विशेषज्ञों की टीम वैज्ञानिक तरीके से डाटा जुटा रही है। टीम में पुरातत्वविदों के साथ प्रचीन अभिलेख पढ़ने और छापा लेने वाले लिपि विशेषज्ञ, स्टक्चरल इंजीनियर, केमिकल कंजरवेशन के वैज्ञानिक शामिल हैं। उन्होंने कई दिनों तक बारीकी से पुरे अवशेषों का अध्ययन किया। इस दौरान हाथियों के झुंड ने उन्हें एक-दो बार खदेड़ा भी। सर्वे की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर भारत सरकार के पुरातत्व विभाग को जल्द भेजी जाएगी।
पौराणिक कथाओं से रहा है नाता
बांधवगढ़ प्रमुख रूप से टाइगर रिजर्व है, लेकिन इसकी समृद्ध पुरातात्विक पृष्ठभूमि भी है। पुराणों के अनुसार भगवान राम ने छोटे भाई लक्ष्मण को इसे उपहार में दिया था। बांधव का अर्थ भाई और गढ़ का आशय किला है। बांधवगढ़ का लिखित इतिहास ईसा पूर्व पहली शताब्दी का है। यह क्षेत्र लंबे समय तक माघ शासकों के अधीन था। यहां भीमसेन के पुत्र महाराजा कौत्सीपुत्र पोथासिरी के विभिन्न ब्राम्ही शिलालेख मिले हैं। पोथासिरी सक्षम शासक थे। बांधवगढ़ उनकी राजधानी थी। उनके काल में ही यह खूब फली-फूली।
ऐसी नक्काशीदार मूर्तियां देखने को मिली
शेषशायी विष्णु मूर्तिकला- यह मूर्ति बलुआ पत्थर पर उकेरी गई है। यह कलचुरी वंश से सम्बंधित है। इस मूर्ति के पास विशाल शिवलिंगम भी है। इस पर एक छोटी नरसिंह मूर्ति भी रखी गई है। किवदंतियों में ऐसा भी कहा जाता है। भगवान विष्णु यहां इसीलिए लेटे हैं, ताकि जंगली जानवरों की रक्षा की जा सके। शिलालेख-कुषाणकालीन ब्राम्ही शिलालेख के अलावा कलचुरी काल के शिलालेख भी ज्ञात हैं। ये शिलालेख गुफाओं के अंदर और मूर्तियों पर उकेरे गए हैं। बांधवगढ़ के शुरुआती शिलालेख लगभग पहली-दूसरी शताब्दी के हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार जंगल में करीब 40 गुफाओं का सर्वे किया गया। इनमें अधिकतर बौद्ध धर्म के हीनयान मत से संबंधित हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि बांधवगढ़ पार्क क्षेत्र में 100 से ज्यादा गुफा हो सकती हैं। काफी संख्या में कुषाणकालीन ब्राम्ही अभिलेख मिले हैं। अब तक पांच बड़े मंदिरों का सर्वे हुआ है। ऊंचाई पर परकोटेदार किले हैं।