चमत्कार से बदली गुडिय़ा की सृष्टि… चैत्र नवरात्रि में देवी पर पड़ी इनकी दृष्टि
उज्जैनPublished: Sep 20, 2019 12:58:45 am
कृष्णमोहन गुडिय़ा को माता का स्वरूप मान शाजापुर ले आए, बदला भाग्य, अब कर रहे ये अपील
कृष्णमोहन गुडिय़ा को माता का स्वरूप मान शाजापुर ले आए, बदला भाग्य, अब कर रहे ये अपील
अनीस खान
शाजापुर. नफरत और स्वार्थभरी दुनिया में अब भी मानवता जिंदा है। जहां रिश्तों को तार-तार कर जहां अपनों को दूर करने, झगडऩे, बेसहारा छोडऩे जैसी घटनाएं सामने आती हैं, वहीं एक दूसरे की मदद कर सहारा बनने की दिल छू लेने वाली कहानियां भी प्रेरणा बनकर सामने आ जाती हैं। एक ऐसा ही मामला शाजापुर में सामने आया है, जिसमें एक शख्स ने इंदौर रेलवे स्टेशन पर दृष्टिहीन भूखे-प्यासे भटकती लड़की को सहारा दिया और उसे बेटी बनाकर घर ले आए। ये हैं कृष्णमोहन दुबे, जो गुडिय़ा की जिंदगी में भगवान कृष्ण बनकर आए। उनकी मानवताभरी दृष्टि गुडिय़ा पर पड़ी तो उसकी जिंदगी ही संवर गई। अब दुबे उसकी परवरिश कर रहे हैं और आंखों की रोशनी लाने की कोशिश भी कर रहे हैं। गुडिय़ां की रोशनी के लिए दुबे ने लोगों से नेत्रदान की अपील भी की है।
मूलत: नलखेड़ा के रहने वाले कृष्णमोहन दुबे का दोना-पत्तल का काम है। शाजापुर में भी उन्होंने कुछ मशीन लगाकर अपना व्यापार करते हैं। इसके लिए इनका इंदौर आना-जाना लगा रहता है। इसी साल मार्च माह में चैत्र नवरात्रि के पहले दिन जब वे इंदौर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन की राह देख रहे थे। तब रीवा की रहने वाली दृष्टिहीन गुडिय़ा नामक लड़की ने पानी मांगा। पानी पिलाने के बाद दुबे ने लकड़ी से पूछा तुम कौन हो, कहां रहती हो तो गुडिय़ा ने अपनी कहानी बयां की। दो दिन से भूखी गुड्डी को नाश्ता कराने के साथ ही उसके बारे में पूरी जानकारी ले ली। बेसहारा दृष्टिहीन को भटकता देख मानवता दिखाते हुए कृष्णमोहन दुबे युवती को अपने साथ शाजापुर स्थित अपने घर ले आए और बेटी की तरह परवरिश करने लगे। ये घटना ६ माह पहले की थी। तब से दुबे गुडिय़ा की परवरिश कर रहे हैं और उसका उपचार भी करा रहे हैं।
मानते हैं देवी का रूप
कृष्णमोहन दुबे की पत्नी नम्रता दुबे नलखेड़ा में नर्स है। उनकी दो बेटी भावना (२३) और देवांशी (१५) भी है। गुडिय़ा को बेटी बनाकर घर लाने पर परिजनों ने भी खुशी जाहिर की। दुबे ने बताया कि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन जिस हालत में गुडिय़ा रेलवे स्टेशन पर मिली मुझसे रहा नहीं गया और उसे बेटी बना लिया। उन्होंने बताया कि नवरात्रि के दिनों में गुड्डी का मिलना देवी का प्रतीक है। मैं गुड्डी में देवी का रूप देखता हूं, और देवी समान ही मानता हूं। दुबे ने कहा कि हर इंसान को दूसरे इंसान की मदद करना चाहिए। दुनिया में हर कहीं कोई न कोई परेशान, मोहताज व्यक्ति है। अगर हर इंसान मानवता दिखाते हुए किसी परेशान इंसान की मदद करेगा तो दुनिया में लोगों की तकलीफें कम होंगी।
एक मशीन की कमाई की गुडिय़ा के नाम
दुबे गुडिय़ा की परवरिश के साथ-साथ उसकी आंखों की रोशनी भी लाना चाहते हैं। फिलहाल उनके पास दोना-पत्तल बनाने की ५ मशीन हैं, इनमें एक मशीन की पूरी कमाई गुडिय़ा के नाम कर दी है। गुडिय़ा का बैंक खाता भी खुलवाया है। इस मशीन से माह के १०-१५ हजार रुपए कमाई हो जाती है। इस राशि को गुडिय़ा पर खर्च किया जाता है। बाकी राशि उसके उपचार के लिए रखी जा रही है। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों के मुताबिक गुडिय़ा की आंख की रोशनी किसी के नेत्रदान के बाद ऑपरेशन से आ सकती है। दुबे ने नेत्रदान के लिए भी अपील की है।
ये है गुडिय़ा की दास्तां
गुडिय़ा का जन्म रीवा में रामपाल राजपूत के घर १ जनवरी १९९५ में हुआ था। करीब ढाई साल की उम्र में शरीर पर माता निकलने (चिकनपॉक्स) पर उसकी आंखों की रोशनी चली गई थी और तीन वर्ष की उम्र में उसकी मां का देहांत हो गया। तब से रीवा में रहने वाले उसके नाना ने ही गुडिय़ा और उसकी बहन को एक साथ पाला, लेकिन नाना के देहांत होने के बाद गुडिय़ा को बहन के पास छोड़ दिया। यहां गुडिय़ा ठीक से रह नहीं पा रही थी। जिससे वह दृष्टिहीन होने के बावजूद घर छोड़कर जाने की जिद करने लगी। गुडिय़ा के कहने पर बहन ने उसे ट्रेन में बैठा दिया। जिसके बाद इंदौर रेलवे स्टेशन पर चैत्र नवरात्रि पर गुडिय़ा को कृष्णमोहन दुबे मिल गए।
गुडिय़ा बोली- मैं खुश हूं
गुडिय़ा कृष्णमोहन दुबे को बाबूजी कहती है। गुडिय़ा ने बताया कि वह यहां खुश है, बाबूजी मुझे बेटी जैसा प्यार करते हैं। मेरा इलाज कराते हैं और देखरेख करते हैं। सर्दी-खांसी होने पर कृष्णमोहन दुबे गुडिय़ा को जिला अस्पताल लाए थे।