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दो बार भर्ती हुआ था मासूम, आखिर तोड़ा दम

locationउमरियाPublished: Oct 13, 2018 05:47:05 pm

Submitted by:

ayazuddin siddiqui

अंचल में कुपोषण बना चुनौती

Was admitted twice innocent, finally succumbed

दो बार भर्ती हुआ था मासूम, आखिर तोड़ा दम

उमरिया. जिले के आकाशकोट क्षेत्र के ग्राम माली के निवासी लक्ष्मण सिंह पिता बिरेन्द्र सिंह जिसकी उम्र 19 माह थी उनकी मृत्यु गुरुवार की रात हो गई जब कि लक्ष्मण सिंह को जनवरी 2017 व जुलाई 2018 में दो बार पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती किया जा चुका है। जिला को कुपोषण मुक्त करने के लिए लगातार टीएल बैठक में कलेक्टर बात करते आ रहे है चीजे तय भी होती है अधिकारी जांच भी करते है फिर भी किसी बच्चे की मौत कुपोषण के कारण हो जाना हम सब पर सवाल खड़ा करती है पिछले ही माह में कुपोषण मुक्त बनाने के लिए पोषण माह का आयोजन किया जाना था लेकिन यह योजना भी कागज में ही सिमट गई । इसमें बाद न तो कार्यवाही न कुछ बस जाँच चलती रहेगी ? यही कारण है कि कुपोषण खत्म नहीं होता हमारे द्वारा किए जा रहे प्रयास का धरातल तक पहुँच नहीं है ।
ज्ञात हो कि महिला बाल विभाग के मुताबिक जिले में कुल 763 आंगनबाड़ी केंद्र हैं जिसमें कुल 2032 बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार हैं। यानी प्रत्येक आंगनबाड़ी में औसतन 3 बच्चे गंभीर कुपोषित हैं। ये 2032 गंभीर कुपोषित बच्चे सिर्फ बच्चे नहीं है ये 2032 जिंदगियां भी है। जो एक एक कर जा जा रही है अगर समय रहते 2032 गंभीर कुपोषित बच्चों की समुचित व्यवस्था नहीं की गयी तो ये बच्चे एक एक कर दम तोड़ सकते हैं। ऐसा नहीं है कि कुपोषण के इस स्थिति का निर्माण खुद-ब-खुद हुआ है इसके पीछे भी कई संरचनाएं काम कर रही है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थय सर्वेक्षण में यह साफ लिखा हुआ है कि जिले में 18 वर्ष से कम उम्र में 37.3 फीसदी लड़कियों की शादी कर दी जाती है द्य इसी सर्वेक्षण में यह भी लिखा है कि जिले में 84.5 प्रतिशत संस्थागत प्रसव हो रहा है लेकिन बात इतनी सी नहीं है संस्थागत प्रसव का आकड़ा उस पूरी कहानी की तरफ इशारा करता है जिस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक मालूम पड़ते हैं और यही पात्र हमें लगातार छलते ही जा रहे हैं। जब संस्थागत प्रसव 84.5 फीसदी है तो जन्म के ठीक एक घंटे के भीतर सिर्फ 37.2 फीसदी ही क्यों है? सवाल सिर्फ इतना है क्या एक प्रणाली के खड़ा हो जाने से कुपोषण तो दूर नहीं होने वाला है जब तक कि वह प्रणाली धरातल पर अपने पाँव न जमा सके, फिर जब संस्थागत प्रसव 84.5 फीसदी है तो गर्भ धारण करने से लेकर प्रसव पूर्व तक की महतवपूर्ण जांचों का फीसदी सिर्फ 6.5 क्यों है? इन सब की और फिर से एक नजर देखना होगा और कोई स्थानीय व्यवस्था के साथ ही निगरानी की व्यवस्था कड़ी करने की जरुरत है।
इनका कहना है
दो बार बच्चा भर्ती हुआ है।जिसका इलाज हुआ है। घर जाने के बाद इन्फेक्शन के कारण मौत हो हो गई हो तो मै कुछ नहीं कह सकता है। यह कार्य वहां की आगनबाडी कार्यकर्ताओं का जिसकी देखभाल करना है। बाकी मै रिकार्ड देखकर बाद में बता सकता हूं।
डॉ विनोद गुप्ता , एनआरसी प्रभारी, उमरिया।
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