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उज्जैन

पत्नी की जान बची न मकान, टूटा मुसीबतों का पहाड़

अब रैनबसेरा में गुजर रही बाकी जिंदगी, शासकीय योजनाओं के बावजूद वर्षों से कभी सड़क तो कभी रैन बसेरे में रात बिताने को मजबूर है कैलाश

उज्जैनAug 13, 2019 / 01:15 am

rishi jaiswal

patrika

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उज्जैन. पत्नी, दो बेटी और अपना छोटा सा आशियाना… खुशहाल पारिवारिक जीवन के बीच कभी सोचा नहीं कि एक बीमारी सबकुछ छीन लेगी। बीमारी ने न सिर्फ जीवनसंगिनी का साथ हमेशा के लिए छीन लिया, इलाज में घर तक बिक गया। जो परिवार कभी खुशहाल था, उसका मुखिया आज पूरी दिन हाड़तोड़ मेहनत के बाद कभी सड़क पर तो कभी रैन बसेरे में रात बिताने को मजबूर हैं। समय की मार ने सिर्फ खुशियां ही नहीं छीनी, उन उम्मीदों का भी गला घोंट दिया जो जीवन को दोबारा पटरी पर लाने की ताकत देते।
यह कहानी है ६० वर्षीय कैलाश चंद्र टटवाल की जो न केवल उनके जीवन को बल्कि सरकार की उन योजनाओं पर भी सवाल खड़े करती है जो बेघर को छत देने का दावा कर रही हैं। दरअसल तन्हा जीवन बिताने वाले कैलाश कभी हंसते-खेलते परिवार के मुखिया थे। देसाईनगर के नजदीक उनका एक मकान था। वर्ष २००२ में उनकी पत्नी जुमला बाई को तबीयत खराब हो गई। पता चला कि जुमला बाई को ट्यूबर क्लोसिस है। कैलाश ने पत्नी का कर्ज लेकर इलाज कराया, लेकिन २००४ में जुमला बाई का निधन हो गया। समय से कर्ज न चुका पाने के कारण उसका घर भी बिक गया। हालांकि इससे पूर्व वे अपनी दो बेटियों की शादी कर चुके थे। ट्यूबर क्लोसिस ने उनसे उनकी पत्नी तो छीनी ही छत भी छीन ली। छत छीनने के बाद से वे बेघर हैं। कभी परिवार के मुखिया रहे कैलाश आज एकदम तनहा हैं, न परिवार का साथ है और नहीं सरकारी योजनाओं का।
कितने दिन रहूं बेटियों के घर
कैलाश की बड़ी बेटी की इंदौर व छोटी की गोठला में शादी हुई है। कभी कभार वे बेटियों से मिलने उनके घर जाते हैं लेकिन मजबूर होने के बावजूद वहां अधिक समय नहीं रुकते। कैलाश कहते हैं बेटियां दूसरों की अमानत होती हैं। जिनकी अमानत थी, उन्हें सौंपने के बाद वहां ज्यादा नहीं रहा जा सकता। भरे गले से वे कहते हैं, कई बार अकेलापन महसूस होता है लेकिन बेटियों के घर ज्यादा दिन रुका भी तो नहीं जा सकता।
काम मिला तो भर लिया पेट
कैलाश बेलदारी करते हैं। उनके अनुसार कभी काम मिलता है तो कभी पूरा दिन बेरोजगारी में ही कट जाता है। जैसे-तेसे पेट भरने की व्यवस्था हो जाती है। आधार कार्ड सहित कुछ दस्तावेज उनके पास थे, वे भी गुम हो गए हैं। अब वे किसी प्रकार की योजना का लाभ भी नहीं ले सकते।
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