उमरियाPublished: May 01, 2019 10:06:52 pm
ayazuddin siddiqui
अन्य क्षेत्रों में भी बनी है पहचान
प्यासे कंठ को तर कर रही चंदिया की सुराही
उमरिया. कटनी से बिलासपुर मार्ग की रेल यात्रा के दौरान एक छोटा स्टेशन चंदिया पड़ता हैं। चंदिया स्टेशन के आते ही चारो तरफ चंदिया की सुराही एवं मटको को बेचने वाले लोगो की भीड़ लग जाती है। इनकी प्रसिद्धी इतनी अधिक है कि चंदिया पहुंचते ही यात्री प्लेट फार्म की ओर झांकने लगते है। चंदिया की सुराही एवं मटको को ग्रीष्म कालीन फ्रीज के नाम से जाना जाता है। यात्रा के दौरान कई देशी, विदेशी यात्री इन सुराहियों को साथ लेकर चलते है। कई बार बस या ट्रक के ड्रायवर भी पानी से भरी हुई सुराही साथ लेकर चलते है। इन सुराहियों एवं मटको की खनक जबलपुर, कटनी, शहडोल, अनूपपुर, बिलासपुर, रायपुर, आदि जैसे बडे शहरो में भी खनकती है। सडको के किनारे ट्रको में लाद कर व्यापारी विक्रय हेतु लाते है। चंदिया की सुराही का नाम लेते ही ग्राहक किसी भी दाम पर खरीदने के लिये तैयार हो जाते है। इस सफलता के पीछे उन हजारों श्रमिको की मेहनत एवं वहां की माटी का कमाल हैं। आज जब मिटटी से बनी वस्तुयेें अपना असतित्व खोती जा रही है तब भी यहा की बनी सुराही एवं मटके उतना ही प्रसिद्ध है।बांधवगढ़ नेशनल पार्क में आने वाले विदेशी सैलानियों ने भी चंदिया की सुराही को नही भूलते वे आते जाते समय अपने साथ सुराही ले जाते हैं वे अपने स्वेदशी ग्राहकों से कहंी अधिक पैसा भी देते है। बताया जाता है कि इस कारोबार से चंदिया के लगभग 400 परिवार के लोग जुडे हुए हैं जो उमरिया के अलावा मप्र के आसपास के जिलों तथा छत्तीसगढ में जाकर भी कारोबार करते हैं। मटका बनाने वालो का कहना है कि चार महीने के कारोबार के लिए उन्हें छह महीने कडी मेहनत एवं मशक्कत करनी पडती है। पूरे परिवार को दिन रात जुटना पडता है तब कहीं जाकर लोगों तक मटके पहुंच पाते हैं। मटकों का कारोबार सहज और सरल नहीं है उन्हें सुरक्षित रखना सबसे मुश्किल काम है। विदित हो कि मटका बनाने के लिए मिट्टी खोदने से लेकर उसे फुलाने, मथने, सुखाने, पकाने और ट्रक में लादकर बेचने ले जाने तक परिवार के हर सदस्य को अपनी जिम्मेदारी निभानी पडती है। पके पकाए घडे जब ट्रक में लादकर दूसरे शहर ले जाते है उस दौरान काफी नुकसान भी होता है। दूसरों को ठण्डा पानी पिलाने के लिए पूरा परिवार सारा दिन धूप में बिताता है। यह उनके संघर्ष की कहानी है।