प्रकरणों की गड़बड़ी को ही आधार बनाया था
इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि उच्च शिक्षा विभाग ने विक्रम विवि में धारा 52 लगाने के लिए संबद्धता प्रकरणों की गड़बड़ी को ही आधार बनाया था। इसके बाद ही विवि में धारा 52 लगी और राज्य शासन के अधीन हो गई, लेकिन धारा 52 के तहत कुलपति नियुक्ति होने के बाद भी संबद्धता प्रकरणों में पूर्व के सत्रों की तरह ही कार्रवाई की जा रही है। ऐसे में भविष्य में फिर नया विवाद खड़ा हो सकता है। इसी के चलते विभाग ने विवि प्रशासन से जानकारी मांगी है। हालांकि विक्रम विश्वविद्यालय प्रशासन को लिखित में कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है, लेकिन सोमवार को विवि प्रशासन कमेटी में कोई बदलाव कर सकता है।
कोर्ट ने बताया था नियम विरुद्ध
विक्रम विवि के संबद्ध निजी कॉलेजों ने संबद्धता और निरंतरता फीस सहित अन्य मामलों को लेकर इंदौर हाइकोर्ट में याचिका लगाई। सुनवाई विश्वविद्यालय अध्यादेश के संबंध में होनी थी। इसलिए प्रकरण को जबलपुर हाइकोर्ट की मुख्य बैंच को भेजा गया। यहां पर सुनवाई के दौरान बैंच ने विवि प्रशासन की प्रक्रिया को कानून के तहत बुरा बताया था। इसी के साथ अन्य अनियमितताओं के प्रकरणों की जांच के बाद धारा 52 की अधिसूचना जारी हुई।
व्यवस्था सुधारने के लिए धारा 52
विश्वविद्यालय का संचालक विवि अधिनियम के तहत गठित कार्यपरिषद करती है। इसमें कुलपति की भूमिका भी प्रमुख होती है। जो राजभवन से नियुक्त होता है, लेकिन जब किसी जांच में स्पष्ट हो जाए कि विवि की प्रशासनिक व्यवस्था बिगड़ चुकी है तो राज्य शासन विवि को अपने अधीन लेकर कुलपति नियुक्ति करता है। उच्च शिक्षा विभाग ने ऐसी रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद ही धारा 52 लगाई और नया कुलपति बनाया, लेकिन विक्रम विवि की व्यवस्थाओं में कोई बदलाव नहीं हुआ। संबद्धता की प्रक्रिया की शुरुआत के साथ ही विवाद शुरू हो गए हैं।