scriptसाढ़े चार हजार साल पूर्व बनाई गई कांस्य प्रतिमा की चमक आज भी बरकरार | Bronze statue created four and a half thousand years ago still remain | Patrika News

साढ़े चार हजार साल पूर्व बनाई गई कांस्य प्रतिमा की चमक आज भी बरकरार

locationउन्नावPublished: Mar 10, 2018 11:00:45 am

दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में साढ़े चार हजार साल पूर्व बनाई गई नर्तकी की कांस्य प्रतिमा आज भी उसी प्रकार अपनी चमक बिखेर रही है।

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उन्नाव. दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में साढ़े चार हजार साल पूर्व बनाई गई नर्तकी की कांस्य प्रतिमा आज भी उसी प्रकार अपनी चमक बिखेर रही है। जो स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। नर्तकी की कांस्य प्रतिमा सिंधु घाटी की खुदाई के दौरान प्राप्त हुई है। इसे अरमैके नाम के प्राकृतिक पुरातत्वविद ने 1926 में हड़प्पा संस्कृति के प्रमुख स्थान मोहनजोदड़ो से प्राप्त किया था। मोहनजोदड़ो का यह क्षेत्र पाकिस्तान में स्थित है। यह कांसे की मूर्ति काफी चमकीली है। आज भी यह कांस्य की मूर्ति उसी प्रकार अपनी चमक बिखेर रही है। दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में मौजूद कांस्य प्रतिमा की सबसे बड़ी और आश्चर्यजनक बात यह है कि साढे चार हजार वर्ष पूर्व यह मूर्ति किस प्रकार बनाई गई होगी। जो स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है।

मोम की आकृति बनाने के बाद चढ़ाया जाता था मिट्टी का लेप


इसके निर्माण के संबंध में मेहंदी हसन ने बताया कि यह लुप्त मोम पद्धति द्वारा बनाई जाती थी। जिसमें सबसे पहले मोम की आकृति बनाई जाती थी। जिसके ऊपर मिट्टी का लेप लगा दिया जाता था। मिट्टी के लेप के ठोस होने के बाद उसमें तीन या चार छेद कर दिए जाते थे। इसके बाद उसे गर्म किया जाता था। गर्म करने पर मोम निकल कर बाहर निकल जाता था और अंदर खोखला साचा बचा रह जाता था। जिसमें टीन और तांबे के मिश्रण जिससे कांस्य पदार्थ बनता था को गर्म घोल छेद के द्वारा सांचे के अंदर डाला जाता था। यह घोल सांचे के अंदर का आकार ले लेता है। वही अकार जो मोम का बनाया गया था। इसे ठंडा करने के बाद मिट्टी का लेप हटा दिया जाता था। जिसके बाद कांसे की प्रतिमा अपने स्वरुप में बाहर निकल आती थी यही काश की प्रतिमा आज दिल्ली की राष्ट्रीय संग्रहालय में 4.5 हजार वर्ष पुरानी छटा बिखेर रही है। मेहंदी हसन ने बताया कि पाकिस्तान के एक अधिवक्ता ने लाहौर की अदालत में रिट डालकर स्थापत्य कला की बेजोड़ नर्तकी की प्रतिमा को वापस पाकिस्तान लाने की मांग की थी। परंतु समझौते के अनुसार यह भारत को प्राप्त हुई थी।

सांची का स्तूप बौद्ध धर्म का पवित्र स्थान


सांची का स्तूप जो है वह मध्यप्रदेश में रायसेन नाम का जिला है वहां से 5 किलोमीटर दूर वहां से 5 किलोमीटर दूर स्थित स्तूप बौद्ध धर्म के लिए सबसे पवित्र स्थान होता है। स्तूप में भगवान बुद्ध से जुड़ी चीजों रखी होती हैं। जिनका उन्होंने प्रयोग किया है, या फिर उनकी शरीर से जुड़ी चीजें या उनसे जुड़े हुए प्रमुख लोग के कुछ ना कुछ अवशेष रख दिए जाते हैं। बाद रखे गए वस्तुओं के ऊपर स्तूप का का निर्माण करा दिया जाता है। इसी प्रकार का एक स्तूप सांची में स्थित है जो बुद्धिस्ट लोगों के लिए बहुत ही पवित्र स्थान है। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे मियागंज के निवासी मेहंदी हसन ने उक्त अपनी टीम के द्वारा बनाए गए मॉडल के संबंध में जानकारी दी। जो संस्थान परिसर में आयोजित दो दिवसीय शैक्षिक मेला में भाग ले रहे थे। टीम प्रोजेक्ट में वर्षा, खुशबू, शुभम रावत, प्रशांत साहू, अनुराग साहू, पंकज सिंह आदि शामिल थे।

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