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खरीदी में शामिल अधिकारियों के अब गरदिश में सितारें

locationउज्जैनPublished: Oct 19, 2019 12:10:14 am

Submitted by:

rishi jaiswal

सिंहस्थ शिविरों से निकले १.५० करोड़ के टंकी-स्टैंड में घपले का मामला, इओडब्ल्यू ने पूरी की जांच, 9 माह तक चली जांच, बगैर टेंडर हुई थी खरीदी, उपयोग के बाद स्टोर तक नहीं पहुंची सामग्री

खरीदी में शामिल अधिकारियों के अब गरदिश में सितारें

सिंहस्थ शिविरों से निकले १.५० करोड़ के टंकी-स्टैंड में घपले का मामला, इओडब्ल्यू ने पूरी की जांच, 9 माह तक चली जांच, बगैर टेंडर हुई थी खरीदी, उपयोग के बाद स्टोर तक नहीं पहुंची सामग्री

उज्जैन। सिंहस्थ के दौरान खरीदी गई पेयजल टंकियों व स्टैंड घोटाले की जांच आर्थिक अपराध एवं अन्वेषण ब्यूरो ने पूरी कर ली है। १.५० करोड़ रुपए की इस खरीदी से लेकर स्टाक वापस रखने में हुए घालमेल को लेकर करीब ८ माह से जांच चल रही थी। आरोप प्रमाणित होने पर अब तत्कालीन कार्यपालन यंत्री, उपयंत्री, स्टोर प्रभारी आदि के विरुद्ध पद के दुरुपयोग, अमानत में खमानत व शासन को आर्थिक क्षति पहुंचाने की धाराओं में इओडब्ल्यू ने प्रकरण दर्ज करने की तैयारी कर ली है। यह कार्रवाई होने के बाद सिंहस्थ से जुड़ यह छंटा मामला हो जाएगा, जिसमें इओडब्ल्यू की ओर से प्रकरण कायम होगा।
जनवरी २०१९ में इओडब्ल्यू टीम ने गऊघाट पीएचई स्टोर से १२०० पन्नों की फाइल व अन्य दस्तावेज जब्त किए थे, जिसकी जांच में लंबा वक्त लगा और गत सितंबर में ही इओडब्ल्यू ने पीएचई को पत्र भेजकर खरीदी के मूल दस्तावेज मांगे थे। तथ्य अनुसार मामले में इओडब्ल्यू ने इंजीनियरों पर आरोप तय कर लिए हैं। जांच में सामने आया कि बगैर टेंडर हुई इस खरीदी से लेकर माल वापसी तक में जिम्मेदारों ने कायदों का खुला उल्लंघन किया। इसके पूर्व शासन स्तर से हुई जांच में ये आरोप पुष्ट हो चुके।
ये है टंकी-स्टैंड का पूरा घोटाला
– सिंहस्थ में पेयजल व्यवस्था के लिए २ हजार लीटर क्षमता की ४०० टंकी व ३०० लोहे के स्टैंड पीएचई ने बगैर टेंडर खरीदे थे। इनकी दर क्रमश: १४००० व २०००० रुपए है।
– सिंहस्थ समाप्ति के डेढ़ साल बाद तक जिम्मेदारों ने इस सामग्री का रेकॉर्ड रजिस्टर में नहीं चढ़ाया। वहीं पीएचई के सिंहस्थ डिवीजन से भी शहरी डिवीजन ने १३५ टंकियां व १०० लोहे के स्टैंड लिए थे।
– इनका भी लेखा-जोख स्टोर में दर्ज नहीं। सवाल यही कि आखिर ये टंकियां गई कहां। मामले पर तत्कालीन संभागायुक्त ने नवंबर २०१७ में उपयंत्री मुकेश गर्ग को निलंबित कर दिया था।
– लेकिन विभागीय जांच निश्चित समयावधि में पूरी नहीं होने पर १४ माह बाद गत जनवरी में गर्ग को बहाली दे दी गई।
– पूर्व स्वीकृत दर पर जरूरी कार्य बताकर तत्कालीन प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह की अनुशंसा पर सीधे ही चहेती फर्मों से अधिकारियों ने ये खरीदी कर डाली, जिसका १.५० करोड़ भुगतान भी हुआ। लेकिन पर्व समाप्ति के बाद सामग्री वापस नहीं आई।
उक्त प्रकरण की जांच लगभग पूरी हो चुकी है। जो भी तथ्य सामने आए हैं, उसके अनुसार जल्द संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध प्रकरण पंजीबद्ध करेंगे।
राजेश सिंह रघुवंशी, एसपी, इओडब्ल्यू, उज्जैन
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