दर्शन-प्रदर्शन पर व्याख्यान
समारोह के अंतिम दिन शिव विवाह संदर्भ: दर्शन तथा प्रदर्शन विषय पर केन्द्रित व्याख्यान मुख्य वक्ता मनोज श्रीवास्तव भोपाल द्वारा प्रस्तुत किया गया। अध्यक्षता प्रो. विरुपाक्ष जड्डिपाल उज्जैन द्वारा की गई। श्रीवास्तव ने अपने वक्तव्य में कहा कि शिव पार्वती विवाह किसी पारंपरिक श्रेणी में नहीं बांधा जा सकता, पार्वती जिस वर को चुनती हैं, वह विपन्न है, सर्वहारा है, उसकी विभूति ही उसका वैभव है। यह विवाह कन्या की चयन स्वतंत्रता की प्रतिष्ठापना करता है। इस बारात में जो लोग शामिल हैं, वे वो हैं जो अपदस्थ किए गए हैं, और जिन्हें मनुष्य ही नहीं माना जाता।
शिव की बरात बताती है संसार की हकीकत
यह बारात बताती है कि जो अमानक है, उसे श्मशान में ही नहीं विरमना है, उसे बारात में भी जाने का हक है। इस विवाह से पूर्व कामदेव का दहन यह बताता है कि काम नहीं, प्रेम शिव पार्वती विवाह की शर्त है। शिव का तीसरा नेत्र शिव की विशेष दृष्टि है। कामदेव प्रकृति को अपनी तरह से गढ़ते हैं, जबकि शिव के लिए पार्वती स्वयं प्रकृति हैं। वैदिक काल से ही नृत्य कला न केवल विभिन्न धार्मिक क्रिया कलापों, अपितु सामाजिक जीवन का भी अभिन्न अंग रही। ऋग्वेद में लिखा गया है- 'नृत्यमानो देवताÓ अर्थात् नृत्य करते हुए देवता, जो इंगित करता है कि देवतागण नृत्य करते हैं। पौराणिक युग में भी गायन, वादन एवं नृत्य आदि कलाओं को धर्म साधना का प्राण माना गया है। भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में कथक उत्तर भारत का सर्वप्रमुख एवं अति लोकप्रिय नृत्य है। कथक का उद्भव कृष्ण की रासलीला से माना जाता है, इसलिए इसे नटवरी नृत्य भी कहते हैं।
माच शैली में शिव बारात का प्रस्तुतिकरण
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में प्रथम माच शौली आधारित शिव बारात का प्रस्तुतिकरण कृष्णा वर्मा एवं साथी उज्जैन के कलाकारों द्वारा किया गया। यह प्रस्तुति मुख्य रूप से मालवी की लोकनाट्य शैली माच पर केन्द्रित रही, इसके माध्यम से कलाकारों ने शिव विवाह प्रसंग के विविध प्रसंगों का मंचन सुधी दर्शकों के मध्य किया। समापन प्रस्तुति में डॉ. खुशबू पांचाल एवं साथी द्वारा शिव आनंद तांडव नृत्य नाटिका प्रस्तुत की गई। भारतीय शास्त्रीय कथक समूह नृत्य की इस प्रस्तुति में कलाकारों ने भगवान शिव के रौद्र एवं आनंद तांडव का प्रदर्शन किया। इस नृत्याभिनय प्रस्तुति के साथ ही त्रिदिवसीय समारोह सम्पन्न हुआ।