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कुछ स्थानों पर इसे आंशिक सूर्यग्रहण के रूप में देखा जाएगा, लेकिन भारत में यह दृश्य नहीं होने से मंदिरों में आरती-पूजा परंपरा चलती रहेगी। इसका कोई सूतक नहीं लगेगा। इस सूर्यग्रहण पर शनि जयंती के साथ वट सावित्री का व्रत भी है। ग्रहण वाले दिन सूतक काल से लेकर ग्रहण की समाप्ति तक शुभ कार्यों को करने पर प्रतिबंध होता है। इस बार भारत में वर्ष पर्यंत कोई भी ग्रहण दृश्य नहीं है।
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार भारतीय ज्योतिष शास्त्र एवं खगोलीय गणना के आधार पर देखें तो नवग्रहों में सूर्य तथा चंद्रमा के साथ राहु अथवा केतु का युति संबंध इनके अंश तथा कला से संबंधित व वैज्ञानिक गणना में इनके अक्षों से संबंधित परावर्तनीय दृष्टि से अलग-अलग कक्षीय क्रम से ग्रहणों की स्थितियां बनती हैं, हालांकि इसका भी अपना अलग-अलग दृष्टि संबंध रहता है, जिसके आधार पर राशि और उसका अधिपति की दिशा से संबंधित गणना का प्रभाव ग्रहण की स्थिति को दर्शाता है। खगोलीय गणना का प्रभाव 12 माह के गोचर से संबंधित भी होता है, यही नहीं इनके राशि संचरण तथा नक्षत्र मेखला की गणना आदि पर इसका दारोमदार रहता है।
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समुद्री तटों पर रहेगा असर
इस बार वर्ष पर्यंत किसी भी प्रकार के विशेष ग्रहण की स्थिति नहीं बन रही है, जो भी ग्रहण बनेंगे, वह भारत के मूलभूमि से अलग सामुद्रिक तटों से संबंधित रहेंगे तथा अन्य देशों की सीमाओं से संबंधित होंगे। उसमें भी खासतौर पर इन ग्रहों की स्थिति अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका, केनेडा आदि क्षेत्रों में समय-समय पर दिखाई देंगी। 10 जून को कंकण सूर्यग्रहण होगा। इसके बाद 19 नवंबर 2021 को खंडग्रास चंद्रग्रहण, 4 दिसंबर को खग्रास सूर्यग्रहण होंगे, लेकिन यह सभी ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देंगे।