सात साल के आंकड़ों से समझें बढ़ती गर्मी
बीते सात साल से मार्च के अंतिम दिनों में जो अधिकतम तापमान दर्ज किया गया, वह इस वर्ष 18 मार्च को ही दर्ज हो गया। उज्जैन की शासकीय जीवाजी वेधशाला के अनुसार 25 मार्च 2016 को अधिकतम तापमान 40 डिग्री दर्ज किया गया था, जो इस वर्ष 18 मार्च 2022 को ही दर्ज हो गया है। घटती पेड़ों की संख्या, बढ़ते पेट्रोल, डीजल के वाहन और शहर विकास में चल रहे विकास कार्यों से उड़ रही धूल से प्रदूषित वायु का तापमान पर सीधा असर नजर आने लगा है। वन विभाग की जानकारी के मुताबिक वर्ष 2016 में 71800 पौधरोपण हुआ था, जो 2021 में घटकर 60 हजार रह गया। पर्यावरण प्रबंध के जानकारों का कहना है कि क्लाइमेट चेंज दीर्घकालीन प्रक्रिया है, जो जलवायु परिवर्तन की कारक है। वहीं मौसम बदलाव में प्रदूषण सबसे बड़ा घटक है, जो मानव जीवन की प्रक्रिया पर जल्दी-जल्दी बदलता रहता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बता रहा है कि पिछले 6 वर्ष में पीएम 2.5 का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है, जो जीव के लिए ज्यादा घातक है। इसका असर पेड़-पौधों, पशु, मानव जीवन आदि पर हो रहा है। प्रदूषण विभाग के अनुसार मार्च 2017 में उज्जैन शहर में पीएम 2.5 ग्राफ 28.7 माइक्रोन दर्ज किया गया था, जो साल दर साल बढ़ते हुए मार्च 2022 में 44.58 हो गया। इसके बढऩे के पिछे पेट्रोल, डीजल के वाहनों की संख्या का बढऩा, पौध रोपण की संख्या कम होना जैसे कारण हैं। परिवहन विभाग के अनुसार फरवरी 2016 में पंजीकृत हुए पेट्रोल, डीजल के वाहनों की संख्या 4353 थी। जबकि फरवरी 2022 में यह संख्या बढ़कर 6975 हो गई। यह आंकड़े केवल एक माह के हैं, जो सड़कों पर फर्राटे भर प्रदूषण फैला रहे वाहनों के हैं। इसके अलावा शहर विकास में चल रहे सीवर व स्मार्ट सीटी के काम से दिनरात तोडफ़ोड हो रही है, जिसकी धूल के बारिक कण हवा में घुलकर वायु को प्रदूषित कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक सीवर का काम वर्ष 2018-19 में शुरू हुआ था, वहीं स्मार्ट सीटी का काम 2017 में शुरू हो चुका था।
बीते सात साल से मार्च के अंतिम दिनों में जो अधिकतम तापमान दर्ज किया गया, वह इस वर्ष 18 मार्च को ही दर्ज हो गया। उज्जैन की शासकीय जीवाजी वेधशाला के अनुसार 25 मार्च 2016 को अधिकतम तापमान 40 डिग्री दर्ज किया गया था, जो इस वर्ष 18 मार्च 2022 को ही दर्ज हो गया है। घटती पेड़ों की संख्या, बढ़ते पेट्रोल, डीजल के वाहन और शहर विकास में चल रहे विकास कार्यों से उड़ रही धूल से प्रदूषित वायु का तापमान पर सीधा असर नजर आने लगा है। वन विभाग की जानकारी के मुताबिक वर्ष 2016 में 71800 पौधरोपण हुआ था, जो 2021 में घटकर 60 हजार रह गया। पर्यावरण प्रबंध के जानकारों का कहना है कि क्लाइमेट चेंज दीर्घकालीन प्रक्रिया है, जो जलवायु परिवर्तन की कारक है। वहीं मौसम बदलाव में प्रदूषण सबसे बड़ा घटक है, जो मानव जीवन की प्रक्रिया पर जल्दी-जल्दी बदलता रहता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बता रहा है कि पिछले 6 वर्ष में पीएम 2.5 का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है, जो जीव के लिए ज्यादा घातक है। इसका असर पेड़-पौधों, पशु, मानव जीवन आदि पर हो रहा है। प्रदूषण विभाग के अनुसार मार्च 2017 में उज्जैन शहर में पीएम 2.5 ग्राफ 