सप्तमी और अष्टमी पर मनाया जाता है यह पर्व
चैत्र मास कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी पर यह पर्व रहता है। बुधवार को शीतला सप्तमी और गुरुवार को अष्टमी का व्रत रहेगा। इस दौरान घरों में चूल्हा नहीं जलेगा और एक दिन पूर्व तैयार पकवानों का शीतला माता को भोग लगाया जाएगा। शीतला माता का पूजन कर बच्चों के दीर्घायु होने व परिवार की सुख-शांति की कामना की जाएगी। परिवार के सभी सदस्य भी इसी प्रसाद को ग्रहण करेंगे। माना जाता है कि ऐसा करने से मां शीतला की कृपा हमेशा बनी रहती है।
हल्दी भरे हाथों के लगेंगे छापे
शीतला माता का पूजन कर जब महिलाएं अपने घरों में लौटती हैं, तो दरवाजे के दोनों छोर पर हल्दी भरे हाथों के छापे लगाती हैं। पं. चंदन गुरु ने बताया कि इसके पीछे कारण यह है कि इससे रोग नहीं होते और घरों में खुशहाली बनी रहती है। शीतला माता को भगवती दुर्गा का ही स्वरूप माना जाता है। ठंडे पदार्थों को पसंद करने वाली मां शीतला के पूजन में घी का दीपक और अगरबत्ती ले जाते जरूर हैं, लेकिन उन्हें प्रज्जवलित नहीं किया जाता।
दशमी के दिन होगा दशा माता का पूजन
होली के दसवें दिन दशमी तिथि पर दशा माता का पूजन किया जाता है। इस दिन दशा माता का पूजन इसलिए किया जाता है, ताकि घरों की दशा बदले और सुख-समृद्धि का वास हो। पूजन के बाद महिलाएं कथा सुनती हैं और दशा माता का डोरा अपने गले में पहनती हैं।