सूर्य के नक्षत्र में प्रवेश की स्थिति के प्रभाव
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में दो प्रकार के विभाग में पहला विभाग भारतीय ज्योतिष शास्त्र का गणितीय पद्धति का इसी में फलित भी होता है। दूसरा प्रभाग जलवायु को समझने के लिए मेदिनी ज्योतिष शास्त्र का नियम सामने प्रस्तुत होता है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य तथा चंद्र के परिभ्रमण से संबंधित नक्षत्रों की गणना और नक्षत्रों का प्रवेश आदि से जुड़े सिद्धांत, प्रश्नों का उत्तर, प्राचीन धर्म ग्रंथ में प्राप्त होता है। सूर्य का किस नक्षत्र में प्रवेश का क्या नियम है, वह कितने समय तक उस नक्षत्र में विद्यमान रहता है, या परिभ्रमण करता है, इन सभी विषयों को लेकर अलग-अलग रूपरेखा, राशि, वार, सिद्धांत, सूत्र दिया हुआ है। इसी आधार पर वर्षा चक्र का निर्माण होता है। सूर्य का रोहिणी नक्षत्र प्रवेश क्रम तकरीबन 13 से 15 दिन का माना गया है जो कि 13 से 15 दिन के पहले 9 दिन जो होते हैं, वही नौतपा कहलाते हैं, इसलिए यह 9 दिन वर्षा के आगमन की स्थिति को तय करते हैं। इन्हीं 9 दिनों में वर्षा ऋतु का चक्र भी तैयार होता है।
रोहिणी का निवास समुद्र में
इस बार रोहिणी का निवास समुद्र में है, अतिवृष्टि, समुद्रे स्यात, श्रेष्ठ वृष्टि होने पर धान्य वर्धन होता है, इस बार समय का निवास मालाकार अर्थात माली के घर रहेगा। ऐसी मान्यता है कि माली के घर रहने से वर्षा अच्छी होती है और समय का वाहन भैंसा है, जो कहीं-कहीं कुछ स्थानों पर अतिवृष्टि करवाएगा।
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नौतपा के दौरान बुध पूर्व में होंगे उदय
मेदिनी ज्योतिष शास्त्र की गणना से देखें तो जलवायु पर मौसम प्रभाव में बुध ग्रह का विशेष योगदान रहता है। हालांकि चंद्रमा भी अपनी साक्षी को दर्शाते हुए मौसम के परिवर्तन की ओर संकेत करता है। नौतपा के दौरान 9 दिन सूर्य का रोहिणी में परिभ्रमण रहता है, ऐसी मान्यता है कि इन्हीं 9 दिनों में वर्षा ऋतु का चक्र तैयार होता है। क्योंकि 9 में से तीन दिन के तीन भाग अलग-अलग प्रकार के देशों में अलग-अलग प्रकार के योग बनाते हैं, इन्हीं में कहीं-कहीं वर्षा होती है, कहीं उमस पड़ती है, तो कहीं तपिश। चूंकि बुध का वर्तमान में वृषभ राशि में गोचर है, इस दृष्टि से उत्तर दिशा विशेष रूप से प्रभावित होगी।
31 मई को पूर्व दिशा में होगा बुध का उदय
पूर्व दिशा में बुध का उदय होने से पूर्व दिशा में वर्षा की स्थिति दिखाई देगी। पहाड़ी क्षेत्रों पर वर्षा का प्रभाव नजर आएगा।