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video : भाजपा-कांग्रेस में टिकट का दंगल : ये मान रहे पक्की, तो इन्हें है वरिष्ठों का आसरा…

locationउज्जैनPublished: Sep 05, 2018 12:56:18 pm

Submitted by:

Lalit Saxena

उज्जैन उत्तर-दक्षिण विधानसभा से दोनों पार्टी में वरिष्ठ और युवा नेता टिकट की दौड़ में…

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उज्जैन। विधानसभा चुनाव के लिए उज्जैन उत्तर से भाजपा-कांग्रेस के दिग्गजों के बीच ही टिकट का दंगल हो रहा है। दोनों ही दलों से वरिष्ठ नेता खुद का टिकट के प्रबल दावेदार मान रहे हैं। यहां भाजपा से वर्तमान ऊर्जा मंत्री पारस जैन फिर से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। तो वहीं पार्टी के कुछ अन्य वरिष्ठ नेता भी दावेदारी में जुटे हंै। उधर कांग्रेस में दावेदारों की लंबी फेरहिस्त है। पिछले चुनाव हार चुके नेता फिर से टिकट मांग रहे हैं। जातिगत समीकरण के आधार पर टिकट के लिए लामबंदी हो रही है। कुछ युवा कांग्रेसी इस आस में है कि उनके वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं से संपर्क के चलते टिकट मिल जाएगा। इन सब से बीच आम आदमी पार्टी और सपाक्स की ओर से भी लोग मैदान में उतर रहे है।

उत्तर विधानसभा भाजपा
पारस जैन – मौजूदा विधायक व मंत्री इसी सीट से छह बार चुनाव लड़ चुके, विधायक का पांचवां कार्यकाल। 10 साल से मंत्री है, पिछली बार चर्चा आई थी की ये चुनाव आखिरी है, लेकिन अब फिर से मैदान में है।। मंत्री रहते कोई गंभीर व निष्क्रियता के आरोप नहीं। सालों से सीट खाली नहीं होने से बड़े नेताओं में नाराजगी। उत्तर क्षेत्र में व्यक्तिगत उपलब्धि के नाम कुछ नहीं। सिंहस्थ विकास के सहारे चुनाव जीतने की आस।

अनिल जैन कालूहेड़ा – पूर्व नगराध्यक्ष है, अपने कार्यकाल में तीन मंजिला लोकशक्ति भवन तैयार कराया। एमएससी तक शिक्षित, पार्टी के साथ शहर में धार्मिक, सामाजिक आयोजनों के जरीए काफी सक्रिय। पिछली बार भी टिकट की दौड़ में थे। संघ व युवाओं में अच्छी पैठ। लंबे समय से कुछ पद नहीं मिलने से निराशा। आक्रामक छबि होने के चलते बड़े नेताओं से नाराजगी।

जगदीश अग्रवाल – पूर्व नगराध्यक्ष है व वर्तमान में यूडीए अध्यक्ष। संगठन में अच्छी पकड़ है व सरल छवि के नेता। व्यापारी वर्ग के होने से उत्तर क्षेत्र में अच्छा व निरंतर संपर्क । यूडीए कार्यकाल में कई विकास कार्य कराएं। लेकिन क्षेत्र में कुछ कार्यकर्ताओं तक ही सीमित, सर्व स्वीकार्यता कम होने से दिक्कत।

सोनू गेहलोत – लगातार 4 बार से पार्षद, दो बार से निगम सभापति। कुछ अलग करने व पर्यावरण हित में कार्य करते रहते है। पुराने शहर में जनभागीदारी से स्वीमिंग पुल बनवाकर मंत्री खेमे को अप्रत्यक्ष सबक दिया। केंद्र के एक मंत्री के बूते प्रभावी दावेदारी, लेकिन ओबीसी वर्ग से होने के कारण उत्तर में समीकरण कमजोर। कुछ समर्थकों के कारण छवि पर प्रतिकूल प्रभाव भी।

उत्तर से ये भी दावेदार
उत्तर सीट से भाजपा के पूर्व पार्षद रामेश्वर दूबे, पूर्व पार्षद प्रकाश शर्मा, प्रदीप पाण्डेय, पूर्व यूडीए अध्यक्ष किशोर खण्डेलवाल, आम आदमी पार्टी से हाजी मुश्ताक अली, नासिर बेलिम व सपाक्स वर्ग से भी कई दावेदार है।

