इस्कॉन मंदिर द्वारा निकाली गई रथयात्रा
इस्कॉन मंदिर द्वारा निकाली गई रथयात्रा में बालयोगी उमेशनाथ महाराज और इस्कॉन के स्वामी भक्ति चारू महाराज शामिल हुए। उन्होंने सोने की झाडू से भगवान की राह बुहारी और रास्ते के कंकड़-पत्थर साफ किए। अन्य श्रद्धालु भी शामिल हुए। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा तीनों रथ में विराजित होकर अपनी मौसी के घर गुंडिचा पहुंचे। यात्रा में शामिल भक्त बरसते पानी की परवाह किए बगैर भजनों पर नृत्य करते शामिल हुए। वहीं स्वच्छता का संदेश देते हुए इस्कॉन के भक्त रथयात्रा के पीछे मार्ग के कचरे को साफ करते चले।
विश्राम कर उठे भगवान जगन्नाथ
इस्कॉन मंदिर की ओर से निकलने वाली यात्रा का शुभारंभ दोपहर दो बजे बुधवारिया से हुआ। अस्वस्थ भगवान विश्राम कर उठे। भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ सुबह भरतपुरी स्थित मंदिर से पूजन कर बुधवारिया स्थित रथ यात्रा स्थल पहुंचे। तीनों विग्रहों को रथ में विराजित किया गया। इसके बाद पूजन कर यात्रा को रवाना किया। हजारों श्रद्धालुओं ने रथ अपने हाथों से खींचा। कुछ भक्त स्वर्णिम झाडू से आगे-आगे यात्रा मार्ग की सफाई करते चले। यात्रा कंठाल, दौलतगंज, मालीपुरा, देवासगेट, चामुंडा माता चौराहा, टॉवर, तीनबत्ती चौराहा, देवास रोड होते हुए इस्कॉन मंदिर के पीछे निर्मित गुंडिचा पहुंची। यहां भगवान के विग्रहों को मंदिर में आरूढ़ किया गया। यहां शुक्रवार से प्रतिदिन शाम को धार्मिक-सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन होगा।
चांदी के सिंहासन में विराजे जगदीश
अभा चंद्रवंशीय क्षत्रिय खाती समाज के कार्तिक चौक स्थित जगदीश मंदिर से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा धूमधाम से निकली। चांदी के सिंहासन में विराजित होकर भगवान जगदीश अपने भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण पर निकले। इसके पूर्व सुबह मंदिर का शिखर पर ध्वज बदला गया। इसके बाद भगवान का विशेष अभिषेक हुआ। दोपहर को भगवान जगदीश के साथ सुभद्रा व बलभद्र की मूर्तियों को रथ में आरूढ़ कर रथ यात्रा प्रारंभ हुई यात्रा कार्तिक चौक स्थित मंदिर से होते दानीगेट, ढाबा रोड, मिर्जा नईम बेग मार्ग, तेलीवाड़ा, कंठाल, सराफा, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार, गुदरी चौराहा होकर कार्तिक चौक स्थित जगदीश मंदिर पहुंची। रथयात्रा में युवा राष्ट्रीय भावना के साथ राष्टी्रय ध्वज तिरंगा लेकर शामिल हुए। शाही ठाठ के साथ निकली यात्रा में कई जगह पुष्प वर्षा कर स्वागत हुआ। रात में मंदिर पहुंचने के बाद भगवान की मूर्तियों को मंदिर में आरूढ़ कर आरती की गई।