इन नामों पर चलती रही चर्चा
विक्रम विवि में नए कुलपति के नाम पर जबलपुर विवि के कमलेश मिश्रा का नाम चला। इनकी कांग्रेस नेता मुकेश नायक, मंत्री तरुण भनोट सहित जबलपुर के कई वरिष्ठ नेताओं से नजदीकी हैं। इसी आधार पर इनका नाम पैनल में है। उज्जैन से प्रो. एमएस परिहार, डॉ. नागेश शिंदे, बीके मेहता कुलपति पद की रेस में है। कांग्रेस के अलग-अगल गुट इनके लिए लॉबिंग कर रहे हैं। विक्रम विवि के हालात काफी बिगड़े हुए हैं। कर्मचारी, शिक्षक, विद्यार्थियों के साथ स्थानीय जनप्रतिनिधि भी नाराज चल रहे हैं। एेसे में संस्थान की हालात सुधारने के लिए स्थानीय प्रोफेसर को कमान दी जा सकती है। ताकि सभी से समन्वय बनाकर काम हो सकें।
जमकर हुई धारा 28 कोड के तहत नियुक्तियों में धांधली
विक्रम विश्वविद्यालय से संबंधित शिकायतों की जांच के बाद अब बड़ी-बड़ी गड़बड़ी सामने आ रही है। इन्हीं में से एक निजी कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्तियों में धांधली का मामला है। विवि प्रशासन निजी कॉलेजों की नियुक्ति प्रक्रिया अकादमिक विभाग के माध्यम से करवाता है। यह काम विभाग के उपकुलसचिव के पास रहता है, लेकिन विवि प्रशासन ने एक नए पद का सृजन कर लिया। इस पद का नाम प्रोफेसर इंचार्ज अकादमिक था। इस पद के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि निजी कॉलेजों की संबद्धता, धारा 28 के तहत नियुक्ति व अन्य काम से संबंधित आदेश सीधे प्रोफेसर इंजार्च के नाम से जारी हो रहे थे, जबकि एेसा पूरी तरह से नियमों के विरुद्ध है। विवि की कोई भी अधिसूचना कुलसचिव के नाम जारी होगी। कुलसचिव की अनुपस्थिति में उसके आधार पर प्रभारी हस्ताक्षर करेगा।
इंटरव्यू की मेरिट को ही माना चयन
विक्रम विवि प्रशासन ने धारा 28 कोड के तहत हुई नियुक्तियों जमकर गड़बड़ी की, जो अब साबित हो रही है। विवि प्रशासन ने निजी कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया की। इसके बाद मेरिट लिस्ट को विद्या परिषद की बैठक में रख दिया। विद्या परिषद के यह मिनिट्स कार्यपरिषद की बैठक में अनुमोदित होने जाते हैं। एेसे में मेरिट सूची अनुमोदित हो गई और कॉलेज प्रबंधन नियुक्ति करवा शांत हो गए। जबकि विवि प्रशासन को शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया होने के बाद मेरिट के आधार पर कॉलेज संचालक की प्रबंधन समिति से चयनित शिक्षक नियुक्ति पत्र जारी करवाना था। इसके बाद बैंक में वेतन जा रहा है। यह भी सुनिश्चित करना था। प्रक्रिया का पालन होने के बाद चयनित शिक्षक विश्वविद्यालय के शिक्षकों की वरिष्ठता सूची में भी आ जाते थे, लेकिन अधूरी प्रक्रिया से एेसा नहीं हुआ। अब अधूरी प्रक्रिया से किसे क्या फायदा हुआ। इसका जबाव जांच के बाद ही पता चलेगा।
कोर्ट में नहीं आई रिपोर्ट
विक्रम विवि की शिकायतों की जांच कर अंतिम आदेश जारी करना है। न्यायालय ने इसके लिए 21 जनवरी का समय निर्धारित किया था, लेकिन उच्च शिक्षा विभाग ने दो बार समय मांगा। शिकायतकर्ता के एडवोकेट अनिल ओझा का कहना है कि साक्ष्य के आधार पर शिकायत की गई है। विवि की तीन याचिका लंबित है। किसी का भी जवाब नहीं दिया जा रहा है।
कॉलेजों पर था नियुक्ति के लिए दबाव
विक्रम विवि के तत्कालीन कुलपति प्रो. शीलसिंधु पाण्डे ने पद संभालते ही निजी कॉलेजों पर शिकंजा कसा। उन्होंने सभी कॉलेजों की परीक्षा रोक कर धारा 28 कोड के तहत शिक्षक नियुक्ति का दबाव बनाया। हालांकि उच्च शिक्षा विभाग भी एेसा करने के लिए निर्देश दे रहा था, लेकिन इसकी आड़ में नियुक्ति का खेल खेला गया। तत्कालीन कुलपति ने उक्त प्रक्रिया के लिए प्रो. केएन सिंह को जिम्मेदारी सौंपी। इसके लिए कुलसचिव के अधिकारों को भी खत्म कर दिया गया। कुलसचिव की जगह सीधे प्रो. इंचार्ज से अधिसूचना जारी करवाई।
” शिकायतों में एेसे तथ्य हैं। इसके संबंध में जवाब और दस्तावेज विभाग और जांच कमेटी को दिए हैं। अब जांच प्रतिवेदन और निर्देश प्राप्त होने के बाद ही कार्रवाई की जाएगी। “
– डीके बग्गा, प्रभारी कुलसचिव।