ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला ने बताया धर्म शास्त्रीय मान्यता के अनुसार देखा जाए तो सूर्य की संक्रांति का समय विशेष प्रभाव डालता है, कहा जाता है कि यदि मध्याह्न उपरांत सूर्य की संक्रांति होती है। अर्थात मध्याह्न या अपराह्न के बाद या सायंकाल की संक्रांति का समय यदि गोचर में उपलब्ध होता है, तो ऐसी स्थिति में संक्रांति का पुण्य पर्व काल अगले दिन मनाना चाहिए। इसी मान्यता के आधार पर देखें तो 14 जनवरी 2022 को दोपहर 2:32 पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा जिसका पुण्य पर्व काल 15 जनवरी को मनाया जाएगा।
30 वर्ष बाद शनि का शश व केंद्र योग
ग्रह गोचर की गणना में कई प्रकार के योग संयोग बनते रहते हैं, पर्व काल विशेष पर जब ग्रह गोचर में पंच महापुरुष में से कोई एक योग उपलब्ध हो, तो वह विशेष माना जाता है। इसी गणना की दृष्टि से इस बार मकर संक्रांति का पर्व शनि के मकर राशि पर परिभ्रमण करने तथा केंद्र योग के माध्यम से होने से बन रहा है।
सूर्य शनि की युति मकर राशि में
यह भी संयोग है कि मकर राशि पर शनि का परिभ्रमण के चलते सूर्य की मकर संक्रांति भी संयुक्त क्रम से बन रही है। यह योग बहुत कम बनता है, जब मकर मास में मकर राशि पर मकर संक्रांति का पर्व काल मकर राशि की युति में सूर्य शनि का संयुक्त क्रम होना। आमतौर पर ही यह संयोग सालों बाद बनता है।
शनि प्रदोष पर संक्रांति का पर्व काल
एक संयोग यह भी है कि शनिवार के दिन मकर संक्रांति पर्व काल तथा प्रदोष का होना भी अपने आप में विशेष है। शनिवार के दिन प्रदोष का होना शनि प्रदोष माना जाता है। यह अपने आप में ही विशेष है, इसमें भी यदि संक्रांति महापर्वकाल की स्थिति बनती है तो यह और भी श्रेष्ठ हो जाता है। इसमें किया गया दान, व्रत, जप, नियम का विशेष फल मिलता है।
संक्रांति का स्वरूप
वारनाम-मिश्र संज्ञक, नक्षत्र नाम- मंदा, वाहन- व्याघ्र, उप वाहन- अश्व, 45- मुहूर्ती, दक्षिण दिशा में गमन, नैऋत्य कोण में दृष्टि, कुमार अवस्था। ग्रह गोचर के परिभ्रमण तथा लग्न की स्थिति अनुसार देखें तो ग्रहों के दृष्टि संबंध के आधार पर संक्रांति का प्रभाव 70 प्रतिशत श्रेष्ठ व 30 प्रतिशत कमजोर रहेगा।
भारत के लिए श्रेष्ठ, किंतु कठिन समय का भी आरंभ
खास तौर पर संक्रांति के प्रवेश को लेकर ग्रह गोचर के गणित का विशेष प्रभाव देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब सूर्य की संक्रांति उत्तरायण की ओर बढ़ती है, तो ऐसी स्थिति में ग्रहों का प्रभाव भारत राष्ट्र की दृष्टि से कितना अनुकूल है या कितना विकासकारी, इन सभी स्थितियों को देखते हुए जब हम गणना करते हैं तो भारत के लिए यह तो श्रेष्ठ है किंतु कठिन समय की भी शुरुआत इससे मानी जाएगी। उसका मुख्य कारण ग्रहों के नक्षत्र तथा दृष्टिओं के संबंध, साथ ही जिस समय लग्न में प्रवेश का वह समय भी इस स्थिति को स्पष्ट करता है। इस दृष्टि से बहुत से स्थानों पर नकारात्मकता का भी अनुभव होगा।
मकर संक्रांति पर यह करें
मकर संक्रांति के पुण्य काल में सफेद तिल मिश्रित जल में तीर्थ आदि नदियां, सरोवर में स्नान करना चाहिए। यदि नदी पर स्नान न हो सके तो घर पर ही करें, ध्यान रहे तिल का उपयोग आवश्यक है। सभी तीर्थों का ध्यान करके स्नान करें स्नान पश्चात शिवलिंग पर सफेद तिल मिश्रित जल से अभिषेक करें। साथ ही भगवान सूर्य को भी सफेद तिल से अघ्र्य दें। हालांकि सभी देवताओं को अघ्र्य देने की अलग-अलग पद्धति है, किंतु यह संक्रांति का समय है, जिसमें यह विशेष समय होता है। जिसके अंतर्गत तिल से अघ्र्य भी दिया जा सकता है। अघ्र्य देने के बाद तीर्थ पर वैदिक ब्राह्मण को संक्रांति के निमित्त चावल, खड़ा मूंग, सफेद या काली तिल्ली का दान करें। यदि ताम्र कलश में काले तिल भरकर सोने का दाना रखकर के दान किया जाए, तो ज्ञात-अज्ञात दोष तथा पापों की निवृत्ति होती है।