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जिले के अस्पतालों में नहीं है शव वाहन

locationउमरियाPublished: Jul 23, 2018 05:36:12 pm

Submitted by:

shivmangal singh

ग्रामीणों को शव वाहन न मिलने से हो रही परेशानी

Doctors in the district do not have carcasses

Doctors in the district do not have carcasses

उमरिया. जिला अस्पताल को छोडक़र किसी भी थाना पुलिस व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में शव वाहन नहीं है। इसलिए आपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़ी मौतों के मामलों में पुलिस को देहातों से शव लाने में काफी मशक्कत का सामना करना पड़ता है और विलंब हो जाता है। इसका एक मानवीय पहलू भी है कि मृतक के परिजन पुलिस कार्रवाई पूर्ण होने और शव के सुपुर्द किए जाने की प्रतीक्षा करते रहते हैं। शव के अंतिम संस्कार के बाद ही वे कुछ कर पाते हैं। तब वे भूखे-प्यासे पुलिस के पीछे-पीछे चलते रहते हैं। यह नजारा जिले में आये दिन देखने को मिलता है। जिला अस्पताल का वाहन भी रख-रखाव की कमी के कारण विशेष योगदान नहीं दे पता है। ज्ञातव्य है कि छह लाख की आबादी वाले इस जिले की सुरक्षा व्यवस्था का भार सात पुलिस थानों और तीन चौकियों पर है, लेकिन अभी तक पुलिस संसाधनों की कमी से जूझ रही है। दूर देहाती व जंगली क्षेत्रों से अस्पताल के चीर घर तक शव लाने के लिए यहां एक वाहन तक उपलब्ध नहीं है।
चुनौती से भरा है वाहन की व्यवस्था करना
जंगली क्षेत्रों में शव बरामद होने के बाद वहां से अस्पताल तक शव लाने पुलिस के पास व्यवस्था नहीं रहती है। स्थिति यह होती है कि 30 किलोमीटर, 40 किलोमीटर दूर अस्पताल शव लाने के लिए वाहनों की तलाश में समय लग जाता है। निजी वाहन वाले भी सरलता से शव लाने को तैयार नहीं होते हैं। इसके अलावा वह भारी भरकम किराया मांगते हैं। इस राशि का भुगतान कौन करे? यह भी समस्या सामने आती है। किसी तरह व्यवस्था करके शव अस्पताल तक लाया जाता है। तब तक यदि शाम हो गई, तो पोस्टमार्टम अगले दिन की सुबह हो पाता है। अगले दिन पीएम के बाद शव जब सुपुर्दगी में दिया जाता है, तो परिजनों को पुन: उतनी ही दूर किराए का वाहन करके शव ले जाना पड़ता है। तब तक शव से दुर्गंध उठने लगती है। इसके बाद उसका अंतिम संस्कार हो पाता है। इस दिशा में सहूलियत उपलब्ध कराने न तो प्रशासन ने और न ही जन प्रतिनिधियों ने कोई प्रयास किया है।
ग्रामीणों को मजबूरी में चारपाई ही सहारा
पूर्व में ऐसा भी होता था कि वाहन की परेशानी के कारण ग्रामीण चारपाई की पालकी बनाकर उसमें शव रखकर अस्पताल ले आते थे, लेकिन यह अमानवीय माना जाने लगा और इस पर पुलिस पर कार्रवाई की जाने लगी है। इसी तरह के एक मामले में पाली थाने के एएसआई रामदत्त चक्रवाह को निलंबित कर दिया गया था। इसलिए अब पालकी में भी शव नहीं लाए जाते हैं। दो चार गांवो के बीच में अब लोग ट्रैक्टर भी रखते हैं, लेकिन शव ले जाने के लिए ट्रैक्टर भी सरलता से नहीं देते हैं। बड़ी मशक्कत के बाद ट्रैक्टर उपलब्ध होता है तब शव को लाना संभव हो पाता है।
पीएम रिपोर्ट आने में लगता है विलंब
डॉक्टर द्वारा शव का पोस्टमार्टम करने के उपरांत रिपोर्ट 48 घंटे के अंदर दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन यहां डॉक्टरों की जांच के उपरांत अस्पतालों से रिपोर्ट मिलने में हफ्ता-दस दिन का समय लगा दिया जाता है। पुलिस कर्मचारी रिपोर्ट के लिए भटकते रहते हैं। इससे प्रयोग शाला के लिए बिसरा भेजने और अदालतों में प्रकरण पेश करने में विलंब होता है। अस्पतालों मेेें अक्सर कर्मचारियों का अभाव बतला दिया जाता है। दूसरी ओर पुलिस कर्मचारी जिन्हे सुरक्षा के कार्य करने चाहिए वे इन्ही कार्यों में व्यस्त रहते हैं। इससे पुलिस का कार्य भी प्रभावित होता है।
यहां और भी है परेशानी
मारपीट के मामलों में यदि कहीं फ्रेक्चर आदि की संभावना नजर आती है, तो डॉक्टर द्वारा एक्स-रे के लिए लिखा जाता है, लेकिन यदि अवकाश का दिन पड़ गया तो न तो एक्स-रे होता है और न रिपोर्ट मिलती है। यदि जांचकर्ता डॉक्टर नहीं है तो भी रिपोर्ट नहीं मिल पाती है। इसलिए एक्स-रे वाले मामलों में भी पुलिस को अड़चनों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा लंबी तथा अड़चन भरी कार्रवाइयों के कारण पीडि़त पक्ष को भी शीघ्रता से न्याय नहीं मिल पाता है।
इनका कहना है
पुलिस विभाग में शव वाहन उपलब्ध कराने का यद्यपि कोई प्रावधान नहीं है। फिर भी इस मामले में विचार कर व्यवस्था की जाएगी।
डॉ. असित यादव, पुलिस अधीक्षक, उमरिया

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