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शैला नृत्य ने मोहा मन, बिरसा मुंंडा की जयंती पर लगा मेला

locationउमरियाPublished: Nov 16, 2019 11:22:33 pm

Submitted by:

ayazuddin siddiqui

सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ मनाई जयंती

Shaila dance Moha mind, fair began on the birth anniversary of Birsa M

शैला नृत्य ने मोहा मन, बिरसा मुंंडा की जयंती पर लगा मेला

उमरिया. अमर शहीद क्रांतिकारी महानायक बिरसा मुण्डा की 146 वी. जयंती करकेली विकासखण्ड के डगडौआ पंचायत परिसर में धूमधाम से मनाई गई। कार्यक्रम का शुभारंभ बिरसामुण्डा की विशाल प्रतिमा के समक्ष पूजन के साथ किया गया। कार्यक्रम में विधायक बांधवगढ शिव नारायण सिंह ने कहा कि बिरसामुण्डा एक आदिवासी नेता के साथ साथ लोक नायक थे। उनके व्यक्तित्व के कारण उन्हें बिरसा भगवान कहा जाता है। श्री मुण्डा आदिवासियो को अंग्रेजो के दमन के विरूद्ध खड़ा करके सम्मान अर्जित किया था, वे 19 वीं सदी में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक मुख्य कड़ी साबित हुए थे। कहा जाता है कि कुछ ऐसी अलौलिक घटनाएं घटी जिनके कारण लोग बिरसा मुण्डा को भगवान का अवतार मानने लगे । लोगों का यह विश्वास दृढ हो गया कि बिरसा के स्पर्श मात्र से ही रोग दूर हो जाता है।
बिरसामुण्डा की जंयती प्रत्येक वर्ष 15 नवंबर को भव्य मेले के रूप में मनाई जाती है। डगडौआ बिरसामुण्डा की आस्था का केंद्र बनेगा और अनुयायी उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व को आत्मसात कर उंचाईयों तक पहुंचेगे।
कार्यक्रम मे मुख्य कार्यपालन अधिकारी करकेली आर के मण्डावी ने बिरसा मुण्डा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बिरसा मुण्डा ने किसानों का शोषण करने वाले जमींदारों के विरूद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा दी थी । ब्रिटिश सरकार ने उन्हे लोगों की भीड जमा करने से रोका जिसमें उनका कहना था कि मैं तो अपनी जाति को धर्म सिखा रहा हूूं , जिसमें पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने का प्रयास किया लेकिन गांव वालों ने उन्हे छुडा लिया। इसके पश्चात उन्हें दो वर्ष के लिए गिरफ्तार कर हजारी बाग जेल में डाल दिया गया।
24 दिसंबर 1899 को आंदोलन प्रारंभ हुआ। तीरो से पुलिस थानों पर आक्रमण करके उनमें आग लगा दी गई ।
सेना से सीधी मुठभेड हुई लेकिन तीर कमान गोलियों का सामना नही कर पाई। बिरसा मुण्डा के साथी बडी संख्या मे मारे गये और उन्हे कतिपय आदमियों ने धन के लालच में मुण्डा को गिरफ्तार करा दिया। इसके बाद 9 जून 1900 ई. को जेल में उनकी मृत्यु हो गई। शायद उन्हे विष दे दिया गया था लेकिन लोक गीतो और जाति साहित्य में बिरसा मुण्डा आज भी जीवित है। इस अवसर पर पूर्व सांसद ज्ञान सिंह , बाला सिंह तेकाम, नीरज सिंह, नत्थू कोल, कैलाश सिंह, गुलजार सिंह, मान सिंह, हीरा बाई, राजेंद्र विश्वकर्मा, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी राजेश श्रीवास्तव, आदिम जाति कल्याण विभाग , वन विभाग, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय, पशु चिकित्सा, शिक्षा विभाग के अलावा अन्य विभागो के अधिकारी कर्मचारी उपस्थित रहे।
सांस्कृतिक कार्यक्रम से मंत्र-मुग्ध दर्शक
बिरसामुण्डा की जयंती के अवसर पर डगडौआ पंचायत परिसर में शिव शक्ति लोक कला दल आकाशकोट बिरहुलिया के 16 सदस्यीय दलों का शैला नृत्य दर्शकों का मन मोह लिया। कलाकार विभिन्न वेश भूषा मे आदिवासी कला एवं संस्कृति को जीवंतता देते हुए बांसुरी की धुन, ढोल नगाडे की थाप, शैला एवं पांव के घुुंघरू के सधी हुई धुन दर्शको को आकर्षित किया। इसी प्रकार कोहका एवं भनपुरा के कलाकारो ने शैला नृत्य , कोहका डगडौआ के कलाकारो ने गुदुम एवं अन्य कलाकारो ने छत्तीसगढी नृत्य से दर्शको का दिल जीता। इस दौरान विभिन्न विद्यालयो के छात्र छात्राओ ने अनेकता में एकता का संदेश देते हुये आदिवासी कला एवं संस्कृति का जीवंत उदाहरण नृत्य एवं संगीत के माध्यम से प्रस्तुत किया जहां दर्शकों ने तालियो की गडगडाहट से उनका उत्साह वर्धन किया। बिरसामुण्डा जंयती के अवसर पर विभिन्न विभागों द्वारा विकास छाया प्रदर्शनी लगाई गई। जिसमें जनसंपर्क , स्वास्थ्य, पशु, वन, महिला बाल विकास, आदिम जाति विकास सहित अन्य विभाग शामिल रहे। कार्यक्रम में भूदान करने वाले नत्थू कोल निवासी महुरा का आयोजको ने पुष्पहार तथा शाल श्रीफल से स्वागत किया। उल्लेखनीय है कि नत्थू कोल बिरसामुण्डा का बैनर , झण्डा लेकर महुरा से रैली के रूप में डगडौआ पहुंचे । इस दौरान पूरे मार्ग में बैण्ड की धुन पर आदिवासी कलाकारो एवं नागरिकों ने धूम मचाई।

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