आषाढ़ की अमास्या पर लगता है मेला
आषाढ़ की अमावस्या पर यहां हजारों लोग पहुंचते हैं। साल में एक बार आषाढ़ की अमावस्या पर यहां हजारों लोग पहुंचते हैं और घर के बाहर बनाया हुआ चूरमा दरगाह पर चढ़ाते हैं। शुक्रवार को यहां मेला लगा और गांव की आबादी से कई गुना ज्यादा लोग यहां मनोकामना लेकर पहुंचे। लोग इसे पीरबाबा की दरगाह कहते हैं। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि वे बचपन से इसे देखते आ रहे हैं। दरगाह पर चूरमा चढ़ाने की परंपरा वर्षों से है। माना जाता है कि इस स्थान पर हर मनोकामना पूर्ण होती है।
एक भी घर मुस्लिम का नहीं
खास बात है कि गांव गुर्जर बाहुल्य है और एक भी मुस्लिम का घर नहीं है। दरगाह का रखरखाव और पूजन आदि गांव ग्रामवासी ही मिलकर करते हैं। वर्ष में एक बार यह अनूठा आयोजन वर्षों से होता आ रहा है। इसी क्रम में शुक्रवार को गांव के किसी भी घर में चूल्हा नहीं जला। घर के बाहर ही दाल-बाटी-चूरमा तैयार किया गया। ग्राम स्थित श्रीराम मंदिर और हनुमान मंदिर से गाजे-बाजे के साथ चल समारोह निकला। समापन पीरबाबा की दरगाह पर हुआ और चादर चढ़ाने के बाद चूरमे का भोग लगाया।
हर घर में मेहमान
अन्य जिलों के लोगों की भी आस्था है। हजारों लोग इस आयोजन में शिरकत करते हैं। गांव में करीब 125 घर और आबादी 500 से 700 है। सोमवार को हर घर में मेहमान थे। इनके भोजन की व्यवस्था भी संबंधितों-रिश्तेदारों और मित्रों के वहां थी। अनूठे आयोजन में 10 हजार से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया। दिनभर मेले सा आलम था और दरगाह पर पूजन के साथ मन्नत का दौर चलता रहा।