हमसे उनकी नहीं, उनसे हमारी पहचान है
फ्रीगंज निवासी डॉ. हरीश भटनागर और जयश्री भटनागर की शादी को करीब ४५ वर्ष हो चुके हैं। डॉ. भटनागर कहते हैं, पत्नी पूर परिवार की धूरी होती है। आमतौर पर धारणा है कि पत्नी की पहचान उनके पति से होती है लेकिन लंबे अनुभव के बाद समझ आता है कि पति की पहचान पत्नी के दम पर ही कायम हुई है, उनसे ही पतियों की पहचान है। वे हर कार्य में पति पहले महत्व देती है। पहले उन्हें भोजन कराती है और फिर खुद करती हैं। यह सिर्फ एक उदाहरण है, पत्नी कदमदर कदम साथ देती है। वैसे तो पत्नी का महत्व पूरे समय रहा लेकिन मुझे सबसे ज्यादा इसका अहसास तब हुआ जा दो वर्ष पहले मेरा रोड एक्सीडेंट हो गया था। बीमार होने के बावजूद मेरी पत्नी ने मेरा दिन-रात ख्याल रखा। कई बार तो वह रात को ठीक से सो भी नहीं पाती, मेरी एक आह पर वह मदद के लिए खड़ी हो जाती थी।
पत्नी ने मनोबल टूटने नहीं दिया
जिस तरह से एक व्यक्ति के लिए जीवन मे मां के अलावा कुछ नहीं है ठीक इसी तरह पत्नी का भी एक खास स्थान हैं। पत्नी जीवन की गाड़ी का वह पहिया है जिसके बगैर आगे बढऩा असंभव हैं। ना बेटा निहाल करेगाए न बेटी निहाल करेगीएवृद्ध अवस्था में तो पत्नी ही देखभाल करेगी यह कहना है राकेश खोती का। राकेश अपनी पत्नी साधना खोती को लेकर कहते हैं, पत्नी के बगैर सब कुछ अधूरा ही है एक घटना का जिक्र करते हुए वे बताते हैं कि कुछ समय पहले दुर्घटना में उनके पैरों के लिगामेंट्स पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे। चिकित्सकों ने कह दिया था ऑपरेशन के बगैर कुछ भी नहीं हो सकता है। इसमें भी सफलता की संभावना नहीं है। इसके बाद मेरा मनोबल टूट गया और लगा कि अब एक विकलांग की तरह जीना होगा। इन सबके बावजूद पत्नी में हौसला नहीं खोया। सतत सेवा कर फिजियो थेरेपी देकर मुझे फिर से चलने फिरने लायक बना दिया।