पूर्व व्यवस्था अनुसार जिला अस्पताल में ओपीडी सुबह 8 से दोपहर 1 व शाम 5 से 6 बजे तक चालू रहती थी। सरकार के नए निर्देश के बाद इसका समय बदलकर सुबह ९ से ४ कर दिया गया है। इस दौरान दोपहर 1.30 से 2.15 बजे तक लंच बे्रक रहता है। कुछ महीने पूर्व से लागू इस व्यवस्था में मरीजों को जांचने के समय की अवधि पर तो असर नहीं पड़ा लेकिन अस्पताल की व्यवस्थाएं जरूर प्रभावित होने लगी है। स्थिति यह है कि लंच ब्रेक के बाद संबंधित डॉक्टर मिलेंगे या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है। नतीजतन ओपीडी के दूसरे चरण में कुछ कुर्सियां लंबे समय तक खाली ही पड़ी रहती हैं। शनिवार को सेकंड हॉफ में पत्रिका टीम आेपीडी की व्यवस्थाओं का जायजा लेने पहुंची तो कुछ एेसी ही स्थिति मिली।
घायल पांव लेकर इंतजार, डॉक्टर राउंड पर
श्वान के काटने से मंगरोला निवासी वृद्ध विक्रमसिंह का दाहिना पांप जख्मी हो गया। दवाइयों से ठीक नहीं होने के कारण परिजन उन्हें सर्जरी विभाग में चेकअप कराने लाए थे। दोपहर ३ बजे तक सर्जरी विभाग खाली पड़ा था। परिजन प्रेमसिंह ने बताया, वे एक घंटे से डॉक्टर का इंतजार कर रहे हैं। कुछ समय बाद सर्जन डॉ. नरेंद्र गोमे पहुंचे और उपचार किया। डॉ. गोमे के अनुसार वे वार्ड में राउंड पर थे इसलिए ओपीडी में कुछ समय उपलब्ध नहीं हो पाए।
कक्ष के बाहर से ही सीएम हेल्प लाइन में शिकायत
कंठाल निवासी घनश्याम दवे भी उपचार करवाने सेकंड हॉफ के बाद ओपीडी में आए थे। जब उन्हें संबंधित डॉक्टर नहीं मिले तो उन्होंने मौके से ही सीएम हेल्पलाइन १८१ पर फोन कर ओपीडी व्यवस्था की शिकायत की। दवे के अनुसार वे करीब ४५ मिनट से डॉक्टर का इंतजार कर रहे हैं लेकिन उन्हें कोई देखने वाला तक नहीं है।
हड्डी विभाग खाली, नेत्र परिक्षण पर ताला
हड्डी वार्ड को लेकर जिला अस्पताल और माधवनगर अस्पताल के बीच उलझी व्यवस्था के कारण मरीजों को परेशान होना पड़ रहा है। हड्डी वार्ड माधनवगर अस्पताल में शिफ्ट हो चुका है लेकिन जिला अस्पताल की आेपीडी में हड्डी विभाग का भी चैबर है। एेसे में जिला जिला अस्पताल की ओपीडी में हड्डी विभाग का चैंबर अमूमन खाली मिलता है। आवश्यकतानुसार कॉल पर कई बार संबंधित डॉक्टर मरीज को माधवनगर भेजने का कह देते हैं क्योंकि जरूरी उपवकरण व सुविधा वहीं पर हैं। इसी तरह नेत्र उपचार की व्यस्था भी माधवनगर अस्पताल में है। जिला अस्पताल में ओपीडी के दौरान एक सहायक के मौजूद रहने की बात कही जाती है लेकिन शनिवार को ओपीडी समय के दौरान नेत्र परिक्षण कक्ष पर ताला लगा था।
मेडिकल व नाक-कान विभाग में मिले डॉक्टर
लंच ब्रेक के बाद एक ओर कुछ चैंबर की कुर्सिया खाली पड़ी थीं वहीं कुछ जगह डॉक्टर उपचार करते भी मिले। सामान्य ओपीडी में डॉक्टर मौजूद थे वहीं मेडिकल विभाग में भी डॉक्टर मरीजों का उपचार कर रहे थे। इसी तरह नाक, कान, गला वार्ड में भी महिला चिकित्सक मरीज का उपचार करती मिली।
एेसे व्यवस्थाएं बेपटरी
– ओपीडी के पूर्व समय के दौरान एमरजेंसी बंद रहती थी। नई व्यवस्था में दोपहर बाद ओपीडी भी चालू रहती है और एक डॉक्टर को एमरजेंसी में भी बैठना पड़ता है जबकि उक्त डॉक्टर का अन्यत्र उपयोग हो सकता है।
– सार्वजनिक जानकारी के लिए ओपीडी में महीनेभर का ड्यूटी चार्ट चस्पा किया जाता है। इस महीने कुछ विभागों के ड्यूटी चार्ट ही चस्पा नहीं हुएं।
– लंच के बाद कौन डॉक्टर आेपीडी में पहुंचे और कौन नहीं पहुंचे, आरएमओ कार्यालय में ततसमय इसकी जानकारी भी नहीं रहती है। मसलन यदि किसी मरीज को यह जानना हो कि संबंधित डॉक्टर अस्पताल पहुंचे हैं या नहीं, इसके लिए उसे चैंबर-चैंबर ही भटकना होगा।
– चिकित्सकों की कमी लगातार बढ़ रही है। एक चिकित्सक को नाइट ड्यूटी, कॉल ड्यूटी, ओपीडी, वीआईपी ड्यूटी, वार्ड राउंड आदि की जिम्मेदारी निभानी पड़ती है। एेसे में कई बार डॉक्टर सैकंड हाफ में मरीज कम आने पर वार्ड राउंड पर निकल जाते हैं और ओपीडी में कुर्सी खाली रहती है।
– अभी भी अधिकांश मरीज दोपहर १ बजे से पहले ही अस्पताल पहुंचते हैं। सैकंड हॉफ के बाद 40-50 मरीज आते हैं। इसके चलते अस्पताल प्रशासन लंच ब्रेक के बाद की व्यवस्था को लेकर अपेक्षित सक्रिय नही हैं।