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हैप्पी बर्थडे सौरव गांगुली: क्रिकेट के “दादा” की दिलचस्प बातें

सौरव गांगुली के नेतृत्व में टीम इंडिया ने 30 साल बाद पहली
बार क्रिकेट विश्व कप के फाइनल में जगह बनाई थी

Jul 08, 2015 / 10:05 am

दिव्या सिंघल

Sourav Ganguly

भारतीय क्रिकेट को विपक्षी की आंखों में आंखें डालकर जवाब देने की हिम्मत देने वाले दादा यानि सौरव चंडीदास गांगुली का आज 43वां जन्मदिन है। सौरव का जन्म 8 जुलाई 1972 को तत्कालीन कलकत्ता में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। गांगुली भारतीय क्रिकेट के सफलतम कप्तानों में से एक है। उनके नेतृत्व में टीम ने 30 साल बाद पहली बार क्रिकेट विश्व कप के फाइनल में जगह बनाई थी। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर और सौरव की सलामी जोड़ी वनडे इतिहास में सबसे सफल सलामी जोड़ी है।

दाएं हाथ के होने के बावजूद बाएं से खेलना सीखा
कलकत्ता में माहौल फुटबॉलमय था जिसके चलते सौरव का भी इसी ओर झुकाव हुआ। लेकिन उनके भाई स्नेहाशीष ने उन्हें क्रिकेट खेलने को प्रेरित किया। स्नेहाशीष उस समय पश्चिम बंगाल क्रिकेट के मशहूर नाम थे। लेकिन स्नेहाशीष बाएं हाथ के खिलाड़ी थे जबकि सौरव दाएं हाथ के। अपने बड़े भाई के खेल के उपकरण काम में लेने के लिए सौरव ने भी बाएं हाथ से बल्लेबाजी करना शुरू कर दिया। अंडर-15 क्रिकेट में सौरव ने ओडिशा के खिलाफ सैंकड़ा जमाया और उन्हें सेंट जेवियर स्कूल का कप्तान बना दिया गया। इसी दौरान जूनियर टीम के साथ दौरे पर टीम का 12वां खिलाड़ी बनने से गांगुली ने मना कर दिया। गांगुली ने खिलाडियों के लिए पानी की बोतलें और क्रिकेट सामान ले जाने को अपने सामाजिक रूतबे को गिराने वाला माना। लेकिन अपने खेल की वजह से 1989 में पहली बार उन्हें प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलने का मौका मिला।

पहले ही टेस्ट में जमाया शतक
1990-91 रणजी सत्र में धांसू बल्लेबाजी के बूते गांगुली को 1992 में वेस्ट इंडीज के खिलाफ वनडे श्रंखला के लिए टीम इंडिया में शामिल किया गया। इस मैच में वे केवल 3 रन बना पाए और उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया। इसके पीछे गंागुली के अडियल रवैये को बड़ी वजह माना गया। बताया जाता है कि उन्होंने टीम साथियों के लिए पानी ले जाने से ये कहते हुए मना कर दिया कि ये उनका काम नहीं है। हालांकि गांगुली ने इससे इनकार किया। इसके बाद घरेलू सीजन में 1993-94 और 94-95 में जोरदार प्रदर्शन किया लेकिन उनकी अनदेखी की गई। लेकिन 1996 में उन्हें टेस्ट खेलने का मौका मिला और पहले ही टेस्ट में लॉर्डस में सैंकड़ा जमाया। ऎसा करने वाले उस समय वे दुनिया के तीसरे बल्लेबाज थे। उनका बनाया 131 का स्कोर आज भी लॉर्डस में किसी डेब्यू बल्लेबाज का सर्वोच्च स्कोर है। इसके बाद ट्रैंटब्रिज में भी उन्होंने शतक ठोका।

कप्तानी में बनाई नई पहचान
मैच फिक्सिंग कांड के बाद मोहम्मद अजहरूद्दीन को कप्तानी छोड़नी पड़ी। इस पर सौरव गांगुली को टीम इंडिया की कप्तानी मिली। उनके नेतृत्व में टीम इंडिया 1983 में वर्ल्ड कप जीतने के बाद पहली बार 2003 में विश्व कप के फाइनल में पहुंची, लेकिन फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के हाथों हारना पड़ा।उनकी कप्तानी में ही भारत ने ऑस्ट्रेलिया के लगातार 16 टेस्ट जीतने के रथ को रोका। वहीं 2002 में इंग्लैण्ड में नेटवेस्ट श्रंखला का फाइनल जीतने के बाद लॉर्डस की बालकनी में खड़े होकर शर्ट लहराने वाले गांगुली को कौन भूल सकता है। भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान बाइचुंग भूटिया कहते हैं कि उनके क्रिकेट को पसंद करने की एकमात्र वजह सौरव गांगुली है।

सौरव के क्रिकेट आंकड़े
टेस्ट
रन-7212, औसत-42.17, शतक/अर्धशतक- 16/35, विकेट- 32

वनडे
रन- 11363, औसत- 41.02, शतक/अर्धशतक-22/72, विकेट-100

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