मंदिरों को राजनीति से दूर रखना चाहिए
संगोष्ठी के दूसरे सत्र में प्राचीन मन्दिरों के प्रबंधन, संरक्षण और संस्कृति में उनके योगदान पर विचार-विमर्श किया गया। इसमें माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीके कुठियाला ने कहा कि प्राचीन समय में देवस्थलों में शिक्षण के माध्यम से बच्चों को आध्यात्मिक जीवन में उन्नति करने की शिक्षा प्रदाय की जाती थी। देवालयों का प्रबंधन एवं संरक्षण यदि उचित तरीके से करना है तो आमजन को भी इसमें सहभागिता करनी होगी। शासन-प्रशासन द्वारा तो देवालयों के विकास के लिए लगातार कार्य किए ही जाते हैं, लेकिन जनता के सहयोग के बिना पूर्ण रूप से संरक्षणए रखरखाव संभव नहीं है। देवालय भारतीय समाज के परिवर्तन का केन्द्र बन सकते हैं, लेकिन जन-जन की सहभागिता इसमें जरूरी है। देवालयों को राजनीति से दूर रखना चाहिए। अतिथि डॉ.चारूदत्त पिंगले, डॉ,नारायण व्यास,डॉ.जीवनसिंह ठाकुर, डॉ.एसआर भट्ट थे।
व्यक्ति अशांति के गर्त में डूबता जा रहा है
सनंदन व्यासपीठश, बालमुकुन्द आश्रम झालरिया मठ में शिव स्तुति में शिव तत्व पर वैचारिक मंथन हुआ। इस अवसर पर अतिथि वक्ताओं ने अपने विचारों में शिव की वेद, पुराण, उपनिष, आदि में व्याप्तता को दर्शाया। संगोष्ठी में महामण्डलेश्वर भवानीनन्द यती ने कहा कि इस घनघोर कलिकाल में विषयों से ग्रसित होकर व्यक्ति अशांति के गर्त में डूबता जा रहा है। शैव महोत्सव इस अशांति के वातारण में शांति का प्रसाद वितरित करने जैसा है। प्रत्येक मानव और राष्ट्र को शांति की आवश्यकता है। इस अवसर पर प्रो.रेवा प्रसाद द्विवेदी, डॉ.केदारनाथ शुक्ल के प्रो.अमलधारी सिंह मौजूद थे। द्वितीय सत्र डॉ.बृजेश कुमार शुक्ल ने कहा कि भारत में अनेक प्रकार की पूजन पद्धतियां हैं। इनमें सात्विकख्तामस और राजस पद्धतियों का उल्लेख है। उन्होंने पौराणिक पद्धति से शिवलिंग की पूजा विधि विस्तार से बताई। अध्यक्षता प्रो.मनुलता शर्मा ने की। मुख्य वक्ता डॉ.ब्रजेश कुमार शुक्ल, विषय प्रवर्तक डॉ.शैलेन्द्र शर्मा थे।