कभी आती थी यहां चिताओं की राख…
यही एकमात्र मंदिर है, जहां प्रतिदिन चिताओं की राख से भस्म आरती की जाती थी। कालांतर में अब यहां कंडों की अखंड धूनि से तैयार की जाने वाली राख से भस्म आरती होती है। तड़के 4 बजे खुलते हैं द्वार भगवान महाकालेश्वर के मंदिर में प्रतिदिन तड़के 4 बजे भस्म आरती होती है, इसके बाद सुबह 7.30 बजे प्रात:कालीन आरती होती है। फिर 10 बजे भोग आरती होती है। शाम 5 बजे संध्याकालीन आरती होती है, जिसमें ड्रायफ्रूट और भांग से शृंगार किया जाता है। रात 11 बजे शयन आरती होती है। सभी आरतीयों में भगवान का मनभावन शृंगार किया जाता है।
यहां पवित्र नदियों का जल समाहित
मंदिर के ठीक पीछे कोटितीर्थ कुंड है, यहां पवित्र नदियों का जल समाहित है। इसी जल से प्रात:कालीन होने वाली भस्म आरती से भगवान महाकाल का अभिषेक होता है। बताया जाता है कि इस कुंड के जल से ही प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ। हनुमानजी यहां से जल लेकर गए थे। इसका प्रमाण स्वरूप यहां हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित है, जिनके एक हाथ में सोटा है दूसरे हाथ में लोटा है। बाकी अन्य हनुमान प्रतिमाओं में एक हाथ में सोटा और दूसरे हाथ में पहाड़ नजर आता है।
काग भुषुंडी की गुफा भी है यहां
रामायण में इनका वर्णन मिलता है। काग भुषुंडी ऋषि ने यहां आकर तपस्या की थी। मंदिर के गभज़्गृह में जहां ज्योतिलिंज़्ग स्थापित हैं, वहीं यह गुफा आज भी विद्यमान है। पुष्प-हार-चंदन से शृंगारित महाकाल बाबा महाकाल पुष्प हार, चंदन और विभिन्न सामग्रियों से प्रात:कालीन भस्म आरती में भगवान पर सौम्य आकृति बनाई जाती है। भस्मी रमैया राजाधिराज बाबा महाकाल का मनभावन शृंगार किया जाता है। महाकाल के इस अद्भुत रूप का दशज़्न कर भक्त धन्य होते हैं। तड़के 4 बजे भस्म आरती और सुबह 10.30 बजे भोग आरती में झांझ-डमरुओं की गूंज पर भक्तजन झूम उठते हैं।
महाकाल की आरती में गूंजे जयकारे
भोलेनाथ महाकाल की आरती में शंख-झालर और डमरुओं की गूंज होती है। प्रतिदिन भगवान महाकाल का आंगन जयकारों से गूंजता है। बिल्व पत्र, भांग और चंदन से अलौकिक शृंगार किया जाता है। भोलेनाथ भगवान महाकाल अपने भक्तों को निराले स्वरूप में दर्शन देते हैं। चंदन-ड्रायफ्रूट आदि से उन्हें सजाया जाता है। शृंगार भी ऐसा कि देखते ही मन आनंदित हो जाए।