबंधन पर उनकी प्रतिमा को राखाी बांधने पहुंचती हैं। मिष्ठान वितरण होता है, बैंड भी बजता है। उज्जैन के शहीद पार्क में स्थापित प्रतिमा पर बलराम के जन्म दिवस और शहादत दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। परिवार के लोग बताते हैं कि जब बलराम के विवाह संबंध की बात करते थे, तो वह एक ही जवाब देता था कि बीएसएफ में भर्ती होने के साथ ही शादी मौत से हो गई है।