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बगैर एजेंट के कोई काम नहीं होता है यहां

locationउज्जैनPublished: Dec 30, 2019 10:44:59 pm

Submitted by:

Shailesh Vyas

आरटीओ में किस काम कितना शुल्क,लोगों को पता नहीं हैं। कार्यालय में शुल्क की कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं हैं। कोई बताने वाला भी नहीं हैं। सब कुछ एजेंटों के हाथों में लोग परेशान होते हैंं।

No work is done without an agent here

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उज्जैन. क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ) में किस काम का कितना शुल्क लगता है इसका पता आम लोगों को नहीं हैं। इसकी जानकारी हासिल करना यहां टेढ़ी खीर है। दरअसल यह शुल्क की कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं है और न कोई बताने वाला। आरटीओ में आलम है कि न अफसर ने कही और न बाबूने कही, दलाल/ एजेंट जो कहे वहीं सही। यानि दलाल जो शुल्क बता दें वहीं लगेगा। आम व्यक्ति यदि आरटीओ में अपने किसी कार्य को स्व प्रेरणा या स्व प्रयासों से करना चाहे तो वह एक टेबल से दूसरी टेबल या एक खिड़की से दूसरी खिड़की चक्कर लगाता रहे, उसे हर जगह एक जवाब मिलता है। जाकर किसी भी दलाल को पकड़ लो, रुपए दो और काम हो जाएगा। उज्जैन के आरटीओ में कोई भी काम एजेंट और दलालों के बगैर संभव नहीं है। इतना ही नहीं यहां आम नागरिक को यह बताने वाले ही कोई नहीं मिलता है कि उसका काम कैसे और कितने निर्धारित शुल्क में होगा। यह न पूछताछ खिड़की है और न काम के लिए शासन द्वारा निर्धारित शुल्की सूची। सिटीजन चार्टर में नहीं है, जिससे यह पता चल सकें कि कौन सा कितने समय में होगा। अधिकारी के कक्ष पर दलालों का कब्जा अव्यवस्था इस कदर हावी है कि अंदर-बाहर और अधिकारी के कक्ष पर एजेंट और दलालों का कब्जा ही रहता है। अधिकारी और ऑफिस के बाबू भी किसी काम की जानकारी लेने पर मौजूद एजेंट और दलालों के हवाले से काम के पैसे और काम की जानकारी देते हैं, मगर साथ जोड़ देते है कि नीचे जाकर एजेंट से बात करे लें, वह सब कुछ करा देगा। एेसी स्थिति एक-दो दिन की नहीं बल्कि आए दिन बनी रहती है। पत्रिका की टीम ने सोमवार को क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय में विभिन्न शाखाओं में कार्यों और गतिविधियों पर नजर रखी।
लाइसेंस के लिए छात्राएं परेशान
शासन द्वारा छात्राओं/महिलाओं के लिए नि:शुल्क ड्राइविंग लाइसेंस बनाने का प्रावधान कर रखा हैं। इसके बाद लाइसेंस बनवाने वाले आवेदकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। सोमवार को बड़ी संख्या में परिवहन कार्यालय में छात्राएं हाथों में आवेदन और आवश्यक दस्तावेज लेकर एक कक्ष से दूसरे कक्ष में चक्कर लगा रही थीं। पड़ताल करने में पर पता चला कि सभी को दोपहिया वाहन के लिए लाइसेंस चाहिए। छात्राओं ने चर्चा में बताया कि ऑफिस में यह बताने वाला कोई नहीं है कि आवेदन कहां दिखाना हैं। जब छात्राओं को बताया कि आप आरटीओ साहब से बात करें। छात्राओं ने बताया कि उनके कक्ष पर ताला लगा हैं। एक छात्रा जिसका पूर्व लाइसेंस बन चुका है,उसका कहना है कि लायसेंस बनाने के लिए तो चक्कर लगाना ही पड़ता हैं। ऑफिस में कोई हेल्प डेस्क/पूछताछ कक्ष नहीं हैं।