28.7 माइक्रोन दर्ज किया गया था, जो साल दर साल बढ़ते हुए मार्च 2022 में 44.58 हो गया। इसके बढऩे के पिछे पेट्रोल, डीजल के वाहनों की संख्या का बढऩा, पौध रोपण की संख्या कम होना जैसे कारण हैं। परिवहन विभाग के अनुसार फरवरी 2016 में पंजीकृत हुए पेट्रोल, डीजल के वाहनों की संख्या 4353 थी। जबकि फरवरी 2022 में यह संख्या बढ़कर 6975 हो गई। यह आंकड़े केवल एक माह के हैं, जो सड़कों पर फर्राटे भर प्रदूषण फैला रहे वाहनों के हैं। इसके अलावा शहर विकास में चल रहे सीवर व स्मार्ट सीटी के काम से दिनरात तोडफ़ोड हो रही है, जिसकी धूल के बारिक कण हवा में घुलकर वायु को प्रदूषित कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक सीवर का काम वर्ष 2018-19 में शुरू हुआ था, वहीं स्मार्ट सीटी का काम 2017 में शुरू हो चुका था।
पौध रोपण का गणित और प्रदूषण के कारण उठते सवाल
मार्च माह में पीएम 2.5
2016 में गणना नहीं की जा सकी। जबकि 2017 में 28.7, 2018 में 31.5, 2019 में 33.5, 2020 में 32.5, 2021 में 40.56 तथा 2022 में 44.58 माइक्रोन हो गया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक बताते हैं कि एक मीटर हवा के घनत्व में माइक्रोन साइज का प्रदूषण माप होता है। इसका माप परिवेशी वायु में पार्टिकुलेट मैटर का घनत्व होता है।
मार्च माह में पीएम 2.5
2016 में गणना नहीं की जा सकी। जबकि 2017 में 28.7, 2018 में 31.5, 2019 में 33.5, 2020 में 32.5, 2021 में 40.56 तथा 2022 में 44.58 माइक्रोन हो गया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक बताते हैं कि एक मीटर हवा के घनत्व में माइक्रोन साइज का प्रदूषण माप होता है। इसका माप परिवेशी वायु में पार्टिकुलेट मैटर का घनत्व होता है।
मौसम विभाग के अनुसार अधिकतम तापमान
* 25 मार्च 2016 को 40 डिग्री
* 29 मार्च 2017 को 42 डिग्री
* 30 मार्च 2018 को 39.5 डिग्री
* 29 मार्च 2019 को 41 डिग्री
* 31 मार्च 2020 को 38 डिग्री
* 29 मार्च 2021 को 40 डिग्री
- 18 मार्च 2022 को 40 डिग्री
* 25 मार्च 2016 को 40 डिग्री
* 29 मार्च 2017 को 42 डिग्री
* 30 मार्च 2018 को 39.5 डिग्री
* 29 मार्च 2019 को 41 डिग्री
* 31 मार्च 2020 को 38 डिग्री
* 29 मार्च 2021 को 40 डिग्री
- 18 मार्च 2022 को 40 डिग्री
वन विभाग का उज्जैन रेंज में पौध रोपण
वर्ष रोपे गए पौधे
2016 71800
1017 36956
2018 25500
2019 139200
2020 50230
2021 60000 यह है परिवहन विभाग के आंकड़े
फरवरी माह में पंजीकृत पेट्रोल, डीजल वाहनों की वर्षवार संख्या
2016 में दो व चार पहिया वाहनों की संख्या 4353 थी। जबकि 2017 में 3817, वर्ष 2018 में 4856, वर्ष 2019 में 6155, वर्ष 2020 में 4964, वर्ष 2021 में 6921 तथा फरवरी 2022 में रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या 6975 है। इसके अलावा क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी संतोष मालवीय ने बताया कि फरवरी की तुलना में मार्च 2016 से मार्च 2022 तक रजिस्टर्ड हुए पेट्रोल, डीजल के वाहनों की संख्या भी सवा गुना बढ़ी है।
वर्ष रोपे गए पौधे
2016 71800
1017 36956
2018 25500
2019 139200
2020 50230
2021 60000 यह है परिवहन विभाग के आंकड़े
फरवरी माह में पंजीकृत पेट्रोल, डीजल वाहनों की वर्षवार संख्या
