scriptvideo : सिंहस्थ : यादों के झरोखों से…दो साल पहले कैसे आस्था के महासागर में समाहित था शहर… | Two years ago on the same day started Simhastha | Patrika News

video : सिंहस्थ : यादों के झरोखों से…दो साल पहले कैसे आस्था के महासागर में समाहित था शहर…

locationउज्जैनPublished: Apr 22, 2018 06:24:09 pm

Submitted by:

Lalit Saxena

निकलने वाली पेशवाई में धूम मचाते साधुजन सभी के आकर्षण का केंद्र बने। आस्था के महासागर में शहर पूरी तरह से समाहित था।

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उज्जैन. दो वर्ष पूर्व आज ही के दिन २२ अपै्रल को सिंहस्थ महापर्व का शुभारंभ हुआ था। महाकुंभ आरंभ होने के पहले से ही शहर में आस्थावानों का सैलाब उमडऩा शुरू हो गया था। साधु-संतों के टेंट-तंबू और महामंडलेश्वरों के साथ निकलने वाली पेशवाई में धूम मचाते साधुजन सभी के आकर्षण का केंद्र बने। आस्था के महासागर में शहर पूरी तरह से समाहित था।

ये हुआ विकास
दो हजार करोड़ से शहर में सड़क, ब्रिज, अस्पताल जैसे निर्माण ने शहर को आधुनिक और तेजी से विकसित शहर में शामिल कर दिया है। पीछे पलटकर देखें तो इन सौगातों ने शहर की पहचान और तस्वीर ही बदल दी। अब ये निर्माण शहर की जरुरत और आगे की बड़ी योजना की बुनियाद भी बनती जा रही है। अमूमन उज्जैन के विकास के लिए सिंहस्थ की राह देखी जाती रही है। वर्ष २०१६ के सिंहस्थ ने इस व्यवस्था को खत्म-सा कर दिया है। फोरलेन व ब्रिज से सिर्फ लोगों के आने-जाने का न केवल रूट बदला है, बल्कि होटलों की शृंखला और सौंदर्यीकरण सेे पर्यटन को भी बढ़ावा मिला है। हालांकि इन निर्माण कार्यों से सुविधाएं तो मिलीं, लेकिन इनके संधारण की दरकरार भी है।

बायपास व सड़क
१०० करोड़ रु. के सिंहस्थ बायपास सहित करीब ४०० करोड़ से १०० नई सड़कों का निर्माण हुआ। इनमें १० आंतरिक फोरलेन भी शामिल हैं।

पहले- मेला क्षेत्र से जुड़े जीवनखेड़ी, दाउद खेड़ी जैसे गांव शहर से कटे नजर आते थे, पहुंच मार्ग सिंगल लेन था। मेला क्षेत्र व आसपास के मंदिरों की पहुंच सुविधायुक्त नहीं थी। बाहरी क्षेत्रों में जमीन की कीमत काफी कम थी। मेला क्षेत्र में पहुंचने के लिए चुनिंदा रोड थे। आंतरिक बायपास नहीं थे।

अब- आंतरिक बायपास बनने से शहर से जुड़े गांव, शहर का हिस्सा बन गए हैं। यहां शहरी पहुंच आसान हुई है। जमीनों की कीमत तीन-चार गुना तक हो गई है। नागदा, बडऩगर आदि की ओर जाने के लिए नया मार्ग उपलब्ध हुआ। अधिकांश मंदिरों तक पहुंचने के लिए टूलेन-फोरलेन उपलब्ध।

जरूरत- सड़कों का सरफेस खराब होने लगा है, खासकर सीमेंट-क्रांकिट रोड का। बायपास के आसपास आवासीय क्षेत्र विकसित हुआ लेकिन पथ प्रकाश व सुरक्षा व्यवस्था की कमी बनी हुई है।

ब्रिज व आरओबी
शहर में करीब १५० करोड़ की लागत से १४ ब्रिज व रेलवे ओव्हर ब्रिज बने। पहली बार इतनी बड़ी सख्या में एक साथ इतने ब्रिज व आरओबी बने हैं।

पहले- उद्योगपुरी, चिंतामण मंदिर मार्ग आदि क्षेत्रों में रेलवे क्रॉसिंग पर ट्रैफिक की समस्या रहती थी। परेशानी से बचने के लिए वैकल्पिक मार्गों का उपयोग। मंगलनाथ, जुना सोमवारिया, भूखी माता आदि क्षेत्रों के मंदिर या गांवों तक पहुंचने में सिंगल लेन व लंबी दूरी तय करना पड़ती थी।

अब- नृसिंह घाट, मंगलनाथ, ऋण मुक्तेशर, ओखलेश्वर, चिंतामण गणेश क्षेत्र में शिप्रा पर ब्रिज बनने से दूरी कम हुई। इन क्षेत्रों में आने-जाने के लिए विकल्प मिले। मक्सी रोड एमआर-१०, एमआर-५, चिंतामण गणेश मंदिर मार्ग पर आरओबी बनने से रेलवे गेट की रुकावट खत्म हुई।

जरूरत- संधारण की कमी से एमआर-५, चिंतामण गणेश सहित अन्य ब्रिज पर अभी से गड्ढे पडऩे लगे हैं। कुछ ब्रिज में दरारे पड़ रही हैं। कुछ ब्रिज के आसपास अतिक्रमण बढ़ रहा है। इनके नीचे के मार्ग खराब हो रहे हैं।

मिली नए अस्पताल की सौगात
करीब ९३ करोड़ से ६ मंजिला चरक भवन का निर्माण हुआ, जो संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल है। मदर केयर यूनिट प्रदेश की सबसे बड़ी यूनिट है।

पहले- मातृ एवं शिशु चिकित्सा के लिए सख्याराजे अस्पताल व शिशु वार्ड था। दोनों केंद्र सड़क आमने-सामने थे। यहां कम बिस्तरों के साथ ही सुविधाओं की कमी थी। अस्पताल में गंदगी व अव्यवस्थित भवन आदि की समस्या थी। इसके कारण यहां मरीज परेशान होते थे।

अब-अस्पताल में मातृ एवं शिशु व एसएनसीयू यूनिट, तीनों एक ही भवन में उपलब्ध हैं। सुविधा बढऩे से डिलवेरी की संख्या औसत १५ से बढ़कर ३० तक हो गई है। बिजली जनरेटर, अग्नि शमन, लिफ्ट, सेट्रंललाइज ऐसी जैसी आधुनिक सुविधा उपलब्ध है।

जरूरत- अग्नि शमन की व्यवस्था है लेकिन संचालन की नहीं। चिकित्सक-नर्सिंग स्टॉफ की कमी से पूरे भवन का उपयोग नहीं हो रहा। राशि की कमी से अन्य नई सुविधाएं शुरू नहीं हो पा रही।

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