जाओ खाली लिफाफा लेकर आओ
लाइसेंस बनवाने के लिए परिवहन कार्यालय पहुंची छात्रा पूजा पाटीदार के सम्पूर्ण दस्तावेज के साथ आवेदन लेकर वापस लौट रही थीं। पूजा से पूछा कि आवेदन जमा क्यों नहीं किया? छात्रा ने बताया कि आवेदन/दस्तावेज के साथ कोरा लिफाफा नहीं होने से आवेदन नहीं लिया गया। लिफाफा क्यांे मांगा गया? छात्रा ने बताया कि आवेदन लेने वाले सर का कहना है कि लाइसेंस भेजने के लिए कोरा लिफाफा संलग्न करना आवश्यक है। आस-पास कहीं भी लिफाफा नहीं मिला हैं। लिफाफा के साथ आवेदन देने के लिए कल फिर आना होगा। ऑनलाइन वाला सब बता देगापत्रिका ने सोमवार को एक काम का सहारा लेकर कैश काउटंर पर पड़ताल की। काउटंर पर मौजूद बाबू को बताया कि लाइसेंस का नवीनीकरण करना है और अन्य प्रांत में पंजीकृत दोपहिया वाहन का पंजीयन उज्जैन में कराना हैं। इसका कितना शुल्क जमा करना हैं। इसके क्या करना होगा? जवाब मिला ऑफिस के पीछे आनलाइन वाले बैठे हैं। सब बता देंगे। नहीं तो किसी एजेंट को पकड लें। सब काम आसानी से हो जाएगा। ड्राइविंग लाइसेंस का रिन्युअल कराने गए युवक ने बताया कि काम के लिए एजेंट ने ८०० रु. लिए,जबकि ऑफिस में जानकारी लेने पर पता चला कि ड्राइविंग लाइसेंस रिन्युअल का ५०० रु.लगता हैं। परिवहन कार्यालय और एजेंट/दलालों की मिलीभगत से लाइसेंस, लर्निंग लाइसेंस बनवाने के नाम पर लोगों से मनमाना शुल्क वसूला जा रहा है।
न शुल्क सूची और न पूछताछ खिड़की
भरतपुरी स्थित परिवहन विभाग कार्यालय में भवन के आगे-पीछे एजेंट और दलालों ने काउंटर लगा रखे है। परिसर में जगह-जगह कांउटर हैं। आरटीओ पहुंचने वाले लोग पहले कांउटर पर ही पहुंचते हैं। परिवहन विभाग के कार्यालय में व्यवस्थाएं बदहाल हैं। ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने, वाहनों का पंजीकरण कराने और दस्तावेजों का नवीनीकरण कराने के लिए रोजाना बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं, मगर लोगों को हमेशा यह शिकायत रहती है कि क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों में व्यवस्थाओं के तहत काम नहीं होता। इसके साथ शुल्क सूची, पूछताछ खिड़की, सिटीजन चार्टर की व्यवस्था होना चाहिए।
ऑनलाइन व्यवस्था लागू, ऑफलाइन मनमानी चालू
क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय में कंप्यूटरीकृत व्यवस्था आने से लोगों को उम्मीद थी कि बेहतर काम होगा, मगर लोगों की परेशानियां अभी भी कम नहीं हुई हैं। लोगों का कहना है कि कुछ मामलों में व्यवस्थाएं पहले से भी बदतर हो गई हैं।आरटीओ में ऑनलाइन व्यवस्था शुरू होने के बावजूद दफ्तर के हालात बदल नहीं रहे हैं। ऑफिस में तैनात बाबुओं की मनमानी लोगों पर भारी पड़ रही है। आरटीओ दफ्तर में एजेंट/दलाल के माध्यम से होने वाली वसूली निर्बाध चलती रहती हैं। आरटीओ के हर अनुभाग में जड़ जमा कर्मचारियों की मनमानी पर लगाम कस पाना मुश्किल है। ऑनलाइन व्यवस्था शुरू होने के बावजूद बाबुओं के संरक्षण में एजेंट हावी है। कार्यालय के बाहर बैठने वाले एजेंट और दलालों अनाधिकृत यातायात सलाहाकार है। इनके पास कोई अधिकृत पत्र या लायसेंस नहीं है। कुछ एजेंट और दलाल तो आरटीओ में कार्यरत बाबू के परिजन और परिजन है। इसके लिए कोई नियम नहीं है।

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