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बच्चों में खूनी आंव का प्रकोप

locationउमरियाPublished: May 16, 2018 05:15:02 pm

Submitted by:

shivmangal singh

उल्टी दस्त के मरीज बढ़े

Bloody egg outbreak in children

Bloody egg outbreak in children

उमरिया. जिले में इस समय बच्चों में उल्टी-दस्त व खूनी अंाव की बीमारी तेजी से बढ़ रही है। जिसका कारण दूषित खान-पान के साथ वैक्टीरिया का संक्रमण बताया जा रहा है। अस्पताल में छह माह से लेकर पांच साल तक के बच्चों की भीड़ लगी रहती है। गत माह तक उल्टी-दस्त के मरीज बच्चे रोजाना 40-50 की संख्या में अस्पताल आते थे, लेकिन इस समय इनकी संख्या रोजाना औसतन 100 तक पहुंच गई है। इसमें 10 से 20 की संख्या में रोज खूनी आंव के बच्चे लाये जा रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि खूनी आंव अत्यधिक खतरनाक है और बच्चे को तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए। अस्पताल के बच्चा वार्ड में भर्ती की जगह नहीं मिल रही है। अस्पताल लाए जाने वाले बच्चों में जो अत्यधिक गंभीर होते हैं उन्हे तुरंत भर्ती किया जा रहा है। लेकिन यहां भीड़ के कारण उपचार करने में असुविधा भी हो रही है। इसके अलावा स्टाफ की कमी से भी परेशानियां देखी जाती है।
दूषित पानी व बासी खाना से हो रहे बीमार
बताया गया कि गर्मी के इस मौसम में पानी का संकट बढ़ता जा रहा है और लोग नदी, तालाबों का पानी लाकर भी पी रहे हैं। कई जगह हैण्डपंपो का पानी भी मटमैला निकल रहा है, लेकिन फिर भी लोग उसका सेवन करने को विवश हैं। जल स्तर घटने के कारण नलों से भी गंदे पानी की सप्लाई हो रही है। ऐसी स्थिति में बच्चे बिना छाने व साफ किए पानी का सेवन कर लेते हैं। बासी व दूषित खाना भी बच्चे खाते हैं। इस वजह से उन्हे उल्टी दश्त व खूनी आंव की शिकायत हो रही है। गंदे पानी से यह रोग सर्वाधिक रुप से होना संभावित है।
न सर्वे होता न प्राथमिक उपचार
स्वास्थ्य विभाग अभी चुप्पी साधे बैठा है। अस्पतालों में रोगी भर रहे, लेकिन वह फील्ड में सर्वे नहीं करा रहा है कि रोग के कारण और उसके उपाय क्या हैं। इसके अलावा ग्रामीण अंचलों की अस्पतालों में भी व्यवस्थाएं नहीं सुधारी जा रही हैं। वहां न तो डॉक्टर मिलते न कंपाउण्डर रहते। जिले के ग्रामीण अंचलों में 51 उपस्वास्थ्य केन्द्र हैं यदि यह सही ढंग से संचालित हों तो लोगों को गांव में ही इलाज मिल सकता है, लेकिन यह केन्द्र अधिकांशत: बंद रहते हैं। अधिकारी औचक निरीक्षण करने नही जाते हैं। लोग अपने बीमार बच्चों को लेकर भटकते रहते हैं और फिर जिला अस्पताल लेकर भागते हैं। जहां भीड़ बढ़ती है। ग्रामीण क्षेत्रों के लोग चिकित्सा के मामले में आज भी असहाय ही हैं।
चालीस साल पुरानी है व्यवस्था
जिला अस्पताल में आज तक न तो शिुशु रोग वार्ड की स्थापना की गई और न उपचार व्यवस्था में सुधार किया गया। बताया गया कि अस्पताल स्थापना के समय एक कमरे में 10 बिस्तर डाल कर उसे बच्चा वार्ड बना दिया गया था। वही आज भी चल रहा है। स्थिति यह है कि रोगी बच्चों की भीड़ होने पर एक पलंग में 2-2, 3-3 बच्चे लिटाए जा रहे हैं। रोगी कल्याण समिति के निर्णय में अस्पताल के विकास को प्रमुखता दी गई है फिर भी उसमें बच्चा वार्ड शामिल नहीं है।
इनका कहना है
जिला अस्पताल में इस समय उल्टी दस्त और खूनी आंव के रोगी बच्चे काफी संख्या में पहुंच रहे हैं, लेकिन बच्चों को तत्काल इलाज उपलब्ध कराया जाता है।
डॉ. उमेश नामदेव, सीएमएचओ, उमरिया।
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