उमरियाPublished: Jun 08, 2023 04:25:43 pm
ayazuddin siddiqui
अमुआरी और तुम्मादर के लोग दो दशक से जुड़े हैं वनों के संरक्षण में
उमरिया. जिले के सघन वन और शुद्ध पर्यावरण पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। प्राकृतिक झरने, जलस्त्रोत, पहाड़ और नदियों के समागम से जिले की जलवायु मानव सहित जीव जंतुओं के लिए उत्कृष्ट मानी गई है। यहां के पर्यावरण सरंक्षण में ग्रामीण अंचल के लोगों की बड़ी भूमिका है। आकाशकोट अंचल की तराईयों में आबाद पतलेश्वर धाम में दो गांव के ग्रामीणों ने मिलकर पहाड़ी क्षेत्र की 20 हेक्टेयर बंजर भूमि में औषधीय वृक्षों का जंगल खड़ा कर दिया है।
ग्राम अमुआरी और तुम्मादर के ग्रामीणों ने जंगल को बचाने की दिशा में तकरीबन दो दशक पूर्व यह प्रयास शुरू किया था जिसका परिणाम सबके सामने है। वर्तमान में पतलेश्वर धाम के नाम से मशहूर यह स्थान अब धार्मिक आस्था और पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित हो चुका है। पहाड़ की तराई पर लगाये गए औषधीय वृक्षों की जड़ों से जल की एक धारा भी प्रवाहित होती है जिसे लोग नर्मदा नदी का अंश मानते हैं।
यहां भगवान शिव और हनुमानजी की प्रतिमा के साथ साथ दो बड़े तालाबों का भी निर्माण कराया गया है। इससे पतलेश्वर धाम का दृश्य अत्यंत रमणीय हो जाता है। यहां शहडोल, उमारिया, डिंडोरी के अलावा प्रदेश के अन्य कई जिलों के लोग धार्मिक और पर्यावरण पर्यटन के लिए आते हैं। पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों पर मानव जीवन का जितना हक है उतनी ही जिम्मेदारी इसे बचाने और सरंक्षित करने की भी है। यही संदेश ग्राम अमुआरी और तुम्मादर के ग्रामीणों ने दुनिया को दिया है। उनका मानना है कि सरकारी प्रयास के साथ-साथ पर्यावरण के सरंक्षण के लिए पतलेश्वर धाम की तर्ज पर अगर लोग सामुदायिक भावना से सामने आए तो प्रकृति के विनाश के सारे दरवाजे अपने आप बंद हो जाएंगे।