दौरे की शुरुआत के लिए संभागीय मुख्यालय शहडोल से नेशनल हाइवे पकड़कर मुडऩा नदी पार की तो महज 3 किमी की दूरी में उमरिया जिले की मानपुर विधानसभा क्षेत्र के चंदनिया गांव पंहुच गया। गांव में लगभग 8 वर्ष से बंद पड़े दुग्ध शीत केन्द्र की स्थिति देखी। पहले यह आस-पास के लोगों की आय का जरिया था। मशीनों का पता नहीं, भवन खण्डहर में तब्दील हो गया। इससे आगे ऊबड़ खाबड़ रास्ते से ग्राम पंचायत सलैया-1 पहुंचा तो पेड़ के नीचे गांव के कुछ युवा बैठे थे। यहां मोतीलाल यादव से युवाओं के रोजगार के विषय में पूछा तो बोले स्थानीय स्तर पर कोई उद्योग धंधा है नहीं। शहरों में जाकर काम करते हैं। गंगा यादव ने बताया कि एक वर्ष से किसी को भी पीएम आवास नहीं मिला।
विष्णु बैगा बोले, पानी के लिए हैण्डपंप के भरोसे हैं। पांच वर्ष पहले नल-जल योजना की टंकी बनी थी। आधे गांव में पाइप लाइन बिछी है। पानी की स्थिति करौंदी टोला से आगे ग्राम पंचायत मेढ़की के इटौर में तुलनात्मक तौर पर बेहतर मिली। इटौर में सड़क किनारे जल जीवन मिशन अंतर्गत ग्रामीण नल-जल प्रदाय योजना की पानी टंकी दिखी। बुधसेन गोंड़ बोले, पहले पानी का बहुत संकट था। अब एक वर्ष से टंकी लग जाने से गांव के लोगों की गला तर हो गया है।
पॉलिथिन के नीचे गुजारा, नहीं मिला पीएम आवास
कुदरा टोला में ही समय लाल बैगा का कच्चा मकान दिखा। मिट्टी दीवाल को लकड़ी की बल्ली गाड़कर पॉलिथिन से ढका गया था। समय लाल बैगा से पीएम आवास के विषय में पूछा तो उसने बताया कि कई बार सरपंच सचिव से कह चुके कहते हैं कागज भेज दिए हैं जब आएगा तो मिल जाएगा। राम कुमार बैगा ने भी यही कहानी दोहराई। बोले, कागज भी दे चुके हैं लेकिन आवास नहीं मिला। वापस लौटकर फिर से नेशनल हाईवे पकड़ आगे बढ़े तो सड़क किनारे कुछ लोग कपड़े की पोटली रखे मिले।
उनसे पूछा तो गोपाली खैरवार बोले, अमिलिहा के रहने वाले हैं। तेंदुपत्ता तोडऩे आए हैं। अब घर लौटने के लिए साधन का इंतजार कर रहे हैं। सुबह रोटी और पानी लेकर निकलते हैं और दोपहर होते तक घर वापस लौट जाते हैं। जंगली जानवरों से भय लगने के बारे में पूछा तो उर्मिला खैरवार ने बताया कि डर तो लगता है लेकिन पेट का सवाल है।
स्कूल के हैण्डपंप से पानी
इसके बाद मैं जा पहुंचा बांधवगढ़ विधानसभा क्षेत्र में। निर्माणाधीन नेशनल हाइवे में जगह-जगह धूल के गुबार से मुंह बचाते बड़े-बड़े गड्ढों में हिचकोले खाते नौरोजाबाद से आगे बढ़कर ग्राम पंचायत धनवार पहुंचे। यहां तालाब किनारे एक दुकान में बैठे मायाराम से बात की, तो बोले, पानी शुरू किया था तो पाइप फूट गया। अब फिर से सुधारकर गए हैं तो देखते हैं कब शुरु होता है।Ó हरछाटी बोले, कोल समाज की बस्ती है, एक भी हैण्डपंप नहीं है। स्कूल के हैण्डपंप से 20 से ज्यादा घरों के लोग पानी भरते हैं। पीएम आवास अब तक नहीं मिला है। सहजना से सिलौड़ी होते हुए हम वापस नेशनल हाईवे पकड़कर मुख्यालय पहुंचे तो यहां की जीवनदायिनी उमरार नदी दल-दल में तब्दील नजर आई।
मुख्यालय में ही एक दुकान के सामने खड़े धवैझर निवासी प्रेमलाल सिंह ने आकाशकोट के उन 18 गांव की कहानी बयां कर दी जहां के लोग आज भी झिरिया और कुएं के पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं। ग्राम पंचायत कोहका के डोमरगवां में पेड़ के नीचे बैठे प्रभु यादव बोले, आधा किलोमीटर से लोग पानी लेने आते है। हैण्डपंप से भी पानी नहीं निकला तो इंदारा ही सहारा है। गांव के 50 से ज्यादा युवा हर साल दूसरे शहर कमाने चले जाते हैं। यहां से निकलकर मजमानी कला में इन्द्रपाल महार से चर्चा की। वे बोले, सुबह से कुएं में भीड़ लग जाती है। दो डिब्बे से ज्यादा पानी भरने पर विवाद की स्थिति बन जाती है। राम दयाल महार का कहना था कि उनकी 8 एकड़ जमीन है लेकिन यहां पीने के लिए पानी नहीं है तो खेतों की सिंचाई कैसे करेंगे। बुजुर्ग रामधनी बोले, पीएम आवास अब तक नहीं मिला।