पिछले चुनाव के बाद से देखें तो हर साल दो पहिया, चार पहिया वाहन लगातार बढ़ रहे हैं। इनसे निकलने वाला जहरीला धुंआ शहर की आबोहवा को नुकसान पहुंचा रहा है। वाहनों से निकलने वाले धुंए और निर्माण कार्यों से धूल-धुएं की मात्रा बढ़ती जा रहा है।
वर्ष रजि. वाहनों की संख्या पीएम-2.5 रोपे गए पौधों की संख्या भूजल स्तर
2016 4353 उपलब्ध नहीं 71800 उपलब्ध नहीं
2017 3817 28.7 मा. 36956 उपलब्ध नहीं
2018 4865 31.5 मा. 25500 14.39 मी.
2019 6155 33.5 मा. 139200 13.95 मी.
2020 4964 32.5 मा. 50230 11.47 मी.
2021 6921 40.56 मा. 60000 10.37 मी.
जिले की हरियाली की बात करें तो 0.5 प्रतिशत के साथ स्थिति शर्मनाक है। शहरी मुख्यालय पर जरूर 10 से 15 प्रतिशत ग्रीनरी से स्थिति संभली हुई है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में हरियाली बढ़ाने के लिए लगातार जागरूतका कार्यक्रम चलाना होंगे। लोगों को समझना होगा कि बगैर हरियाली जीवन व्यर्थ है। राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार देश के 33.3 प्रतिशत भू-भाग पर वन होना चाहिए। लेकिन चिंता की बात है कि देश के केवल 19.5 प्रतिशत भग पर वन है। नए युग के अधुनिकीकरण के लालच ने सबकुछ उलट दिया है।
-राजीव पाहवा, पर्यावरणविद
पर्यावरण संरक्षण को लेकर हमने भी काम किया, लेकिन पर्याप्त नहीं है। वर्तमान सरकार ने वृक्षों के नाम पर करोड़ों रुपए पानी में बहा दिए, लेकिन नतीजा जनता के सामने है। सरकार से कोई उम्मीद नहीं, लेकिन लोगों को जागरूक होना चाहिए। जनता की भगीदारी से पर्यावरण संरक्षण के साथ ही स्थिति सुधरेगी। इस तरह का अभियान भी चलना चाहिए कि जिस घर में बेटी, उस घर में एक पौधा जरूरी। इससे बेटी के ब्याह के बाद भी घर में पेड़ के रूप में उसका अहसास बना रहेगा।
-नूरी खान, प्रदेश उपाध्यक्ष, महिला कांग्रेस
ग्रीन सिटी का कॉन्सेप्ट विज्ञापन से उतार कर जमीन पर लाने की जरूरत है। सिटी फारेस्ट की जो कल्पना आई है, उसमें हमे खाली जगह को सघन वन के रूप में तब्दील करना चाहिए। इसके अलावा उज्जैन को डस्ट फ्री सिटी बनाने की आवश्यकता है। कच्चे स्थान को पक् का किया जाए या ग्रीनरी हो। हमारी जो जलसंरचना है,उसे भी सहेजने की जरूरत है। पर्यावरण का मुद्दा राजनीतिक दलों के एजेंडे में होना चाहिए था। जनता को भी इसी आधार पर वोट देना चाहिए।
– सोनू गेहलोत, पूर्व निगम सभापति