ऐसी रहेगी प्रक्रिया
मोती की खेती के लिए सर्वप्रथम उच्च कोटि की सीप ली जाएगी , जिसमें मुख्यत: समुद्री ऑयस्टर पिंकटाडा मैक्सिमा तथा पिकटाडा मर्गेरिटिफेरा, पिकटाडा बुल्गैरिस इत्यादि प्रजातियां शामिल है। मोती की खेती हेतु सीप का चुनाव कर लेने के बाद प्रत्येक सीपी में छोटी सी शल्य क्रिया की जाएगी। इस शल्य क्रिया के बाद सीपी के भीतर एक छोटा सा नाभिक तथा मैटल ऊतक रखा जायेगा। इसके बाद सीप को इस प्रकार बन्द किया जाएगा कि उसकी सभी जैविक क्रियाएं पूर्ववत चलती रहें। मेंटल ऊतक से निकलने वाला पदार्थ नाभिक के चारों ओर जमने लगेगा। तथा इसे अन्त में मौती का रूप दिया जाएगा, कुछ दिनों के बाद सीप को चीर कर मोती को निकाल दिया जाएगा।
एक्वाकल्चर सेंटर के संचालक एवं सह-संचालक डॉ अरविन्द शुक्ल एवं डॉ शिवि भसीन ने बताया कि एक्वाकल्चर सेंटर में मोती का निर्माण करने में 12 से 1 5 महीने लगेंगे एवं इस प्रक्रिया में जीवित सीपों में छोटी सी शल्य क्रिया करनी होती है, जिसके बाद सीपों को कोई भी रूप दिया जा सकता है। जैसे गणेश या फूल की आकृति जिससे मोती एक सुंदर आकार ले लेता है। प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ सलिल सिंह ने बताया कि मोती उत्पादन का सर्वश्रेष्ठ समय शरद ऋतु है और वर्तमान परिस्थितियों में यह प्रयास किया जा रहा है कि सितम्बर अक्टूबर तक एक्वाकल्चर सेंटर में मोती का निर्माण किया जा सके।
मोती की खेती से आत्मनिर्भर भारत की नींव
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया कि एक्वाकल्चर सेंटर में मोती की खेती करने के साथ-साथ इसका प्रशिक्षण किसानों, विद्यार्थियों एवं नौजवानों को दिया जायेगा जो इसका उपयोग कर अपने स्वयं का रोजगार स्थापित कर सकेंगे एवं विक्रम विश्वविद्यालय अपने यशस्वी कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय के मार्गदर्शन में ऐसे रोजगारपरक पाठ्यक्रमों को निरंतर रूप से संचालित करता रहेगा, जिससे समाज की प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता रहे।
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विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने बताया कि किसानों एवं स्वयं का उद्योग खोलने वाले नवयुवकों के लिए मोती की खेती एक अच्छा विकल्प है, मोतियों का उपयोग आभूषणों के अलावा औषधि निर्माण में भी होता आया है। भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में मोती भस्म का उपयोग कई प्रकार की औषधियों के निर्माण में किए जाने का उल्लेख मिलता है, एवं इससे स्वास्थ्यवर्धक दवाओं का निर्माण किया जाता है। विक्रम विश्वविद्यालय प्रदेश एवं प्रदेश के बाहर के किसानों को भी इस क्षेत्र में प्रशिक्षित करने हेतु अग्रसर है।