ढोल-ढमाकों से पहुंचते हैं शहर
सावन मास आते ही कावड़ यात्रियों के आने का सिलसिला शुरू हो जाता है। बाबा महाकाल को जल चढ़ाया जाता है। ढोल-ढमाकों और धर्म ध्वजा लहराते हुए कावडि़ए नाचते-गाते हुए निकलते हैं, तो यह नगरी शिवमय नजर आने लगती है। यात्रा में महिलाएं भी शामिल होने लगी हैं।
18 जुलाई को निकलेगी समर्पण कावड़ यात्रा
प्रतिवर्ष श्रावण मास में निकलने वाली समर्पण कावड़ यात्रा इस वर्ष 18 जुलाई को निकाली जाएगी। त्रिवेणी संगम से निकलने वाली इस यात्रा में हजारों महिला-पुरूष मां क्षिप्रा, नर्मदा का जल लेकर पैदल महाकाल तक पहुंचेगी तथा बाबा महाकाल का जलाभिषेक किया जाएगा। यात्रा को लेकर पहली बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें इस यात्रा को वृहद स्वरूप देने पर चर्चा की गई। राम भागवत ने बताया बैठक में मुख्य अतिथि समर्पण सेवा समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष तपन भौमिक थे। अध्यक्षता भाजपा के वरिष्ठ नेता शिक्षाविद दिवाकर नातू ने की। बैठक को भाजपा जिलाध्यक्ष श्याम बंसल, ओम जैन, गिरीश जायसवाल, मनमोहन तिवारी, कृष्णा भागवत, लालसिंह भाटी आदि ने संबोधित किया। अतिथियों का स्वागत कावड़ यात्रा के अध्यक्ष विजय जायसवाल, राकेश शर्मा लाला आदि मौजूद रहे।
आस्था और श्रद्धा का केंद्र बाबा महाकाल का दरबार
बाबा महाकाल का दरबार आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। प्रतिदिन यहां हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ती है। पर्वों और त्योहारों पर तो यहां श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है। मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में बारह ज्योतिर्लिंगों में एक दक्षिण मुखी महाकाल का यह मंदिर पृथ्वी के नाभिस्थल पर बना है। बताया जाता है, कि महाकाल की प्रतिमा स्वयंभू है। दक्षिणमुखी होने के कारण यह तंत्र और मंत्र सिद्धियों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध स्थान माना गया है।