उत्तर विधानसभा कांग्रेस
राजेंद्र भारती- 11 वर्ष शहर कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली। वर्ष 1998 में पहला विधानसभा चुनाव लड़ भाजपा के पारस जैन को करीब 3800 वोट से हराया। वर्ष 2003 में पारस जैन से करीब 14 हजार वोट से हारे। मप्र भूमि विकास निगम चेयरमेन, हाथ करघा बोर्ड के राष्ट्रीय निदेशक भी रहे। अभी पीसीसी उपाध्यक्ष है। प्रोफाइल में अनुभव बड़ा आधार होने के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया से नजदीकी होने का लाभ। मध्य दौर में कम सक्रियता और नजदीकी समर्थकों द्वारा दूरी बनाने का नुकसान।

माया त्रिवेदी- तीसरी बार की पार्षद। स्थानीय वार्ड छोड़ दूसरे वार्ड में चुनाव जीत लोकप्रियता साबित की। महिला व ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व। स्वनिर्भर राजनीति। शहर के छोटे-बड़े मुद्दो में सक्रियता से भागीदारी। महिला प्रत्याशी के रूप में प्रमुख विकल्प। कमलनाथ गुट से मानी जाती है। किसी वरिष्ठ से घनिष्ठ संबंध नहीं होना टिकट की दावेदारी को नुकसान पहुंचा सकता है।

आजाद यादव- छात्र राजनीति से श्ुारुआत। दो बार विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष बने। लगातार पांच बार से पार्षद हैं। वार्ड बदलने और जेल में रहते हुए भी पार्षद चुनाव जीत लोकप्रियता दर्शाई। एक बार नगर निगम सभापति बने। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह के समर्थक माने जाते हैं। पार्टी कार्यक्रमों में समय-समय तुलनात्मक कम सक्रियता, अपने पुराने दायरे से बाहर नहीं निकलना नुकसान पहुंचा सकता है।

मुकेश शर्मा- प्रदेश कांग्रेंस कमेटी के प्रवक्ता। प्रदेश स्तरीय प्रचार एवं संचार कमेटी के सदस्य। लंबे समय दिल्ली-भोपाल रहे और वरिष्ठ नेताओं से अच्छे संपर्क हैं। शिक्षित व निर्विवादित छवि के साथ सामाजिक गतिविधियों में सक्रियता बढ़ाई है। लंबे समय शहर से दूर रहने, पेराशुट लाचिंग का तमगा और आमजन में कम पहचान टिकट दावेदारी के लिए कमजोरी मानी जा रही है।

यह भी दौड़ में- युवा नेता विवेक यादव भी पिछला विधानसभा चुनाव लडऩे के चलते प्रबल दावेदार हैं। इनके अलावा नूरी खान, योगेश शर्मा भी दावेदार हैं।

दक्षिण से ये दावेदार –

मोहन यादव – मौजूदा विधायक होने के नाते स्वाभाविक उम्मीदवार है। यूडीए व पर्यटन निगम में अध्यक्ष रह चुके है। विधायक रहते ग्रामीण क्षेत्रों में भी खुद की अपनी जमीन बनाई। कला, संस्कृति, धार्मिक आयोजनों के जरीए सालभर चर्चाओं में बने रहते है। किसी अन्य प्रतिद्वंदी को अपनी ऊंचाई तक नहीं आने देने मेंं माहिर। संघ के कद्दावर नेता की पसंद लेकिन कई प्रभावशाली नेताओं से संबंध ठीक नहीं।

इकबाल सिंह गांधी – दो बार भाजपा नगर जिलाध्यक्ष रहे। हाल ही में दावेदारी के चलते पद छोड़ा। दोनों कार्यकाल में जितने चुनाव हुए पार्टी ने अच्छा परफॉरमेंस दिखाया। मेहनतकश व सरल छवि। सीएम से निकटता और लोकसभा स्पीकर की पसंद। दक्षिण क्षेत्र में खुलकर हुए सक्रिय। संघ व प्रदेश संगठन में अच्छी साख। ग्रामीण क्षेत्रों में संपर्क कुछ कम व जातिगत आधार पर दिक्कत।