2016 में दो व चार पहिया वाहनों की संख्या 4353 थी। जबकि 2017 में 3817, वर्ष 2018 में 4856, वर्ष 2019 में 6155, वर्ष 2020 में 4964, वर्ष 2021 में 6921 तथा फरवरी 2022 में रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या 6975 है। इसके अलावा क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी संतोष मालवीय ने बताया कि फरवरी की तुलना में मार्च 2016 से मार्च 2022 तक रजिस्टर्ड हुए पेट्रोल, डीजल के वाहनों की संख्या भी सवा गुना बढ़ी है।
यह कहते हैं जानकार
पर्यावरणीय जानकारों का कहना है कि सामाजिक संस्थाओं द्वारा किया गया पौध रोपण अधिकांशत: दिखावा होता है, जबकि विभागीय तौर पर किया जाने वाला पौध रोपण जिम्मेदारी दिखाता है। इस लिहाज से वन विभाग के अलावा प्रशासनिक व स्थानीय प्रशासन द्वारा किया जाने वाला पौध रोपण ही अधिकतम 80 प्रतिशत कारगर होता है।
एक्सपर्ट व्यू तापमान बढ़ाने में सबसे बड़ा कारण प्रदूषण
विक्रम विवि की पर्यावरण प्रबंधन अध्ययनशाला के आचार्य डॉ. देवेंद्र मोहन(डीएम) कुमावत ने सभी घटकों पर समीक्षा करते हुए बताया कि तापमान को बढ़ाने में सबसे बड़ा कारक वायु प्रदूषण है। ज्यादा गर्मी जीवन को नष्ट कर सकती है। जैसे कैंसर, स्कीन कैंसर आदि रोग हो जाते हैं या बढ़ जाते हैं। ओजोन की परत को बचाने के साथ पार्टिकुलेट मैटर(पीएम), जिसमें कार्बन, हाइड्रो कार्बन, सीओ-2 जैसे तत्व समाहित होते हैं, जो गर्मी को अवशोषित करते हैं। यदि ओजोन की परत को नहीं बचा पाते और पार्टिकुलेट मैटर को सहेज नहीं पाते तब पूरी पृथ्वी के आसपास जो ब्लंकेट बनता है वह परावर्तीत किरणों को बाहर नहीं जाने देता है, जिससे गर्मी बढ़ती है। कुल मिलाकर गर्मी बढऩे का बड़ा कारण प्रदूषण ही है। उज्जैन में बड़ा औद्योगिक क्षेत्र नहीं, लेकिन वन विभाग का सिमित दायरा, वाहनों की बड़ी संख्या, पेट्रोल, डीजल की खपत से हाइड्रो कार्बन रीलीज होता है, जो सीधा पीएम पर असर डालता है। स्थिति सुधारने के लिए वन विभाग का दायरा बढ़ाने के लिए क्षिप्रा किनारे बड़े स्तर पर पौध रोपण से कटाव तो रूकेगा ही पर्यावरण संरक्षण से बारिश ज्यादा होगी। क्योंकि वनांचल से जलवायु का सीधा संबंध होता है।
विक्रम विवि की पर्यावरण प्रबंधन अध्ययनशाला के आचार्य डॉ. देवेंद्र मोहन(डीएम) कुमावत ने सभी घटकों पर समीक्षा करते हुए बताया कि तापमान को बढ़ाने में सबसे बड़ा कारक वायु प्रदूषण है। ज्यादा गर्मी जीवन को नष्ट कर सकती है। जैसे कैंसर, स्कीन कैंसर आदि रोग हो जाते हैं या बढ़ जाते हैं। ओजोन की परत को बचाने के साथ पार्टिकुलेट मैटर(पीएम), जिसमें कार्बन, हाइड्रो कार्बन, सीओ-2 जैसे तत्व समाहित होते हैं, जो गर्मी को अवशोषित करते हैं। यदि ओजोन की परत को नहीं बचा पाते और पार्टिकुलेट मैटर को सहेज नहीं पाते तब पूरी पृथ्वी के आसपास जो ब्लंकेट बनता है वह परावर्तीत किरणों को बाहर नहीं जाने देता है, जिससे गर्मी बढ़ती है। कुल मिलाकर गर्मी बढऩे का बड़ा कारण प्रदूषण ही है। उज्जैन में बड़ा औद्योगिक क्षेत्र नहीं, लेकिन वन विभाग का सिमित दायरा, वाहनों की बड़ी संख्या, पेट्रोल, डीजल की खपत से हाइड्रो कार्बन रीलीज होता है, जो सीधा पीएम पर असर डालता है। स्थिति सुधारने के लिए वन विभाग का दायरा बढ़ाने के लिए क्षिप्रा किनारे बड़े स्तर पर पौध रोपण से कटाव तो रूकेगा ही पर्यावरण संरक्षण से बारिश ज्यादा होगी। क्योंकि वनांचल से जलवायु का सीधा संबंध होता है।