उमरियाPublished: Feb 18, 2019 10:49:18 pm
ayazuddin siddiqui
स्टाफ की कमी से जूझ रहा सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र
एक को बना दिया बीएमओ दूसरे के भरोसे 83 गांव के मरीजों का इलाज
उमरिया. जनपद मुख्यालय मानपुर में संचालित सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र में आने वाले मरीजों का इलाज भगवान भरोसे चल रहा है। यहां स्वीकृत पदों के विपरीत महज दो चिकित्सकों की पदस्थापना की गई है। उसमें से भी एक को बीएमओ का प्रभार सौंप दिया है। जिसके बाद वह इलाज करना छोडकऱ कागजों में उलझकर रह गए हैं। ऐसे में स्वास्थ केन्द्र अंतर्गत आने वाले लगभग 83 गांवों के मरीजों का इलाज का बोझ एक चिकित्स्क के कंधे पर आ टिका है। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां आने वाले मरीजों को कितना इलाज मिल पाता होगा। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मानपुर में कल 08 पद स्वीकृत है परन्तु यहां पदस्थापना सिर्फ दो चिकित्सकों की ही है। बताया जा रहा है इस आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाएं पूरी तरह से बदहाल है। सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र मानपुर में लगभग 18-20 वर्ष से चिकित्सकों के पद रिक्त पड़े हुए हैं। यहां पदस्थ दो चिकित्सकों में से एक को बीएमओ का प्रभार दे दिया गया है। उन्हें अस्पताल से कोई लेना देना नहीं है वह कभी मीटिंग में तो कभी प्रशासनिक व्यवस्था में व्यस्त रहते हैं, मात्र एक डाक्टर के ऊपर 83 ग्राम पंचायतों के गरीब आदिवासियों को स्वास्थ सुविधा मुहैया कराने की जिम्मेदारी है। जिसके चलते यहां आने वाले मरीजों को समुचित इलाज नहीं मिल पा रहा है।
यहां पसरा है सन्नाटा
ग्रामीण अंचलो में प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र खोले गए हैं लेकिन यहां भी स्टाफ के नाम पर सन्नाटा पसरा हुआ है। यहां न डॉक्टर पदस्थ हैं ना ही कंपाउंडर हैं। यहां तक कि स्वीपर वार्ड ब्याय की नियुक्ति नही की गई है। मात्र 1 एनम हैं, और वो भी भला कैसे अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकती हैं। ऊपर से महीने में जनपद में 5 से 7 दिन मीटिंग में रहना अनिवार्य है। मानपुर छेत्र में 1 सामुदायिक अस्पताल है उसमे डॉक्टर नही है जिसके चलते ग्रामीण अंचल से आने वालों को समुचित इलाज मुहैया नहीं हो पाता है और उन्हे परेशान होना पड़ता है। चिकित्सक व चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में यहां आए दिन कोई न कोई काल की गाल में समा रहा है। स्थानीय जन प्रतिनिधि भी यहां की स्वास्थ सुविधा को बहाल कराने कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं। जिसका खामियाजा यहां के गरीब आदिवासी परिवारों को उठाना पड़ रहा है। यहां समुचित इलाज मुहैया न होने की स्थिति में ग्रामीणों को जिला मुख्यालय या फिर दूसरे शहर इलाज के लिए जाना पड़ता है।