भानु भदौरिया – अभाविप से छात्र राजनीति में प्रवेश। युवा मोर्चा में प्रदेश मंत्री व अन्य पदों पर रहे। उच्च शिक्षित व युवाओं में अच्छी पकड़। पहली बार भाजपा में युवा वर्ग से दावेदारी। केंद्रीय मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर के खास व अन्य वरिष्ठों से तालमैल। ध्वज अभियान व पर्यावरण जागृति के जरीए क्षेत्र में सक्रिय। नया नाम होने से सर्व स्वीकार्यता का अभाव, अनुभव भी आड़े आएगा।

वीरेंद्र कावडि़या – लंबे समय से पार्टी में सक्रिय, मोर्चा में प्रदेश मंत्री, पार्टी में व यूडीए बोर्ड उपाध्यक्ष रहे। पिछली बार भी दावेदारी की, वरिष्ठों के कहने पर नाम वापस लिया। विभिन्न संस्थाओं के जरीए सामाजिक समरसता के साथ सामाजिक आयोजनों में सक्रिय। संघ का द्वितीय वर्ष प्रशिक्षण। कुछ समय से अहम पद पर ना होने से मुख्यधारा में नाम कम लेकिन छवि सरल व ईमानदार।

ये नाम भी चर्चाओं में
भाजपा से पूर्व विधायक शिवनारायण जागीरदार, भंवरसिंह चौधरी, राजपालसिंह सिसौदिया, शिवा कोटवाणी के नाम भी चर्चाओं में है।

अन्य नाम में ये – आम आदमी पार्टी से प्रत्याशी घोषित हुए शैलेंद्र सिंह रूपावत, स्वतंत्र उम्मीदवार रविभूषण श्रीवास्तव, एडवोकेट यशवंत अग्निहोत्री, सपाक्स वर्ग से निर्दोष निर्भय के नाम भी सामने आए है।

कांग्रेस प्रत्याशी : उज्जैन दक्षिण

राजेंद्र वशिष्ठ- तीन बार के पार्षद व अभी नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष हैं। राजनीतिक पृष्ठभूमि मजबूत। संघर्षशील छवि होने के साथ दक्षिण क्षेत्र में शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में भी पकड़। पूर्व सीएम दिग्विजसिंह के नजदीकी हैं। लंबे समय से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। एक बार निर्दलीय चुनाव लडऩा दावेदारी को कमजोर कर सकता है।

चेतन यादव- युवा नेता व पूर्व पार्षद हैं। वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस सचिव हैं। शहर से जुड़े विभिन्न मुद्दों को लेकर सक्रिय हैं। पार्टी कार्यक्रमों में भी भागीदारी व नवाचार। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव खेमे से व कमलनाथ से भी जुड़े। उज्जैन उत्तर क्षेत्र छोड़कर दक्षिण में आने से बाहरी उम्मीदवारी का नुकसान हो सकता है।

बीनू कुशवाह- युवा नेता व दो बार के पार्षद हैं। जनता के बीच में रहने के साथ क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर लड़ाइ लडऩे वाले के रूप में पहचान। वर्तमान में सिंधिया गुट से जुड़े हैं। जातिगत समीकरण पक्ष में हैं। पूर्व के विवादों और उग्र स्वभाव को प्रतिद्वंदी हाईकमान के सामने पेश कर दावेदारी कमजोर कर सकते हैं।

अजीतसिंह ठाकुर- युवा नेता के साथ माधवनगर ब्लॉक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हैं। पत्नी जनपद पंचायत अध्यक्ष हैं। राजनीतिक क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़े। शहर के साथ ग्रामीण क्षेत्र में भी पकड़। जातिगत समीकरण पक्ष में। दिग्विजयसिंह खेमे से हैं। साथी कांगे्रसी व कुछ वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी और पार्टी में ताकत से नाम नहीं रखने वाले की कमी नुकसान पहुंचा सकती है।

यह भी टिकट की दौड़ में

उमेशसिंह सेंगर, जयसिंह दरबार…

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