सिंहस्थ में खूब उड़ाया जनता का धन, देखिए कुछ मामले
उज्जैनPublished: Sep 14, 2019 12:48:52 am
बेवजह के कार्यों के लिए करोड़ों रुपए कर दिए खर्च
बेवजह के कार्यों के लिए करोड़ों रुपए कर दिए खर्च
उज्जैन. सिंहस्थ में नाम पर खूब फिजूलखर्ची भी हुई। ऐसे ऐसे कामों पर खर्च किया गया, जिसकी कोई जरूरत ही नहीं थी, जब हल्ला तब तत्कालीन समय में कुछेक के खर्चों में कटौती भी की गई। इओडब्ल्यू भोपाल द्वारा प्राथमिकी दर्ज होने के बाद ये मामले भी सुर्खियों में हैं। पेश हैं कुछ ऐसे मामले….
कीमत से अधिक की राशि में किराए पर लिए कूलर
सिंहस्थ क्षेत्र में सेक्टर व जोन कार्यालयों में किराए पर कूलर लेने के नाम भी धांधली उजागर हुई थी। करीब ५५० कूलर की आवश्यकता थी। ये काम एक निजी कंपनी को ६५०० रुपए प्रति कूलर में दे दिया था। ये मुद्दा यूं विवादों में घिरा था की इतने में तो कूलर खरीदी हो जाती। किराए के लिए इतना बड़ा खर्च क्यों? इस मामले में विवाद बढऩे पर कई महीनों तक भुगतान रोके रखा, बाद में कुछ राशि काटकर संबंधित को भुगतान दे दिया। इस पर अधिकारियों ने तर्क दिया कि मेला अवधि में कूलर देने से लेकर उसमें पानी भरने व मेंटेनेंस का जिम्मा भी संबंधित एजेंसी का था। नगर निगम के जरिए हुए इस काम को लेकर भोपाल तक हल्ला मचा था।
प्याऊ लगाने व मटका कांड, गैरेज वालों से खरीदी
सिंहस्थ में विभिन्न स्थानों पर प्याऊ लगाने व मटका खरीदी की आड़ में भी अनियमितताएं सामने आई थीं। इंदौर के कुछ लोगों ने पीएचई के जरिए प्याऊ संचालन का काम ले लिया था। प्रत्येक प्याऊ के लिए ८० हजार रुपए का भुगतान होना तय हुआ था, जबकि इस काम मेंं इतना खर्च होता ही नहीं। वैसे भी सामाजिक संस्थाएं नि:शुल्क जलसेवा करती है। हालांकि आलोचना होने पर इस काम को बीच मेंं रोक दिया था। वहीं अन्य कार्यों के लिए मटका खरीदी में भी एेसी ही धांधली हुई थी। जिन फर्म के नाम के बिल प्रस्तुत हुए उनके स्थान पर गैरेज संचालित होते हैं। सवाल यह उठा था कि गैरेज वाले कब से मटके बेचने लगे। यह मामला शिवराज सरकार के दौर में कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी ने विधानसभा में भी उठाया था।
शिप्रा आेजोनेशन प्लांट के नाम धन की खुली बर्बादी
सिंहस्थ पहले ही नर्मदा-शिप्रा लिंक प्रोजेक्ट पूरा हुआ था। दावा था कि सिंहस्थ में नर्मदा का साफ-स्वच्छ जल स्नान के लिए मिलेगा। इसके बावजूद मेला अधिकारियों ने शिप्रा के मुख्य घाटों पर ओजोनेशन प्लांट का प्रोजेक्ट लागू कराया। इसमें शिप्रा के पानी मेंं ऑक्सीजन बरकरार रखने व शुद्धि के लिए अस्थायी प्लांट लगाया गया। तब ११ करोड़ रुपए इस काम पर खर्च हुए। ये प्रोजेक्ट सवालों में भी रहा लेकिन अधिकारियों ने किसी की एक नहीं सुनी। उच्च स्तरीय दबाव के चलते इस प्रोजेक्ट को अमल में लाकर सरकारी धन की बर्बादी की गई।
करोड़ों के सैटेलाइट टाउन, किसी उपयोग में नहीं
शहर के प्रवेश मार्ग व अन्य कुछ स्थानों पर वाहन पार्र्किंग व श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए प्रशासन ने ८ करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर सैटेलाइट टाउन बनाए थे। इनमें डोम पंडाल से लेकर बैरिकेडिंग व अन्य सुविधाएं जुटाई थीं। प्लानिंग बेहतर नहीं होने से ये किसी काम में ही नहीं आए। पूरी मेला अवधि दौरान ये सुनसान ही पड़े रहे। इन पर खर्च की गई राशि का कोई समुचित उपयोग नहीं हो सका। बेहतर प्लानिंग नहीं बनाने से ये इंतजाम फेल हुए थे।