बता दें, विक्रम विवि प्रशासन पर भ्रष्टाचार, अनियमितता और धांधली के सीधे आरोप लग रहे थे। इन शिकायतों की जांच हाइकोर्ट खंडपीठ इंदौर के आदेश पर की जा रही है। इन शिकायतों में किताब खरीदी और निजी कॉलेजों में नियुक्ति, कॉलेजों को संबद्धता व निरंतरता देने की प्रक्रिया आदि शामिल है। विवि में विद्यार्थियों की समस्याओं का भी समाधान नहीं किया जा रहा है। एेसे में प्रशासनिक सुधार के लिए धारा 52 लगाई गई है।
प्रशासनिक कार्रवाई है धारा 52
विश्वविद्यालय का प्रशासनिक प्रबंध कार्यपरिषद करती है। कार्यपरिषद में शासकीय व अशासकीय सदस्य होते हैं, जो समस्त निर्णय लेते हैं। जब किसी जांच में तय होता है कि विवि की कार्यपरिषद प्रबंधन करने में असमर्थ है तो सरकार धारा 52 का प्रयोग करती है। इसके तहत राज्य सरकार के पैनल से कुलपति का चयन होता है और कार्यपरिषद की जगह सरकार का मंडल होता है।
चार लोगों का पैनल
विक्रम विवि में धारा 52 के तहत नए कुलपति के लिए सरकार ने चार लोगों का पैनल तैयार किया है। इसमें दो प्रोफेसर उज्जैन विक्रम विवि के हैं। एक नाम जबलपुर विवि और एक अन्य नाम है। चर्चा है कि कुलपति की दौड़ में सीएम कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ की पसंद पर मुहर लगने की संभावना है।
जांच रिपोर्ट पर मंत्री ने की कार्रवाई
विक्रम विवि के किताब खरीदी व निजी कॉलेजों में धारा 28 कोड के तहत हुई नियुक्तियों की जांच हाइकोर्ट के निर्देश पर हुई। यह जांच राजभवन को प्रस्तुत की गई, लेकिन राजभवन ने उक्त जांच रिपोर्ट पर आदेश जारी नहीं किया। न्यायालय में जांच आदेश प्रस्तुत करने का समय दो बार बढ़ाया गया। इसी बीच कुलपति प्रो. एसएस पाण्डे से इस्तीफा ले लिया गया और प्रो बालकृष्ण शर्मा को प्रभारी कुलपति बनाया गया था, लेकिन उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी ने सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए। इसी के चलते धारा 52 की कार्रवाई हुई। बता दें, विवि की समस्याओं को लेकर स्थानीय लोगों ने मंत्री से शिकायत की थी। इसके बाद मंत्री ने स्पष्ट कह दिया था कि जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी।
कार्यपरिषद भंग
विक्रम विवि की कार्यपरिषद भंग हो गई। कार्यपरिषद में छह सदस्य राजभवन से नामित होते हैं। इसके अलावा दो डीन, दो प्रोफेसर, दो सरकारी कॉलेज के प्राचार्य, प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा और वित्त आदि सदस्य होते हैं। विक्रम विवि की कार्यपरिषद अब भंग हो गई। अब सरकार के द्वारा पैनल बनाया जाएगा।
2010 में लग चुकी है धारा 52
विक्रम विवि में वर्ष 2010 में धारा 52 लगी थी। इस दौरान सरकार ने माधव साइंस कॉलेज के टीआर थापक को कुलपति बनाया था। विक्रम के तत्कालीन कुलपति एससी एलाहवात के खिलाफ कर्मचारियों और शिक्षकों ने मोर्चा खोल दिया था। हर दिन प्रदर्शन और हंगामे के बीच सरकार ने धारा 52 लगा दी। इधर, प्रोफेसर एसएस पाण्डे पर सीधे तौर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। इन शिकायतों के तथ्य जांच के बाद सही पाए गए।
पूर्व कुलपति पर कार्रवाई संभव
विक्रम विवि में धारा 52 लगने के बाद अब जांच रिपोर्ट अनुमोदित हो गई। एेसे में पूर्व कुलपति प्रो. एसएस पाण्डे पर कार्रवाई संभव है। दरअसल, शिकायत इओडब्ल्यू और लोकायुक्त में भी लंबित है। उच्च शिक्षा विभाग की रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद यह एजेंसी भी कार्रवाई आगे बढ़ाएगी। इसके बाद पूर्व कुलपति की मुसीबत बढ़ सकती है।
पत्रिका ने उठाए थे मामले
विक्रम विवि में किताब खरीदी घोटाले और निजी कॉलेजों में नियुक्ति अनियमिताओं को पत्रिका ने उजागर किया था। इस मामले में कुलपति लगातार नियमानुसार कार्रवाई होने का दावा कर रहे थे, लेकिन जांच को भी प्रभावित कर रहे थे। हाइकोर्ट ने जुलाई में समस्त शिकायतों के जांच के आदेश दिया, लेकिन जांच नहीं हो सकी। पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया ने हाइकोर्ट के आदेश के पालन की बात कही, लेकिन इस बीच सरकार बदल गई और उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी ने भी न्यायालय के फैसले के सम्मान किए जाने की बात कही। जांच रिपोर्ट में सभी शिकायतों सही पाया गया।