सुबह 4 बजे से अभिषेक पूजन
प्रतिवर्ष चिंतामण गणेश मंदिर पर माघ मास की संकष्टी चतुर्थी को तिल महोत्सव के रूप में आयोजित किया जाता है। सुबह 4 बजे से अभिषेक, पूजन के साथ पुजारियों द्वारा भगवान गणेशजी को सवा लाख तिल के लड्डुओं का महाभोग लगाया गया। मंदिर में फूलों और विद्युत रोशनी से आकर्षक सजावट की गई। चिंतामण गणेश मंदिर के सीताराम पुजारी, संतोष पुजारी, शंकर पुजारी ने बताया कि गणेश जी के दरबार में तिल महोत्सव मनाया जा रहा है। श्रद्धालुओं को तिल के लड्डूओं का प्रसाद और 7 तरह के फलाहारी व्यंजन बांटे गए।
देर रात तक दर्शन
चतुर्थी पर मंदिर के पट खोलने के बाद पंचामृत से अभिषेक किया गया। घी, सिंदूर और चांदी बर्क से चोला चढ़ाया। भोग में सवा लाख तिल के लड्डू चढ़ाए गए। इसके साथ ही आम दर्शन का सिलसिला सुबह से आरंभ हुआ जो देर रात तक चलेगा। सुबह 8 बजे अभिषेक कर विशेष शृंगार कर महाआरती की गई। दर्शनार्थियों की भीड़ अधिक होने के कारण गर्भगृह के बाहर से ही दर्शन खोले गए हैं। दर्शन का दौर देर रात चलेगा।
प्रसादी का वितरण
मंदिर महाभोग के सवा लाख तिल के लड्डुओं के वितरण के साथ पुजारी परिवार की ओर से भक्तों के सहयोग से श्रद्धालुओं के लिए विशेष प्रसादी का आयोजन रखा गया है। इसमें लगाकर जलेबी, फलाहारी खिचड़ी, गाजर का हलवा आदि भोग वितरित किया गया।
अन्य मंदिरों में भी धार्मिक आयोजन
माघ मास की संकष्टी चतुर्थी (तिल चौथ) अवसर पर चिंतामण गणेश मंदिर के अलावा शहर के अन्य गणेश मंदिरों में भी अनेक आयोजन किए जा रहे हैं। मंछामन, श्री सिद्घविनायक, स्थिरमन गणेश, लक्ष्मी प्रदाता गणेश, मोदकप्रिय गणेश, दुर्वामुख गणेश मंदिर में भी विशेष आयोजन और शृंगार आदि हुए।
भजनों की धुन पर थिरक रहे भक्त
मंदिर परिसर में भजन मंडली द्वारा मधुर भजन प्रस्तुत किए जा रहे हैं, जिन पर दर्शन के लिए आए भक्तजन झूम रहे हैं। इसके साथ ही यहां स्वास्थ्य विभाग की ओर से रक्तदान शिविर का आयोजन भी किया गया।
दूर होते हैं विघ्न
माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन कई महिलाएं तिल एवं गुड़ से निर्मित लड्डुओं का भोग भगवान गणेश जी को अर्पण करने के पश्चात ग्रहण करती है। तिल चतुर्थी का व्रत करने से घर परिवार में आ रही विपदा दूर होती है, मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं, इसलिए यह माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से सभी तरह के विघ्नों का नाश होता है। चतुर्थी से व्रत को इस चतुर्थी से प्रारंभ किया जा सकता है।