दरअसल, विक्रम यूनिवर्सिटी द्वारा हाल ही में राम चरित्र मानस और विज्ञान नामक एक सर्टिफिकेट कोर्स कराने की शुरूआत की है। इस कोर्स के माध्यम से छात्रों को रामसेतु पत्थर के बारे में बारीकी से जानने का मौका मिलेगा। साथ ही, उसके स्ट्रक्चर, भार सहने की क्षमता आदि चीजों पर शोध किया जाएगा। अगर वो स्ट्रक्चर लैब में तैयार हो गया, तो ये यूनिवर्सिटी की एक बड़ी होगी। खासतौर पर इस पत्थर का इस्तेमाल भूकंप और बाढ़ ग्रस्त इलाकों में करना फायदेमंद होगा।
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रामायण काल के रामसेतु का करीब से अध्यन
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय के अनुसार, राम चरित मानस में डिग्री पाठ्यक्रम शुरू करने के बाद छात्रों द्वारा रामायण काल में बने रामसेतु का भी अध्ययन किया जाएगा। इसका उद्देश्य ये जानना है, कि आखिर वो पत्थर निर्मित किस तरह हुआ था। हालांकि, इसरो, नासा, आईआईटी समेत अन्य संस्थान इस बात के बारे में तो जानते हैं कि, वो पत्थर प्यूबिक मटेरियल से बना है। प्रोफेसर अखिलेश कुमार ने ये स्पष्ट किया कि, ये एक वैज्ञानिक आधारों पर ही शोध कोर्स होगा, जिसमें उज्जैन के इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र छात्राओं की मदद ली जाएगी। दोनों के बीच हाल ही में एक MOU साइन हुआ है।
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प्रयोग सफल रहा तो…
कुलपति अखिलेश पांडे के अनुसार, अगर रिसर्च में प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर प्रयोग सफल रहा, तो लैब में ही उन पत्थरों का निर्माण किया जाएगा, जो पानी पर तैरने में सक्षम होंगे और ऐसे पत्थरों का इस्तेमाल बाढ़ और भूकंप ग्रस्त इलाकों में करना बहुत फायदेमंद होगा। इससे हल्के मकान और निर्माण किये जा सकेंगे, जिसका नुकसान भी काफी कम होगा।
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