पर्यटन को बढ़ावा देने के दावे हो रहे
प्राचीन शहर उज्जैन में धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक स्थानों के बूते ही पर्यटन को बढ़ावा देने के दावे हो रहे हैं। इसके लिए हर साल मोटी रकम भी खर्च हो रही है बावजूद कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर जिम्मेदारों का कोई ध्यान नहीं है। कहीं गंदगी फैली हुई है तो कहीं अतिक्रमण पसर रहा है। कुछ स्थान तो वर्षों बाद भी पहचान के मोहताज हैं। कुछ ऐसे स्थान भी हैं जो सौंदर्यीकरण के बड़े प्रोजेक्ट की कवायद में ही लंबे समय से बदहाल पड़े हैं। बेकद्री की धूल खा रही शहर की ऐसी ही कुछ धरोहरों पर एक रिपोर्ट।
चौबीस खंभा माता मंदिर : देखरेख के अभाव में टूटने लगी शिलाएं
गुदरी स्थित चौबीस खंभा द्वार (चौबीस खंभा माता मंदिर) प्राचीन समय में महाकाल मंदिर के प्रवेश करने का पुरातन द्वार था। संस्कृत साहित्य में महाकाल मंदिर के विशाल महाकाल वन का उल्लेख मिलता है। महाकाल वन एक बड़े कोट (दीवार) दीवार से घिरा था। द्वार के दोनों पाश्र्व भाग में अलंकृत चौबीस खंभे लगे हैं जिसके कारण इसे चौबीस खंभा दरवाजा कहा जाता है। चौबीस खंभा प्रवेश द्वार के दोनों और दो देवियों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। इन पर परमार कालीन लिपि में महामाया व महालया नाम उत्कीर्ण हैं। वर्तमान में भी प्रतिवर्ष इस मंदिर पर नगर पूजा होती है। परमार कालीन कला का अद्भुत उदाहरण होने के बावजूद यह स्थान उपेक्षित है। आसपास अतिक्रमण फैल गया है, परसिर में रखी विश्राम कुर्सी टूट चुकी हैं तो प्राचीन खंभों की शिलाएं भी टूटने लगी हैं। देखरेख की स्थिति इससे ही पता चलती है कि मंदिर में जगह-जगह मकड़ी के जाले लगे हुए हैं।
नियमित सफाई हो
मंदिर के आसपास से अतिक्रमण हटाकर इसका पूरा स्वरूप सामने लाना चाहिए। टाइल्स या नए पत्थरों की जगह पुराने स्वरूप के पत्थरों से मरम्मत हो। नियमित सफाई व्यवस्था रहे।
रुद्रसागर : लाखों खर्च, फिर भी लगता कचरा स्थल
महाकाल मंदिर के पीछे स्थित दोनों रुद्रसागर की स्थिति खराब है। सौंदर्यीकरण के नाम पर लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी यहां गंदगी फैली है। बड़े रुद्रसागर में जलकुंभी जमी है, छोटा रुद्रसागर दलदल-सा हो रहा है। यहां वॉकिंग के लिए पॉथ-वे बनाया है, लेकिन इसका उपयोग नहीं हो रहा। इनके विकास के लिए अब स्मार्ट सिटी में प्लान तैयार करने की बात कही जा रही है, लेकिन लंबा समय बितने के बाद भी अब तक कोई प्रोजेक्ट तैयार नहीं हुआ है।
रखरखाव की दरकार
स्मार्ट सिटी अंतर्गत जल्द ही इनके विकास व सौंदर्यीकरण की योजना तैयार की जाना चाहिए। महाकाल मंदिर के नजदीक होने के कारण नियमित रखरखाव हो। गंदा पानी जमा न होने पाए, इसके लिए फिल्टर प्लांट भी लगाया जा सकता है। योजना इस प्रकार बने कि आमजन भी इनका लाभ ले सकें।
बेताल वृक्ष : सूचना बोर्ड तक नहीं
राजा विक्रमादित्य की नगरी में ही बेताल रहता था। बताया जाता है कि गढ़कालिका मंदिर के पीछे ओखलेश्वर श्मशान घाट के नजदीक विशाल वृक्ष था जहां बेताल रहता था और उसे पकडऩे के लिए राजा विक्रमादित्य यहीं आते थे। बेताल रोज वृक्ष से उड़कर सामने शिप्रा पार स्थित विक्रांत भैरव के मंदिर पर जाता और एक चौक पर बैठकर उपासना करता था। क्षेत्र के जानकार बताते हैं, वर्तमान में बेताल का वृक्ष नहीं है लेकिन वह जिस जगह था, वहां टीला बना हुआ है। सिंहस्थ बाद इस स्थान पर भी एक झोपड़ी बन चुकी है। खास बात यह कि अपने आप में विशेष स्थान होने के बावजूद शहर के ही अधिकांश लोग इससे बेखबर हैं। प्रशासन ने भी इसके प्रचार-प्रचार के लिए कोई कदम नहीं उठाए। यहां तक कि एक सूचना बोर्ड तक नहीं लगा है।
हटे अतिक्रमण
खेत्र के आसपास से अतिक्रण हटाकर वहां लैंड स्केपिंग व सौंदर्यीकरण किया जाए। आसपास पुराने निर्माण व मंदिर हैं, उनका संधारण किया जाए। विक्रम बेताल की कथाओं का चित्रण किया जा सकता है। शहर के प्रमुख दार्शनिक स्थलों में शामिल कर इसका प्रचार-प्रसार किया जाए। सामने स्थित विक्रांत भैरव मंदिर क्षेत्र का भी विकास किया जाए।